गीत:
रचना और रचयिता:
संजीव 'सलिल'
*
किस रचना में नही रचयिता,
कोई मुझको बतला दो.
मात-पिता बेटे-बेटी में-
अगर न हों तो दिखला दो...
*
*
बीज हमेशा रहे पेड़ में,
और पेड़ पर फलता बीज.
मुर्गी-अंडे का जो रिश्ता
कभी न किंचित सकता छीज..
माया-मायापति अभिन्न हैं-
नियति-नियामक जतला दो...
*
![](https://encrypted-tbn2.google.com/images?q=tbn:ANd9GcSTrMrLQ9Gf5hQWcZWSiV-SKIxkYS6lYBb6V2YAkpHY_qKpXnHH)
*
कण में अणु है, अणु में कण है
रूप काल का- युग है, क्षण है.
कंकर-शंकर एक नहीं क्या?-
जो विराट है, वह ही तृण है..
मत भरमाओ और न भरमो-
सत-शिव-सुन्दर सिखला दो...
*
![](https://encrypted-tbn0.google.com/images?q=tbn:ANd9GcSZA3Imko70ZAIssAGtUGYq5QOGXgX5ek0jx82DOuFFlCr5sv2h3A)
*
अक्षर-अक्षर शब्द समाये.
शब्द-शब्द अक्षर हो जाये.
भाव बिम्ब बिन रहे अधूरा-
बिम्ब भाव के बिन मर जाये.
साहुल राहुल तज गौतम हो
बुद्ध, 'सलिल' मत झुठला दो...
![](https://encrypted-tbn0.google.com/images?q=tbn:ANd9GcRqn_SOWcQ4KBRenNUR10gk8Uajtf7X_DpL_bbkGbFQZkhil0V8)
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रचना और रचयिता:
संजीव 'सलिल'
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किस रचना में नही रचयिता,
कोई मुझको बतला दो.
मात-पिता बेटे-बेटी में-
अगर न हों तो दिखला दो...
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बीज हमेशा रहे पेड़ में,
और पेड़ पर फलता बीज.
मुर्गी-अंडे का जो रिश्ता
कभी न किंचित सकता छीज..
माया-मायापति अभिन्न हैं-
नियति-नियामक जतला दो...
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कण में अणु है, अणु में कण है
रूप काल का- युग है, क्षण है.
कंकर-शंकर एक नहीं क्या?-
जो विराट है, वह ही तृण है..
मत भरमाओ और न भरमो-
सत-शिव-सुन्दर सिखला दो...
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अक्षर-अक्षर शब्द समाये.
शब्द-शब्द अक्षर हो जाये.
भाव बिम्ब बिन रहे अधूरा-
बिम्ब भाव के बिन मर जाये.
साहुल राहुल तज गौतम हो
बुद्ध, 'सलिल' मत झुठला दो...
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