चित्र पर कविता: २
चित्र और कविता की प्रथम कड़ी में शेर-शेरनी संवाद पर कलम चलाने से श्रांत-क्लांत कविजनों के समक्ष हाज़िर हैं २ चित्र.
इनको निरखिए-परखिये और कल्पना के घोड़ों को बेलगाम दौड़ने दीजिये.
प्रतिफल की प्रतीक्षा हम सब बहुत बेकरारी से कर ही रहे हैं.
चित्र १ :

चित्र और कविता :
आनंद आया...
संजीव 'सलिल'
*
गरम पराठा आलू का, मक्खन की टिकिया.
मिर्च अचार दही के सँग लायी है बिटिया..
आओ, हाथ बँटाओ, खाओ, मत ललचाओ.
करो पेट-पूजा हिलमिलकर मत सँकुचाओ..
दीप्ति प्रणव की मंद पड़ेगी, अगर न खाया.
'सलिल' कमल को विजय मिलेगी कैसे भाया??
शेष न धर कुछ गरमागरम न भोग लगाया.
तो कैसे बोलेगा सचमुच आनंद आया.
***
चित्र २.

गर्म गर्म कॉफी का प्याला...
संजीव 'सलिल'
*
गर्म गर्म कॉफी का प्याला मजा आ गया.
आलस भागा दूर खूब उत्साह छा गया.
खबर चटपटी ले अखबार आ गया द्वारे.
कॉफी सुड़को सब दुनिया को धता बता रे.
ले गुलाब सद्भावों का महका जग-क्यारी.
अपनी दुनिया हो जाए सब जग से प्यारी.
काली कोंफी पर न रंग कुछ और चढ़ेगा.
जो पी लेगा भर हुलास से खूब बढ़ेगा.
लो ब्लड प्रेशर को कॉफी-प्याला मन भाये.
पिए प्रेयसी प्रीतम की बाँहों में आये.
कॉफी हाउस जाओ या घर में बनवाओ.
इडली-डोसा, वादा, पराठा सँग में खाओ.
कॉफी दूरी-बैर मिटा कर स्नेह बढ़ाती.
नानी-नाती, दादा-पोती सबको भाती.
*
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
ओहो ......ये क्या कर डाला......!
बना पराठा आलू भर के
उस पर मक्खन की गोली
मिर्च अचार दही माखन
इन चारों यारों की टोली
मक्खन लपेट चटखारे ले
खाया दही अचार मिला के
हरी मिर्च से बाज़ आया पर
पत्नी को घटना बतला के
सुनी कहानी हरी मिर्च की
लोटपोट हो गई घरवाली
हँसते हँसते मेरी प्लेट से
मिर्च उठाई पूरी खा ली
एक दोस्त की दावत में
प्यारी हरी मिर्च खुटकी थी
कुछ मत पूछो मित्रो उसने
मेरी ऐसी तैसी कर दी थी
तब से तय है हरी मिर्च को
फिर मुँह नहीं लगाऊंगा
इसका किस्सा मजेदार है
कल मैं तुम्हें सुनाऊंगा
***
फुदक रहा नेस-काफी प्याला
गुड मार्निंग करता मतवाला
पावस में इसका मजा निराला
यह तो मुँह मीठा करने वाला
काफी की चुस्की ले ले कर
मीठी मीठी बातें कर लो
मौसम का यही तकाजा है
कुछ प्यार मुलाकातें कर लो
कली गुलाब सजी है प्लेट
प्रीति प्यार का करे निमंत्रण
घूँट घूँट मुस्काते देख
मन पर कैसे रहे नियंत्रण
****
अरे, दीप्ति जी!
क्या गज़ब ढा रही हैं?
हमें छोड़कर
अकेले-अकेले पराठा उड़ाने की
योजना बना रही हैं.
इतिहास गवाह है कि
हम हिन्दुस्तानी
भाषा, भूषा, धर्म, पंथ, वाद
हर मसले पर लड़ते हैं
लेकिन खाने-पीने के मामले में
हमारी एकता बेमिसाल है.
पंजाब का छोला,
मथुरा के पेड़े,
गुजरात का ढोकला,
बंगाल का रसगुल्ला,
दक्षिण का इडली-डोसा,
महाराष्ट्र का पोहा,
जबलपुर की जलेबी और
बनारस का पान
हर किसी को पसंद आता है.
खाने-खिलाने के सवाल पर
हर मतभेद बौना
और भाईचारा मजबूत हो जाता है.
इसलिए पराठे और कॉफ़ी की
खिलाई-पिलाई में
सहकारिता और सहभागिता
हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है.
अगर हम इसके बाद भी
अपने निवेदन को
अनसुना पायेंगे तो
अन्ना हजारे और
बाबा रामदेव को
भूख हडताल पर बैठायेंगे.
इस मामले की जाँच के लिये
कमल जी को राष्ट्रपति और,
प्रणव जी को
लोकायुक्त बनवायेंगे.
अब भी नहीं सुनियेगा
हमारी फ़रियाद,
तो हम आपके पुतले के आगे
बैठकर आलू ही नहीं
कई तरह के पराठे खायेंगे
और कॉफी पीकर नारे लगायेंगे
पराठा-कॉफी प्रशंसक संघ
जिंदाबाद... जिंदाबाद.
****
दीप्ति जी !
आपकी कलम का कलाम
हम तक पहुँचा, सलाम.
बहुत दिनों से कलम थी मौन,
कुछ लिखने के निवेदन पर
पूछती थी हम आपके हैं कौन?
पूरा हुआ हमारा उद्देश्य
फिर चल पड़ी है कलम.
धन्य हो रहे हैं हम.
कान्हा के ग्वाल-बालों की तरह
हम भी दधि-माखन
या यूँ कहें कि पराठा-चटनी कॉफी के
अधिग्रहण अभियान में
आपके सहभागी है.
आप तो अच्छे से जानती हैं कि
बाज़ार से खरीदकर
पकी जाम खाने में भी
वह मजा नहीं आता जो
माली की नज़र बचाकर
कच्ची जाम चुराकर
खाने में आता है.
इसलिए शरारतों के हवन में
हमारी समिधा भी समर्पित है.
निवेदन मात्र यह कि
तमाम व्यस्तताओं के बाद भी
चित्र पर कविता न रचना वर्जित है.
कृपया, यह सन्देश विजय जी व
अन्य साथियों तक भी पहुंचाइए
और फिर नयी-नयी रचनाओं का
लुत्फ़ उठाइए.
****
वाह ! वाह!


आनन्द आ गया ,
दीप्ति! तुम्हारा उत्तर सबको भा गया....!
अब यह मत पूछ लेना यह "आनन्द " है कौन .......?
हम इस उम्र में भ़ी न रह पायेंगे मौन.......
चलो हमीं समाप्त कर देते हैं आपका द्वंद
प्रणव का एकमात्र प्यारा मित्र है आनन्द
जो हर पल चेष्टा करता है साथ निभाने की
जरूरत नहीं होती उसे किसी बहाने की
कहता है: " ऐ दोस्त! जिओ तो ऐसे जिओ
जैसे सब तुम्हारा है, मरो तो ऐसे कि
जैसे तुम्हारा कुछ भ़ी नहीं......."
चिंता न रखो कभी बेकार की मन में
जो होना है ,वो तो होना है हर पल में ...........
' प्रणव' का साथ क्यों खोना है ?
चंद पल जो मिले हैं जीवन के
मुंह बिसूरकर क्यों रोना है?

फिर मिले दहाड़ शेरनी की
या फिर गर्मागर्म कॉफी और
मक्खन के सँग आलू का पराँठा.......
रहो मस्त और मित्रों के सँग
लगाओ हर पल कहकहा........हा....हा....हा... .

सबकी सुबह शुभ, सुंदर हो और
*
चित्र और कविता की प्रथम कड़ी में शेर-शेरनी संवाद पर कलम चलाने से श्रांत-क्लांत कविजनों के समक्ष हाज़िर हैं २ चित्र.
इनको निरखिए-परखिये और कल्पना के घोड़ों को बेलगाम दौड़ने दीजिये.
प्रतिफल की प्रतीक्षा हम सब बहुत बेकरारी से कर ही रहे हैं.
चित्र १ :
चित्र और कविता :
आनंद आया...
संजीव 'सलिल'
*
गरम पराठा आलू का, मक्खन की टिकिया.
मिर्च अचार दही के सँग लायी है बिटिया..
आओ, हाथ बँटाओ, खाओ, मत ललचाओ.
करो पेट-पूजा हिलमिलकर मत सँकुचाओ..
दीप्ति प्रणव की मंद पड़ेगी, अगर न खाया.
'सलिल' कमल को विजय मिलेगी कैसे भाया??
शेष न धर कुछ गरमागरम न भोग लगाया.
तो कैसे बोलेगा सचमुच आनंद आया.
***
चित्र २.
गर्म गर्म कॉफी का प्याला...
संजीव 'सलिल'
*
गर्म गर्म कॉफी का प्याला मजा आ गया.
आलस भागा दूर खूब उत्साह छा गया.
खबर चटपटी ले अखबार आ गया द्वारे.
कॉफी सुड़को सब दुनिया को धता बता रे.
ले गुलाब सद्भावों का महका जग-क्यारी.
अपनी दुनिया हो जाए सब जग से प्यारी.
काली कोंफी पर न रंग कुछ और चढ़ेगा.
जो पी लेगा भर हुलास से खूब बढ़ेगा.
लो ब्लड प्रेशर को कॉफी-प्याला मन भाये.
पिए प्रेयसी प्रीतम की बाँहों में आये.
कॉफी हाउस जाओ या घर में बनवाओ.
इडली-डोसा, वादा, पराठा सँग में खाओ.
कॉफी दूरी-बैर मिटा कर स्नेह बढ़ाती.
नानी-नाती, दादा-पोती सबको भाती.
*
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
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हम तो लेकर बैठ रहे थे कर में माला !
आई सुगंध आँखें खुल गईं,
आलू का गर्म पराठा,अचार
मक्खन और दही......!
भूल गये पूजा-वूजा
इससे बढिया क्या दूजा..?
पानी मुंह में भर आया
पर मुश्किल में हैं भाया
इधर-उधर ताका-झाँका
डर को भ़ी हमने फांका
सुबह-सवेरे खायेंगे
पकड़े तो हम जायेंगे
आयेंगी जब बहुरानी
'कार्नफ्लेक्स'खिलाएंगी
भाप निकलते प्याले को
कैसे दूर करें खुद से ..?
एक तो बहू ऊपर से डॉक्टर !
वैसे ही लगता है ड.........र
झुंझलाती हैं,कहती हैं..
."माँ ,मोटी होती जाती हैं,
कुछ तो करिए अपना ख्याल
सारी उम्र उड़ाया माल !
अब तो कुछ 'कंट्रोल करो
सेहत का कुछ ध्यान धरो "
गर्मागर्म पराठा है
मुंह में पानी आता है
अब तो रहा न जायेगा...
होगा देखा जायेगा ....!!!
धन्यवाद है भाईजान
तरबतर हो गई जबान !!
***
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बना पराठा आलू भर के
उस पर मक्खन की गोली
मिर्च अचार दही माखन
इन चारों यारों की टोली
मक्खन लपेट चटखारे ले
खाया दही अचार मिला के
हरी मिर्च से बाज़ आया पर
पत्नी को घटना बतला के
सुनी कहानी हरी मिर्च की
लोटपोट हो गई घरवाली
हँसते हँसते मेरी प्लेट से
मिर्च उठाई पूरी खा ली
एक दोस्त की दावत में
प्यारी हरी मिर्च खुटकी थी
कुछ मत पूछो मित्रो उसने
मेरी ऐसी तैसी कर दी थी
तब से तय है हरी मिर्च को
फिर मुँह नहीं लगाऊंगा
इसका किस्सा मजेदार है
कल मैं तुम्हें सुनाऊंगा
***
| |||||
फुदक रहा नेस-काफी प्याला
गुड मार्निंग करता मतवाला
पावस में इसका मजा निराला
यह तो मुँह मीठा करने वाला
काफी की चुस्की ले ले कर
मीठी मीठी बातें कर लो
मौसम का यही तकाजा है
कुछ प्यार मुलाकातें कर लो
कली गुलाब सजी है प्लेट
प्रीति प्यार का करे निमंत्रण
घूँट घूँट मुस्काते देख
मन पर कैसे रहे नियंत्रण
****
दीप्ति गुप्ता:
दादा! आप लो हरी मिर्च का फ्लेवर,
प्रणव दी आप सम्हालों बहू के तेवर,
और ये लो, हम तो चले खा पीकर......
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|
क्या गज़ब ढा रही हैं?
हमें छोड़कर
अकेले-अकेले पराठा उड़ाने की
योजना बना रही हैं.
इतिहास गवाह है कि
हम हिन्दुस्तानी
भाषा, भूषा, धर्म, पंथ, वाद
हर मसले पर लड़ते हैं
लेकिन खाने-पीने के मामले में
हमारी एकता बेमिसाल है.
पंजाब का छोला,
मथुरा के पेड़े,
गुजरात का ढोकला,
बंगाल का रसगुल्ला,
दक्षिण का इडली-डोसा,
महाराष्ट्र का पोहा,
जबलपुर की जलेबी और
बनारस का पान
हर किसी को पसंद आता है.
खाने-खिलाने के सवाल पर
हर मतभेद बौना
और भाईचारा मजबूत हो जाता है.
इसलिए पराठे और कॉफ़ी की
खिलाई-पिलाई में
सहकारिता और सहभागिता
हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है.
अगर हम इसके बाद भी
अपने निवेदन को
अनसुना पायेंगे तो
अन्ना हजारे और
बाबा रामदेव को
भूख हडताल पर बैठायेंगे.
इस मामले की जाँच के लिये
कमल जी को राष्ट्रपति और,
प्रणव जी को
लोकायुक्त बनवायेंगे.
अब भी नहीं सुनियेगा
हमारी फ़रियाद,
तो हम आपके पुतले के आगे
बैठकर आलू ही नहीं
कई तरह के पराठे खायेंगे
और कॉफी पीकर नारे लगायेंगे
पराठा-कॉफी प्रशंसक संघ
जिंदाबाद... जिंदाबाद.
****
| ||||
हद हो गई सलिल जी.
आप तो सलिल की तरह
फ़ैल गए इधर उधर जी,
दादा और दीदी की प्लेट से
अधिकार से पराठा उठाकर ,
खा गए अगर हम जी
आपको प्यार और शरारत
क्यों नही नज़र आई इसमें जी
इससे, उससे छीनकर
कुछ खा लेना,
अपनों के देखते देखते
उनकी चटनी चट
कर जाना,
पराठा उडा लेना,
काफी का घूँट भर लेना
बढाता है प्यार जी,
कन्हैया से सीखी है
हमने यह शरारत जी,
बचपन में स्कूल उत्सवों में
हम अक्सर बनते थे 'कान्हा जी'
वही आदत
अब तक बनी हुई है सलिल जी !
तो भाया,
अन्ना और रामदेव को
मत बैठाइए हडताल पे जी,
हमारी हरकत में महसूसिए
नेह का शरबत जी
और आप
भी
शामिल हो जाईए
इस मीठी शरारत में जी .....
दीप्ति जी !
आपकी कलम का कलाम
हम तक पहुँचा, सलाम.
बहुत दिनों से कलम थी मौन,
कुछ लिखने के निवेदन पर
पूछती थी हम आपके हैं कौन?
पूरा हुआ हमारा उद्देश्य
फिर चल पड़ी है कलम.
धन्य हो रहे हैं हम.
कान्हा के ग्वाल-बालों की तरह
हम भी दधि-माखन
या यूँ कहें कि पराठा-चटनी कॉफी के
अधिग्रहण अभियान में
आपके सहभागी है.
आप तो अच्छे से जानती हैं कि
बाज़ार से खरीदकर
पकी जाम खाने में भी
वह मजा नहीं आता जो
माली की नज़र बचाकर
कच्ची जाम चुराकर
खाने में आता है.
इसलिए शरारतों के हवन में
हमारी समिधा भी समर्पित है.
निवेदन मात्र यह कि
तमाम व्यस्तताओं के बाद भी
चित्र पर कविता न रचना वर्जित है.
कृपया, यह सन्देश विजय जी व
अन्य साथियों तक भी पहुंचाइए
और फिर नयी-नयी रचनाओं का
लुत्फ़ उठाइए.
****
| ||||
आनन्द आ गया ,
दीप्ति! तुम्हारा उत्तर सबको भा गया....!
अब यह मत पूछ लेना यह "आनन्द " है कौन .......?
हम इस उम्र में भ़ी न रह पायेंगे मौन.......
चलो हमीं समाप्त कर देते हैं आपका द्वंद
प्रणव का एकमात्र प्यारा मित्र है आनन्द
जो हर पल चेष्टा करता है साथ निभाने की
जरूरत नहीं होती उसे किसी बहाने की
कहता है: " ऐ दोस्त! जिओ तो ऐसे जिओ
जैसे सब तुम्हारा है, मरो तो ऐसे कि
जैसे तुम्हारा कुछ भ़ी नहीं......."
चिंता न रखो कभी बेकार की मन में
जो होना है ,वो तो होना है हर पल में ...........
' प्रणव' का साथ क्यों खोना है ?
चंद पल जो मिले हैं जीवन के
मुंह बिसूरकर क्यों रोना है?
फिर मिले दहाड़ शेरनी की
या फिर गर्मागर्म कॉफी और
मक्खन के सँग आलू का पराँठा.......
रहो मस्त और मित्रों के सँग
लगाओ हर पल कहकहा........हा....हा....हा...
सबकी सुबह शुभ, सुंदर हो और
पूरा दिन मुस्कुराहटों से भरा रहे...
फूलों सा खिला रहे.............
हरी मिर्च
खाने की मेज़ पर आज एक
लम्बी छरहरी हरी मिर्च
अदा से कमर टेढ़ी किये
चेहरे पर मासूमियत लिये
देर से झाँक रही
मानो कह रही
सलोनी सुकुमार हूँ
जायका दे जाऊंगी
आजमा के देखिये
सदा याद आऊंगी
प्यार से उठाई
उँगलियों से सहलाई
ओठों से लगाईं
ज़रा सी खुट्की भाई
अरे वह तो मुंहजली निकली
डंक मार मार सारा मुंह जला गई
आंसू बहा गई
नानी याद आ गई
मुंह में आग भर गई
मज़ा किरकिरा कर गई
अपनी औकात तो ज़ाहिर ही की
नज़र से किये वायदे से भी
मुकर गई
पछता रहा हूँ बंधुवर
कहाँ से पड़ गई
कलेसिंन पर नज़र
सोचा समझा सारा
प्लान फ्लॉप हो गया
मुंहजली को मुंह लगाना
महापाप हो गया
चिकना छरहरा सुन्दर शरीर
भीतर छुपाये ज़हर-बुझे तीर
मुंह फुलाए * दुम उठाये
(* जहाँ खुट्की थी वही मुंह बना
सामने अकड़ी पड़ी है
दुम उसका डंठल )
काहे को मुंह लगाया
गरियाने पर अड़ी है !
दोहा;
गर्म परांठा देखकर मुंह में पानी आय
खींचो-खींचो प्यार से मक्खन पिघला जाय
खींचो-खींचो प्यार से मक्खन पिघला जाय
*****
दीप्ति जी !
आपकी कलम का कलाम
हम तक पहुँचा, सलाम.
बहुत दिनों से कलम थी मौन,
कुछ लिखने के निवेदन पर
पूछती थी हम आपके हैं कौन?
पूरा हुआ हमारा उद्देश्य
फिर चल पड़ी है कलम.
धन्य हो रहे हैं हम.
कान्हा के ग्वाल-बालों की तरह
हम भी दधि-माखन
या यूँ कहें कि पराठा-चटनी कॉफी के
अधिग्रहण अभियान में
आपके सहभागी है.
आप तो अच्छे से जानती हैं कि
बाज़ार से खरीदकर
पकी जाम खाने में भी
वह मजा नहीं आता जो
माली की नज़र बचाकर
कच्ची जाम चुराकर
खाने में आता है.
इसलिए शरारतों के हवन में
हमारी समिधा भी समर्पित है.
निवेदन मात्र यह कि
तमाम व्यस्तताओं के बाद भी
चित्र पर कविता न रचना वर्जित है.
कृपया, यह सन्देश विजय जी व
अन्य साथियों तक भी पहुंचाइए
और फिर नयी-नयी रचनाओं का
लुत्फ़ उठाइए.
****
प्रणव भारती
*****
मित्रो !
अजी वाह संतोष जी,
ढेर सराहना
आपका अनोखा ढंग जी
आपने भी भर दिया
अल्पना में रंग जी
आप हुईं लेट जी
पर मिल गई आपको
पराठे की प्लेट जी
फुदकती हुई काफी भी
गुडमार्निंग के प्याले में
फिर क्या रहा बाकी जी
हम मांगते रहे माफ़ी जी
देख हमारी लार टपकते
हँसती रहीं भाभी जी
अरे वाह संतोष,
दीप्ति
वाह क्या बात है?
--
---मंजु महिमा
सम्पर्क-+91 9925220177
दीप्ति जी !
आपकी कलम का कलाम
हम तक पहुँचा, सलाम.
बहुत दिनों से कलम थी मौन,
कुछ लिखने के निवेदन पर
पूछती थी हम आपके हैं कौन?
पूरा हुआ हमारा उद्देश्य
फिर चल पड़ी है कलम.
धन्य हो रहे हैं हम.
कान्हा के ग्वाल-बालों की तरह
हम भी दधि-माखन
या यूँ कहें कि पराठा-चटनी कॉफी के
अधिग्रहण अभियान में
आपके सहभागी है.
आप तो अच्छे से जानती हैं कि
बाज़ार से खरीदकर
पकी जाम खाने में भी
वह मजा नहीं आता जो
माली की नज़र बचाकर
कच्ची जाम चुराकर
खाने में आता है.
इसलिए शरारतों के हवन में
हमारी समिधा भी समर्पित है.
निवेदन मात्र यह कि
तमाम व्यस्तताओं के बाद भी
चित्र पर कविता न रचना वर्जित है.
कृपया, यह सन्देश विजय जी व
अन्य साथियों तक भी पहुंचाइए
और फिर नयी-नयी रचनाओं का
लुत्फ़ उठाइए.
****
प्रणव भारती
वाह ! वाह!
आनन्द आ गया,
हम इस उम्र में भ़ी न रह पायेंगे मौन.......
चलो हमीं समाप्त कर देते हैं आपका द्वंद
प्रणव का एकमात्र प्यारा मित्र है आनन्द
जो हर पल चेष्टा करता है साथ निभाने की
जरूरत नहीं होती उसे किसी बहाने की
कहता है" ऐ दोस्त ! जीओ तो ऐसे जीओ
जैसे सब तुम्हारा है,मरो तो ऐसे कि
जैसे तुम्हारा कुछ भ़ी नहीं......."
चिंता न रखो कभी बेकार की मन में
जो होना है ,वो तो होना है हर पल में ...........
' प्रणव' का साथ क्यों खोना है ?
चंद पल जो मिले हैं जीवन के
मुंह बिसूरकर क्यों रोना है?
फिर मिले दहाड़ शेरनी की
या फिर गर्मागर्म कॉफी और
मक्खन के सँग आलू का पराँठा.......
रहो मस्त और मित्रों के सँग
लगाओ हर पल कहकहा........हा....हा....हा... .
सबकी सुबह शुभ,सुंदर हो
आनन्द आ गया,
दीप्ति तुम्हारा उत्तर सबको भा गया....!
अब यह मत पूछ लेना ये "आनन्द " है कौन .......?हम इस उम्र में भ़ी न रह पायेंगे मौन.......
चलो हमीं समाप्त कर देते हैं आपका द्वंद
जो हर पल चेष्टा करता है साथ निभाने की
जरूरत नहीं होती उसे किसी बहाने की
कहता है" ऐ दोस्त ! जीओ तो ऐसे जीओ
जैसे सब तुम्हारा है,मरो तो ऐसे कि
चिंता न रखो कभी बेकार की मन में
जो होना है ,वो तो होना है हर पल में ...........
' प्रणव' का साथ क्यों खोना है ?
चंद पल जो मिले हैं जीवन के
फिर मिले दहाड़ शेरनी की
मक्खन के सँग आलू का पराँठा.......
रहो मस्त और मित्रों के सँग
सबकी सुबह शुभ,सुंदर हो
और पूरा दिन मुस्कुराहटों से भरा रहे...............
फूलों सा खिला रहे.............
***

| ||||
आदरणीय दीप्ती जी ,आचार्य जी ,दादा कमल जी,
प्रणव जी आप सभी की शरारत हमें बहुत भायी और हमारा भी मन मचल गया, इसमें
शामिल होने के लिये ......पेशे खिदमत है ....
आलू पराठा औ पकोड़ी संग
हरी मर्च का जायका हो संग
मिल जाये कॉफ़ी गरमा गरम
बरसात में आ जाएगा रंग
पर ज्यादा रंग जो चढ़ा
छिड़ जाएगी पेट में जंग
बरसात का है ये मौसम
दिनचर्या ना करना भंग
सादा जीवन उच्च विचार
काम आएगा यही आचार
ज्यादा होना ना दबंग
दीप्ती जी , आचार्य जी...
आप दोनों की छीना झपटी में
देखा, मिल गई हमें प्लेट जी
पकवानों से भरी, संग कॉफ़ी जी
आपके स्नेह के मोती से सजी जी
| ||||
ज़िन्दगी जिंदादिली का नाम है......
मुर्दादिल क्या ख़ाक जिया करते हैं .....
चलिए...आईये ,सबसे हंस -बोल लें
दोस्ती में मिठास घोल लें
न जाने कितने दिन की है ज़िन्दगी
फिर बेकार के गमों को क्यों
सिर पर ओढ़ लें ..........
माना की मुश्किलें हैं बहुत
गम नासूर भ़ी बन जाते हैं
पर ...जिन्दगी को लेलें सहज
तो काटें भ़ी फूल से खिल जाते हैं
फिर साथ हो आप जैसे सब मित्रों का
तो अंधियारे में भ़ी सौ-सौ चिराग जल जाते हैं........!
आमीन.............!
***
| ![]() | ![]() ![]() | ||
|
ढेर सराहना
आपका अनोखा ढंग जी
आपने भी भर दिया
अल्पना में रंग जी
आप हुईं लेट जी
पर मिल गई आपको
पराठे की प्लेट जी
फुदकती हुई काफी भी
गुडमार्निंग के प्याले में
फिर क्या रहा बाकी जी
हम मांगते रहे माफ़ी जी
देख हमारी लार टपकते
हँसती रहीं भाभी जी
*****

| ||||
क्या रही थी सोच
यहाँ है पराठों की मौज
खा लो जल्दी - जल्दी
ऎसी दावत मिलती नहीं रोज.......
सस्नेह,
****
__,_._,___
| ![]() ![]() | |||
|

सब खटाखट
,
चटाचट परांठे चटनी खाए जा रहे हैं,
और हम तो इस गुथाम्गुथी में
बिचारे
पीछे ही रह गए ....
आपने .सब ख़तम ही कर डाले..
ज़िंदगी भर बेलते रहे ,
मिला-मिलाकर आलू और मसाले
तरह-तरह के आलू के परांठे,
लेते रहे लुत्फ़ ,
मक्खन लगा-लगाकर,
गर्मागर्म खिलाने का||
पर जब बारी आई हमारी ,
तो न बचे आलू और न ही मक्खन,
फिर भी हमें बड़े स्वाद लगे ,
वे परांठे क्योंकि
खाने वालों की प्रशंसा ने ,
कर दिया था मक्खन का काम
और अपनों के प्यार ने ,
भर दिए थे उसमें आलू.
उनके तृप्त चेहरों ने ,
गरमा भी दिया उन्हें,
सच,इतना मज़ा आया ,
इतना मज़ा आया मुझे, 
ऐसा किसी को न आया होगा.
अगर लेना चाहते हैं ऐसा स्वाद
तो आप भी शुरू हो जाइए ,
अपने प्रिय को अपने हाथ से बना
आलू का परांठा ,प्यार से खिलाइए,
बिना मक्खन के ही,
असली मक्खन का स्वाद जान जाइए.
फिर बदले में
उनकी गर्म कॉफ़ी के प्याले से,
अपनी थकान दूर भगाइए 
शुभकामनाओं के साथ
मंजु महिमा
शुभेच्छु
मंजु
'तुलसी क्यारे सी हिन्दी को,
हर आँगन में रोपना है.
यह वह पौधा है जिसे हमें,
नई पीढ़ी को सौंपना है. '
****
14 टिप्पणियां:
vijay ✆ द्वारा yahoogroups.com
4:28 am (10 घंटे पहले)
kavyadhara
आ० ’सलिल’ जी,
क्या बात है! आपकी प्लेट देख कर हमारे लिए भी नीरा जी ने अभी-अभी गोभी, प्याज़ और मिर्ची के पकोड़े बनाए हैं..आपको धन्यवाद !
विजय
आलू के मक्खन के साथ गर्मागर्म परांठे का मजा ही कुछ और है
आपने सुबह सुबह खिलाया,बिटिया को धन्यवाद करने का मन हो आया|
सादर
प्रणव भारती
- mcdewedy@gmail.com
चित्र दिखाई नहीं दिया है, परन्तु कतिपय सदस्यगण का सन्दर्भ अच्छा लगा.
महेश चन्द्र द्विवेदी
sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com
वाह आचार्य जी
यह मौसम और आलू का पराठा क्या कहने -
Pranava Bharti ✆ yahoogroups.com
kavyadhara
वाह....दादा
क्या कहने,
एक तो संजीव जी ने सुबह-सुबह मुंह में पानी भरवाया,
ऊपर से आपने हरी मिर्च का जायका भ़ी करवाया.....
अब तो खैर नहीं परांठे की ! एक बेचारा ,भूखों का मारा......!
कितने टुकड़े करवाएगा ,कैसे सबको तृप्त कराएगा ?
बहुत सुंदर दादा
मज़ा आ गया..............
सादर
प्रणव भारती
आदरणीय संजीव जी,
दादा और प्रणव दीदी ने तो आलू के पराठें , मक्खन की डली, चटनी आचार को लेकर इतने चटखारे लेकर कविता रची कि हमें लगा अब हमें लिखने के बजाय, सबकी प्लेट से पराठें उठा कर सीधे खा ही लेने चाहिए - सो देखिए ^O^||3 eat क्या ज़ायका है ...अहा चटनी तो मस्त बनी है ......शुक्रिया संजीव जी, दादा और दीदी.......!!!!
दादा आप लो हरी मिर्च का फ्लेवर,
प्रणव दी आप सम्हालों बहू के तेवर,
और ये लो, हम तो चले खा पीकर......:)) laughing =)) rolling on the floor
सादर,
दीप्ति
deepti gupta ✆ द्वारा yahoogroups.com
kavyadhara
बहुत खूब 'कहवा गुण गान '.......!
अतिस्वादिष्ट कविता के लिए ढेर सराहना स्वीकारे !
सादर,
दीप्ति
deepti gupta ✆ द्वारा yahoogroups.com
kavyadhara
=D> applause =D> applause =D> applause जय हो दादा के कवित्व की ! सच में कमाल है आपकी लेखन क्षमता और ऊर्जा !
अपने पे शर्म आती है कि हम कितने निष्क्रिय हैं और खाली दिमाग हैं .......
ढेर सराहना के साथ,
सादर,
दीप्ति
sn Sharma ✆ ahutee@gmail.com द्वारा yahoogroups.com kavyadhara
धन्य है आचार्य जी , विद्वता के साथ साथ आपकी विनोद-प्रियता को भी
सादर
कमल
sn Sharma ✆ ahutee@gmail.com द्वारा yahoogroups.com kavyadhara
वाह दीप्ति जी,
आखिर धर गईं नहले पर दहला ना ?
दादा
- kanuvankoti@yahoo.com
वाह क्या प्यारी शरारत है, दीप्ति जी, प्रणव जी सलिल जी, दादा - सब एक से बढ़ एक हाज़िर जवाब ..काव्यधारा आप सबसे गुलज़ार है,
मस्ती से झूमता हुआ,
कनु
deepti gupta ✆ drdeepti25@yahoo.co.in द्वारा yahoogroups.com kavyadhara
=D> applause मरहबा , =D> applause मरहबा, =D> applause मरहबा
सस्नेह,
दीप्ति
santosh.bhauwala@gmail.com द्वारा yahoogroups.com kavyadhara
आदरणीय दीप्ती जी ,आचार्य जी ,दादा कमल जी, प्रणव जी आप सभी की शरारत हमें बहुत भायी और हमारा भी मन मचल गया
manjumahimab8@gmail.com
वाह क्या बात है? सब खटाखट , चटाचट परांठे चटनी खाए जा रहे हैं, और हम तो इस गुथाम्गुथी में बिचारे पीछे ही रह गए ....आपने .सब ख़तम ही कर डाले..
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