ग़ज़ल:
जब जब....
मैत्रयी अनुरूपा
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जब जब उनसे बातें होतीं
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- maitreyi_anuroopa@yahoo.com
जब जब....
मैत्रयी अनुरूपा
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जब जब उनसे बातें होतीं
बेमौसम बरसातें होतीं
जब भी खेले खेल किसी ने
केवल अपनी मातें होतीं
सपने सुख के जिनमें आते
काश कभी वो रातें होती
कुर्सी को तो मिलती आईं
हमको भी सौगातें होती
अनुरूपा की कलम चाहती
कभी दाद की पांतें होती*******************
- maitreyi_anuroopa@yahoo.com
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