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शनिवार, 21 जुलाई 2012

नर्मदाष्टक ॥मणिप्रवाल मूल व हिंदी काव्यानुवाद॥, आचार्य संजीव 'सलिल'

    .. ॥ नर्मदाष्टक ॥ मणिप्रवाल मूलपाठ॥ ..
॥नर्मदाष्टक ॥मणिप्रवाल हिंदी काव्यानुवाद॥
                   संजीव वर्मा "सलिल"

                      

देवासुरा सुपावनी नमामि सिद्धिदायिनी,
त्रिपूरदैत्यभेदिनी विशाल तीर्थमेदिनी ।
शिवासनी शिवाकला किलोललोल चापला,
तरंग रंग सर्वदा नमामि देवि नर्मदा ।।१।।















सुर असुरों को पावन करतीं सिद्धिदायिनी,
त्रिपुर दैत्य को भेद विहँसतीं तीर्थमेदिनी।
शिवासनी शिवकला किलोलित चपल चंचला,
.भक्तिभाव में लीन सर्वदा, नमन नर्मदा ॥१॥

                         

विशाल पद्मलोचनी समस्त दोषमोचनी,
गजेंद्रचालगामिनी विदीप्त तेजदामिनी ।।
कृपाकरी सुखाकरी अपार पारसुंदरी,
तरंग रंग सर्वदा नमामि देवि नर्मदा ।।२।।














नवल कमल से नयन, पाप हर हर लेतीं तुम,
गज सी चाल, दीप्ति विद्युत सी, हरती भय तम।
रूप अनूप, अनिन्द्य, सुखद, नित कृपा करें माँ‍
भक्तिभाव में लीन सर्वदा, नमन नर्मदा ॥२॥

                       











तपोनिधी तपस्विनी स्वयोगयुक्तमाचरी,
तपःकला तपोबला तपस्विनी शुभामला ।
सुरासनी सुखासनी कुताप पापमोचनी,
तरंग रंग सर्वदा नमामि देवि नर्मदा ।।३।।















सतत साधनारत तपस्विनी तपोनिधी तुम,
योगलीन तपकला शक्तियुत शुभ हर विधि तुम।
पाप ताप हर, सुख देते तट, बसें सर्वदा,
भक्तिभाव में लीन सर्वदा, नमन नर्मदा ॥३॥

                     

कलौमलापहारिणी नमामि ब्रम्हचारिणी,
सुरेंद्र शेषजीवनी अनादि सिद्धिधकरिणी ।
सुहासिनी असंगिनी जरायुमृत्युभंजिनी,
तरंग रंग सर्वदा नमामि देवि नर्मदा ।।४।।














ब्रम्हचारिणी! कलियुग का मल ताप मिटातीं,
सिद्धिधारिणी! जग की सुख संपदा बढ़ातीं ।
मनहर हँसी काल का भय हर, आयु दे बढ़ा,
भक्तिभाव में लीन सर्वदा, नमन नर्मदा ॥४॥

                    
मुनींद्र ‍वृंद सेवितं स्वरूपवन्हि सन्निभं,
न तेज दाहकारकं समस्त तापहारकं ।
अनंत ‍पुण्य पावनी, सदैव शंभु भावनी,
तरंग रंग सर्वदा नमामि देवि नर्मदा ।।५।।














अग्निरूप हे! सेवा करते ऋषि, मुनि, सज्जन,
तेज जलाता नहीं, ताप हर लेता मज्जन ।
शिव को अतिशय प्रिय हो पुण्यदायिनी मैया,
भक्तिभाव में लीन सर्वदा, नमन नर्मदा ॥५॥

                       












षडंगयोग खेचरी विभूति चंद्रशेखरी,
निजात्म बोध रूपिणी, फणीन्द्रहारभूषिणी ।
जटाकिरीटमंडनी समस्त पाप खंडनी,
तरंग रंग सर्वदा नमामि देवि नर्मदा ।।६।।















षडंग योग, खेचर विभूति, शशि शेखर शोभित,
आत्मबोध, नागेंद्रमाल युत मातु विभूषित ।
जटामुकुट मण्डित देतीं तुम पाप सब मिटा,
भक्तिभाव में लीन सर्वदा, नमन नर्मदा ॥६


भवाब्धि कर्णधारके!, भजामि मातु तारिके!
सुखड्गभेदछेदके! दिगंतरालभेदके!
कनिष्टबुद्धिछेदिनी विशाल बुद्धिवर्धिनी,
तरंग रंग सर्वदा नमामि देवि नर्मदा ।।७।।













 कर्णधार! दो तार, भजें हम माता तुमको,
दिग्दिगंत को भेद, अमित सुख दे दो हमको ।
बुद्धि संकुचित मिटा, विशाल बुद्धि दे दो माँ!,
भक्तिभाव में लीन सर्वदा, नमन नर्मदा ॥७॥

                                         

समष्टि अण्ड खण्डनी पताल सप्त भैदिनी,
चतुर्दिशा सुवासिनी, पवित्र पुण्यदायिनी ।
धरा मरा स्वधारिणी समस्त लोकतारिणी,
तरंग रंग सर्वदा नमामि देवि नर्मदा ।।८।।















भेदे हैं पाताल सात सब अण्ड खण्ड कर,
पुण्यदायिनी! चतुर्दिशा में ही सुगंधकर ।
सर्वलोक दो तार करो धारण वसुंधरा,
भक्तिभाव में लीन सर्वदा, नमन नर्मदा ॥८॥



॥साभारःनर्मदा कल्पवल्ली, ॐकारानंद गिरि॥
संपर्कः दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.इन




Acharya Sanjiv verma 'Salil' चलभाष: ९४२५१८३२४४
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in

6 टिप्‍पणियां:

समयचक्र ने कहा…

बहुत सुन्दर हिंदी में अनुवाद किया है ...

नर्मदे हर ...

deepti gupta ✆ द्वारा yahoogroups.com ने कहा…

deepti gupta ✆ द्वारा yahoogroups.com

kavyadhara


आदरणीय संजीव जी,
आपका परिश्रम नमन करने योग्य है!कितनी मेहनत और लगन से आप अनुवाद करते हैं, फिर चित्रों का संचयन, उन्हें चस्पा करना, बहुत खूब, ......अतिसुन्दर, अद्भुत, अनुपम प्रस्तुति और उतना ही उत्तम अनुवाद!

ढेर शुभकामनाओं और सराहना के साथ,

सादर,
दीप्ति

Pranava Bharti ✆ yahoogroups.com ने कहा…

pranavabharti@gmail.com द्वारा yahoogroups.com kavyadhara


आ.आचार्य जी
आपको सादर,करबद्ध नमन
कितना पावन यह चित्र दिखा
उज्ज्वल कर दिया है मन-तम को
हम तो हैं लोहे से केवल
पारस बन सफल किया जीवन ||

बड़ी विनम्रता व साधुवाद सहित
आपको शत शत नमन
सादर
प्रणव भारती

achal verma ✆ ने कहा…

achalkumar44@yahoo.com ekavita


आ. आचार्य जी ,
स्नेह भरी यह नेह नर्वदा
है गंगा सी पूज्य सलिला
यही प्रार्थना है हम सब की
धारा अक्षुण रहे सदा

आपके इस चित्रमय रचना को एकाग्र होकर पढ़ने से बहुत ही आनंद आया। अचल वर्मा

salil ने कहा…

अचल जी!
आपको यह प्रयास रुचा तो मेरे कर्म सफल हुआ. नर्मदा तट की शिलोक के कार्बनिक परीक्षण के अनुसार वे ६ करोड़ वर्ष पुरानी हैं जबकि हिमालय को भूगोल में बेबी मौंतें कहा जाता है जिसकी उम्र १० लाख वर्ष के आसपास अनुमानित है. गंगा का जन्म हिमालय के बाद का है. लोक मान्यता है कि गंगा दशहरा के दिन गंगा नर्मदा के दर्शन कर परनाम करने आते हैं. यह भी कि गंगा स्नान से मिलनेवाला पुण्य नर्मदा के दर्शन मात्र से मिल जाता है. नर्मदा विश्व की एक मात्र नदी है जिसकी उद्गम से समुद्र में मिलने तक परिक्रमा हर साल सैंकड़ों पदयात्रियों द्वारा की जाती है. नर्मदा से जुड़ी अनेक कथानक कालांतर में राज्य सत्ता गंगा-यमुना के क्षेत्र में स्थानांतरित होने के बाद रचे गये ग्रंथों में गंगा के नाम पर कही गयीं और प्रसिद्ध हो गयीं. अस्तु...

Pranava Bharti ✆ ने कहा…

pranavabharti@gmail.com द्वारा yahoogroups.com ekavita


आ. आचार्य जी
आपसे बहुत ज्ञान प्राप्त हो रहा है|जिनके बारे में हमअपने दिन भर के उलटे-सीधे कामों में व्यस्तता का दिखावा करके सोच भ़ी नही पाते थे,वही ज्ञान आपके माध्यम बिन सोचे व बिन मांगे ही हमें प्राप्त हो रहा है|लगता है जीवन के दिन फिर से पीछे लौट चलें और हम सब कुछ भूलकर आपसे नित नया सीखकर अपनी ज़िन्दगी को सफल बनाते रहें|
धन्यवाद सहित
सादर
प्रणव भारती