चित्र पर कविता: ३
चित्र पर कविता: २ की अभूतपूर्व सफलता के लिये आप सबको बहुत-बहुत बधाई. एक से बढ़कर एक रचनाएँ चित्र के स्वाद को जिव्हा तक पहुँचाने में सफल रहीं.
चित्र और कविता की प्रथम कड़ी में शेर-शेरनी संवाद तथा कड़ी २ में मिर्च-पराठे पर आपकी कलम के जौहर देखने के बाद सबके समक्ष प्रस्तुत है कड़ी ३ का चित्र.
इसे निरखिए-परखिये और कल्पना के घोड़ों को बेलगाम दौड़ने दीजिये.
मेघदूत की जल-धाराओं के साथ काव्यधाराओं का आनंद लेने के पल की प्रतीक्षा हम सब बहुत बेकरारी से कर ही रहे हैं. निवेदन है कि जो अब तक इस सारस्वत अनुष्ठान में सहभागी नहीं हो सके हैं, अब सबके साथ कलम से कलम मिलाकर कलम-ताल करें.
ओहो !.
बड़ा मुश्किल है समझ पाना
चित्र और कविता की प्रथम कड़ी में शेर-शेरनी संवाद तथा कड़ी २ में मिर्च-पराठे पर आपकी कलम के जौहर देखने के बाद सबके समक्ष प्रस्तुत है कड़ी ३ का चित्र.
इसे निरखिए-परखिये और कल्पना के घोड़ों को बेलगाम दौड़ने दीजिये.
मेघदूत की जल-धाराओं के साथ काव्यधाराओं का आनंद लेने के पल की प्रतीक्षा हम सब बहुत बेकरारी से कर ही रहे हैं. निवेदन है कि जो अब तक इस सारस्वत अनुष्ठान में सहभागी नहीं हो सके हैं, अब सबके साथ कलम से कलम मिलाकर कलम-ताल करें.
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बड़ा मुश्किल है समझ पाना
संभालें दिल या संभालें खजाना
खजाने का पलड़ा लगता है भारी
दिल बेचारे की क्या बिसात जो
खजाने पर चोट कर सके करारी
ये तो दिल लगता है भोला भाला
इसीलिए तो तराजू ने दिल को
हलका बना डाला ......||
क्या बढिया हो दोनों पलड़े अपने हो जाएं
दिल भ़ी संभला रहे और करारों में भ़ी खो जाएँ
अब कोई और उतरे मैदान में
तब और कुछ कहा जाए तराजू की शान में ||
*
भ्रष्टाचारी नेताओं को रुपयों से तौला जाता है
बाहुबली अपराधी को वोटों से तौला जाता है
अब हाय राम यह कैसा समय आ गया है
मासूम दिल भी जो नोटों से तौला जाता है
*
पैसा फेंको इज्ज़त लूटो नोटों की मारामारी है
इस मायावी दुनिया में दिल की कैसी लाचारी है
दिल के खरीदार फैले हैं शहरों में और गावों में
प्यार बना व्यापार आधुनिकता की बलिहारी है
*
न्याय कि मलिका एक तराजू पकडे हुए खडी है
आँखों पर पट्टी बँधी, नहीं डंडी पर नज़र गडी है
धर्म न्याय ईमान यहाँ भी नोटों में बिकता है
अब दिल भी तुलता नोटों से कैसी मक्कार घड़ी है
****
~ दीप्ति
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बाहुबली अपराधी को वोटों से तौला जाता है
अब हाय राम यह कैसा समय आ गया है
मासूम दिल भी जो नोटों से तौला जाता है
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पैसा फेंको इज्ज़त लूटो नोटों की मारामारी है
इस मायावी दुनिया में दिल की कैसी लाचारी है
दिल के खरीदार फैले हैं शहरों में और गावों में
प्यार बना व्यापार आधुनिकता की बलिहारी है
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न्याय कि मलिका एक तराजू पकडे हुए खडी है
आँखों पर पट्टी बँधी, नहीं डंडी पर नज़र गडी है
धर्म न्याय ईमान यहाँ भी नोटों में बिकता है
अब दिल भी तुलता नोटों से कैसी मक्कार घड़ी है
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'दिल की आँखों ने' तराजू के पलडों को हल्का और भारी नहीं - ऊंचा और नीचा देखा !
दिल का पलड़ा सदियों से ऊँचा रहा - धन-दौलत,जात-पांत सब पे भारी पड़ता रहा .....!
दिल में भरा प्यार बनाता हैं उसे उन्नत
निश्छल संवेदनाएँ बनाती उसे जन्नत
हर दिल में भरी होती हैं रुपहली
मन्नत
दिल की लगी के आगे सिकंदर भी हुआ नत !!
drdeepti25@yahoo.co.in
(Alexander had fallen in love with Roxane)
***
मधु सोसी
सच्ची है तस्वीर , सच कहता तराजू
दिल से भारी पैसा , कैसा है भा ,राजू
***
मधु सोसी
सच्ची है तस्वीर , सच कहता तराजू
दिल से भारी पैसा , कैसा है भा ,राजू
रूपया तो भारी होना ही था
शक नही इसमें , न कल था न आजू
प्रणव की बात लगी सही दोनों ही हो पास तो क्या बात ? क्या बात ?
<sosimadhu@gmail.com>
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न तोलो दिल को किसी तराजू में
काफी वजन है इस छोटे से दिल में
धन दोलत से क्या इससे जीत पाओगे
पूरी कायनात बस जाती है इसकी एक धडकन में
- kiran5690472@yahoo.co.in
***
चित्र और कविता ३
संजीव 'सलिल'
*
: मुक्तक :
जो न सुनेगा दिल की बात,
दौलत चुन पायेगा मात..
कहे तराजू: 'आँखें खोल-
दिल को दे दिल की सौगात..
*
दिल में है साँसों का वास.
दौलत में बसती है आस..
फल की फिक्र करे क्यों व्यर्थ-
समय तुला गह करो प्रयास..
*
जड़ धन का होगा ही ह्रास.
दिव्य चेतना भरे उजास..
दिल पर दिल दे खुद को वार-
होता है जग वृथा उदास..
*
चाहे पाना और 'सलिल' धन पाकर दिल.
इच्छाओं का होता जाता चाकर दिल..
दान करे, मत मान करे तो हो हल्का-
धन गिरता है, ऊपर उठता जाता दिल..
*
'सलिल' तराजू को मत थामो आँख बंद कर.
दिल को नगमें सरस सुनाओ सदा छंद कर..
धन को पूज न निर्धन होना, ज्ञान-ध्यान कर-
जो देता प्रभु धन्यवाद कह, नयन बंद कर..
***
चित्र और कविता ३
संजीव 'सलिल'
*
: मुक्तक :
जो न सुनेगा दिल की बात,
दौलत चुन पायेगा मात..
कहे तराजू: 'आँखें खोल-
दिल को दे दिल की सौगात..
*
दिल में है साँसों का वास.
दौलत में बसती है आस..
फल की फिक्र करे क्यों व्यर्थ-
समय तुला गह करो प्रयास..
*
जड़ धन का होगा ही ह्रास.
दिव्य चेतना भरे उजास..
दिल पर दिल दे खुद को वार-
होता है जग वृथा उदास..
*
चाहे पाना और 'सलिल' धन पाकर दिल.
इच्छाओं का होता जाता चाकर दिल..
दान करे, मत मान करे तो हो हल्का-
धन गिरता है, ऊपर उठता जाता दिल..
*
'सलिल' तराजू को मत थामो आँख बंद कर.
दिल को नगमें सरस सुनाओ सदा छंद कर..
धन को पूज न निर्धन होना, ज्ञान-ध्यान कर-
जो देता प्रभु धन्यवाद कह, नयन बंद कर..
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2 टिप्पणियां:
sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com
kavyadhara
आ० आचार्य जी,
चित्र पर अति सुन्दर सटीक मुक्तक | दिल बाग़ बाग हो गया |
विशेष-
चाहे पाना और 'सलिल' धन पाकर दिल.
इच्छाओं का होता जाता चाकर दिल..
दान करे, मत मान करे तो हो हल्का-
धन गिरता है, ऊपर उठता जाता दिल..
सादर,
कमल
pranavabharti@gmail.com द्वारा yahoogroups.com kavyadhara
आ.आचार्य जी
आपको शत शत वंदन|
बहुत सुंदर शब्दों में बहुत गहन भाव पिरोकर सदा की भांति ही आप उच्चासीन हैं|
इस प्रतिभा संपन्न रचना के लिए बहुत बहुत साधुवाद
हम तो इस दिल पर अभी भ़ी कुछ चुहलबाजियों की अपेक्षा कर रहे हैं|
मंच पर खिलखिलाहट बिखरने की प्रतीक्षा कर रहे हैं|
सादर
प्रणव भारती
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