हर किसी ने मन रूपी नेत्रों से तुम्हे अलग-अलग रूपों में देखा.
कहीं किसी ने प्रेम का प्रतीक मान प्रेम बांटते देखा, तो कहीं किसी ने वियोग में विरहनी बन अश्रु धारा बहाते देखा! कभी किसी ने हर्षित चंचला बन मचलते देखा, तो कहीं रूद्र रूप धारण कर साधारण जन को अपनी शक्ति से डराते देखा ! किसी ने इन नन्ही नन्ही बूंदों में जीवन के हर पड़ाव को आते-जाते देखा, कहीं किसी ने चातक बन अपने सपनों को पूरा होते देखा !
मैंने अपने जीवन में तुम्हें को मन का अवसाद धोते देखा, माँ बन कर तन को, मन को, धोते-स्वच्छ करते देखा!
माँ वर्षा तुम हर वर्ष विभिन्न रूपों में ऐसे ही आते रहना भीगा-भीगा, प्यारा-प्यारा खुशहाली बरसाता आशीर्वाद देते रहना !
* "kiran" <kiran5690472@yahoo.co.in> |
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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रविवार, 15 जुलाई 2012
गद्य गीत: वर्षा -- किरण
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