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या तो अवधूतों की बारिश
या फिर मजबूतों की बारिश.
जिंदा लाशों की बस्ती में
अब जैसे भूतों की बारिश.
चंद सवालों की रिमझिम सी
फिर चप्पल-जूतों की बारिश.
उजले मुंह काले कर देगी
काली करतूतों की बारिश.
सबके द्वार कहाँ होती है
अपने बल-बूतों की बारिश.
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Madan Mohan Sharma ✆ madanmohanarvind@gmail.com
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