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रविवार, 15 जुलाई 2012

गजल: बारिश --मदन मोहन शर्मा







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या तो अवधूतों की बारिश
या फिर मजबूतों की बारिश.

जिंदा लाशों की बस्ती में 
अब जैसे भूतों की  बारिश.
चंद सवालों की रिमझिम सी 
फिर  चप्पल-जूतों की बारिश.

उजले मुंह काले कर देगी 
काली करतूतों की बारिश.

सबके द्वार कहाँ होती है 
अपने बल-बूतों की बारिश.
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Madan Mohan Sharma  madanmohanarvind@gmail.com

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