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सोमवार, 18 अक्तूबर 2010

दोहा सलिला: जिज्ञासा ही धर्म है संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:

जिज्ञासा ही धर्म है

संजीव 'सलिल'
 *
धर्म बताता है यही, निराकार है ईश.
सुनते अनहद नाद हैं, ऋषि, मुनि, संत, महीश..

मोहक अनहद नाद यह, कहा गया ओंकार.
सघन हुए ध्वनि कण, हुआ रव में भव संचार..

चित्र गुप्त था नाद का. कण बन हो साकार.
परम पिता ने किया निज, लीला का विस्तार..

अजर अमर अक्षर यही, 'ॐ' करें जो जाप.
ध्वनि से ही इस सृष्टि में, जाता पल में व्याप..

'ॐ' बना कण फिर हुए, ऊर्जा के विस्फोट.
कोटि-कोटि ब्रम्हांड में, कण-कण उसकी गोट.. 

चौसर पाँसा खेल वह, वही दाँव वह चाल.
खिला खेलता भी वही, होता करे निहाल..

जब न देख पाते उसे, लगता भ्रम जंजाल.
अस्थि-चर्म में वह बसे, वह ही है कंकाल.

धूप-छाँव, सुख-दुःख वही, देता है पोशाक.  
वही चेतना बुद्धि वह, वही दृष्टि वह वाक्..

कर्ता-भोक्ता भी वही, हम हैं मात्र निमित्त.
कर्ता जानें स्वयं को, भरमाता है चित्त..

जमा किया सत्कर्म जो, वह सुख देता नित्य.
कर अकर्म दुःख भोगती, मानव- देह अनित्य..

दीनबन्धु वह- आ तनिक, दीनों के कुछ काम.
मत धनिकों की देहरी, जा हो विनत प्रणाम..

धन-धरती है उसी की, क्यों करता भण्डार?
व्यर्थ पसारा है 'सलिल', ढाई आखर सार..

ज्यों की त्यों चादर रहे, लगे न कोई दाग.
नेह नर्मदा नित नहा, तज सारा खटराग..

जिज्ञासा ही धर्म है, ज्ञान प्राप्ति ही कर्म.
उसकी तनिक प्रतीति की, चेतनता का मर्म..


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7 टिप्‍पणियां:

achal verma ekavita ने कहा…

ज्ञानवर्धक दोहों के लिए बधाइयां , सलिल जी |
Achal Verma

Rakesh Khandelwal ekavita ने कहा…

आदरणीय

इन दोहों के विषय में कुछ भी कहना दुष्कर है. सत्य को शब्द दिये हैं आपने

यह विवाद तो व्यर्थ है,निराकार साकार
एक ॐ ही सत्य है, भ्रम बाकी संसार

सादर

राकेश

दिव्य नर्मदा divya narmada ने कहा…

वह दिनकर राकेश वह, सचल-अचल वह नित्य.
वह कविता वह अकविता, सत्यासत्य अनित्य..

sheshdhar tiwaree ने कहा…

aap yun hi rachna kariye aur ham seekhte rahen, Dhanyavaad.

Naveen C Chaturvedi ने कहा…

आपके अंदर का इंजीनियर छलक पड़ा है इन पकतियों में:

ध्वनि से ही इस सृष्टि में, जाता पल में व्याप..
'ॐ' बना कण फिर हुए, ऊर्जा के विस्फोट.......

उत्तम शब्द विन्यास:
दीनबन्धु वह- आ तनिक, दीनों के कुछ काम.

अर्जित अनुभव का सुंदर शब्दांकन:
उसकी तनिक प्रतीति ही, चेतनता का मर्म..

बहुत बहुत बधाई हो सलिल जी ........................

Ganesh Jee 'Bagi' ने कहा…

जमा किया सत्कर्म जो, वह सुख देता नित्य.
कर अकर्म दुःख भोगती, मानव- देह अनित्य..

सत्य को समर्पित दोहे, बेहतरीन कृति पढ़ कर अभिभूत हूँ |

- drajanmejay@yahoo.com ने कहा…

आद० अभिवादन,
आपके दोहे पढ्ते-पढ्ते लगा, ध्यान में हूँ
बधाई----------
सादर डा० अजय जनमेजय