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मंगलवार, 12 अक्तूबर 2010

मुक्तिका शक न उल्फत पर संजीव 'सलिल'

मुक्तिका

शक न उल्फत पर

संजीव 'सलिल'
*
शक न उल्फत पर मुझे, विश्वास पर शक आपको.
किया आँसू पर भरोसा, हास पर शक आपको..

जंगलों से दूरियाँ हैं, घास पर शक आपको.
पर्वतों को खोदकर है, त्रास पर शक आपको..

मंजिलों से क्या शिकायत?, कदम चूमेंगी सदा.
गिला कोशिश को है इतना, आस पर शक आपको..

आम तो है आम, रहकर मौन करता काम है.
खासियत उस पर भरोसा, खास पर शक आपको..

दर्द, पीड़ा, खलिश ही तो, मुक्तिका का मूल है.
तृप्ति कैसे मिल सके?, जब प्यास पर शक आपको..

कंस ने कान्हा से पाला बैर- था संदेह भी.
आप कान्हा-भक्त? गोपी-रास पर शक आपको..

मौज करता रहा जो, उस पर नजर उतनी न थी.
हाय! तप-बलिदान पर, उपवास पर शक आपको..

बहू तो संदेह के घेरे में हर युग में रही.
गज़ब यह कैसा? हुआ है सास पर शक आपको..

भेष-भूषा, क्षेत्र-भाषा, धर्म की है भिन्नता.
हमेशा से, अब हुआ सह-वास पर शक आपको..

गले मिलने का दिखावा है न, चाहत है दिली.
हाथ में है हाथ, पर अहसास पर शक आपको..

राजगद्दी पर तिलक हो, या न हो चिंता नहीं.
फ़िक्र का कारण हुआ, वन-वास पर शक आपको..    

बादशाहों-लीडरों पर यकीं कर धोखा मिला.
छाछ पीते फूँक, है रैदास पर शक आपको..


पतझड़ों पर कर भरोसा, 'सलिल' बहता ही रहा.
बादलों कुछ कहो, क्यों मधुमास पर शक आपको??

सूर्य शशि तारागणों की चाल से वाकिफ 'सलिल'.
आप भी पर हो रहा खग्रास पर शक आपको..

दुश्मनों पर किया, जायज है, करें, करते रहें.
'सलिल' यह तो हद हुई, रनिवास पर शक आपको..
***

1 टिप्पणी:

achakumar44@yahoo.com ने कहा…

achal verma
ekavita

जिनके लिए लिखा, वही पढ़ते नहीं कभी |
हैं भाव वही , शब्द बदल जाते हैं सभी ||

Your's ,

Achal Verma