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शनिवार, 9 अक्तूबर 2010

महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम

महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम

महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम # 1
अयि गिरिनन्दिनि नन्दितमेदिनि विश्वविनोदिनि नन्दनुतेगिरिवर विन्ध्य शिरोधिनिवासिनि विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते ।भगवति हेशितिकण्ठकुटुंबिनि भूरि कुटुंबिनि भूरि क.र्तेजय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १ ॥


महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम # 2
सुरवरवर्षिणि दुर्धरधर्षिणि दुर्मुखमर्षिणि हर्षरतेत्रिभुवनपोषिणि शणकरतोषिणि किल्बिषमोषिणि घोषरते ।दनुज निरोषिणि दितिसुत रोषिणि दुर्मद शोषिणि सिन्धुसुते जयजय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २ ॥


महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम # 3
अयि जगदंब मदंब कदंब वनप्रिय वासिनि हासरतेशिखरि शिरोमणि तुणग हिमालय श.र्णग निजालय मध्यगते ।मधु मधुरे मधु कैटभ ग~न्जिनि कैटभ भ~न्जिनि रासरतेजय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ३ ॥


महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम # 4
अयि शतखण्ड विखण्डित रुण्ड वितुण्डित शुण्ड गजाधिपतेरिपु गज गण्ड विदारण चण्ड पराक्रम शुण्ड म.र्गाधिपते ।निज भुज दण्ड निपातित खण्ड विपातित मुण्ड भटाधिपतेजय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ४ ॥


महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम # 5
अयि रण दुर्मद शत्रु वधोदित दुर्धर निर्जर शक्तिभ.र्तेचतुर विचार धुरीण महाशिव दूतक.र्त प्रमथाधिपते ।दुरित दुरीह दुराशय दुर्मति दानवदूत क.र्तान्तमतेजय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ५ ॥


महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम # 6
अयि शरणागत वैरि वधूवर वीर वराभय दायकरेत्रिभुवन मस्तक शूल विरोधि शिरोधि क.र्तामल शूलकरे ।दुमिदुमि तामर दुन्दुभिनाद महो मुखरीक.र्त तिग्मकरेजय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ६ ॥


महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम # 7
अयि निज हुणक.र्ति मात्र निराक.र्त धूम्र विलोचन धूम्र शतेसमर विशोषित शोणित बीज समुद्भव शोणित बीज लते ।शिव शिव शुंभ निशुंभ महाहव तर्पित भूत पिशाचरतेजय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ७ ॥


महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम # 8
धनुरनु सणग रणक्षणसणग परिस्फुर दणग नटत्कटकेकनक पिशणग प.र्षत्क निषणग रसद्भट श.र्णग हतावटुके ।क.र्त चतुरणग बलक्षिति रणग घटद्बहुरणग रटद्बटुकेजय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ८ ॥


महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम # 9
जय जय जप्य जयेजय शब्द परस्तुति तत्पर विश्वनुतेभण भण भि~न्जिमि भिणक.र्त नूपुर सि~न्जित मोहित भूतपते ।नटित नटार्ध नटीनट नायक नाटित नाट्य सुगानरतेजय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ९ ॥


महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम # 10
अयि सुमनः सुमनः सुमनः सुमनः सुमनोहर कान्तियुतेश्रित रजनी रजनी रजनी रजनी रजनीकर वक्त्रव.र्ते ।सुनयन विभ्रमर भ्रमर भ्रमर भ्रमर भ्रमराधिपतेजय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १० ॥


महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम # 11
सहित महाहव मल्लम तल्लिक मल्लित रल्लक मल्लरतेविरचित वल्लिक पल्लिक मल्लिक भिल्लिक भिल्लिक वर्ग व.र्ते ।सितक.र्त पुल्लिसमुल्ल सितारुण तल्लज पल्लव सल्ललितेजय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ११ ॥


महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम # 12
अविरल गण्ड गलन्मद मेदुर मत्त मतणगज राजपतेत्रिभुवन भूषण भूत कलानिधि रूप पयोनिधि राजसुते ।अयि सुद तीजन लालसमानस मोहन मन्मथ राजसुतेजय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १२ ॥


महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम # 13
कमल दलामल कोमल कान्ति कलाकलितामल भाललतेसकल विलास कलानिलयक्रम केलि चलत्कल हंस कुले ।अलिकुल सणकुल कुवलय मण्डल मौलिमिलद्भकुलालि कुलेजय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १३ ॥


महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम # 14
कर मुरली रव वीजित कूजित लज्जित कोकिल म~न्जुमतेमिलित पुलिन्द मनोहर गु~न्जित र~न्जितशैल निकु~न्जगते ।निजगुण भूत महाशबरीगण सद्गुण संभ.र्त केलितलेजय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १४ ॥


महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम # 15
कटितट पीत दुकूल विचित्र मयूखतिरस्क.र्त चन्द्र रुचेप्रणत सुरासुर मौलिमणिस्फुर दंशुल सन्नख चन्द्र रुचे ।जित कनकाचल मौलिपदोर्जित निर्भर कु~न्जर कुंभकुचेजय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १५ ॥


महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम # 16
विजित सहस्रकरैक सहस्रकरैक सहस्रकरैकनुतेक.र्त सुरतारक सणगरतारक सणगरतारक सूनुसुते ।सुरथ समाधि समानसमाधि समाधिसमाधि सुजातरतेजय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १६ ॥


महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम # 17
पदकमलं करुणानिलये वरिवस्यति यो.अनुदिनन स शिवेअयि कमले कमलानिलये कमलानिलयः स कथं न भवेत ।तव पदमेव परंपदमित्यनुशीलयतो मम किं न शिवेजय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १७ ॥


महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम # 18
कनकलसत्कल सिन्धु जलैरनु सि~न्चिनुते गुण रणगभुवंभजति स किं न शचीकुच कुंभ तटी परिरंभ सुखानुभवम ।तव चरणं शरणं करवाणि नतामरवाणि निवासि शिवंजय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १८ ॥


महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम # 19
तव विमलेन्दुकुलं वदनेन्दुमलं सकलं ननु कूलयतेकिमु पुरुहूत पुरीन्दुमुखी सुमुखीभिरसौ विमुखीक्रियते ।मम तु मतं शिवनामधने भवती क.र्पया किमुत क्रियतेजय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १९ ॥


महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम # 20
अयि मयि दीनदयालुतया क.र्पयैव त्वया भवितव्यमुमेअयि जगतो जननी क.र्पयासि यथासि तथा.अनुमितासिरते ।यदुचितमत्र भवत्युररि कुरुतादुरुतापमपाकुरुतेजय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २० ॥

॥ इति श्रीमहिषासुरमर्दिनिस्तोत्रं संपूर्णम ॥

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