इस वार्ता में कुसुम ठाकुर से मुक्तिका के शिल्प पर चर्चा हुई है. अन्य पाठकों की जिज्ञासा हो तो उस पर भी चर्चा की जा सकती है.
मैं: मुक्तिका
.....डरे रहे.
संजीव 'सलिल'
*
*
हम डरे-डरे रहे.
तुम डरे-डरे रहे.
दूरियों को
निडर
हौसलों
लगन-जल
रिक्त
बाँटकर
नष्ट
जो
निज
समझिये
सार्थक
जो
****************
kusum thakur: namaste padh li muktika
रविवार को 12:43 PM पर भेजा गया
मैं: der se padhne kee saja...?
kusum thakur: avashya
sweekar hai
मैं: to ek aur jheliye
मुक्तिका
थोड़ा ज्यादा,
संजीव
थोड़ा
चाहा
अधरों
लेकिन
दूर
मिलो
'मैं'-'तू'
कहें
सात
ठोंक
मन
क्यों
जब
मिला
**************
kusum thakur: bahut achha hai achha ab yah shisya kuchh
मैं: sirf tareef n karen kamee bhee batayen tanhee to sudhar sakoonga.
poochen..
kusum thakur: muktika ke niyam batayen
रविवार को 12:48 PM पर भेजा गया
kusum thakur: achha
रविवार को 12:51 PM पर भेजा गया

मैं: अ इ उ ऋ येचारों लघु (छोटे या १ ) गिने
जाते हैं बाकी सब २.



मैं: मुखड़े में पदांत और तुकांत दोनों समान होता है. अन्य पदों में दूसरी पंक्ति का पदांत तुकांत मुखड़े के
समान
होता है.
मैं: थोड़ा ज्यादा, ज्यादा कम.
चाहा सुख तो पाया गम.
यह मुखड़ा है
पहली पंक्ति मात्राएँ : २+२ २+२ २+२ १+१ कुल १४
दूसरी पंक्ति मात्राएँ : २+२ १+१ २ २+२
१+१ कुल १४


मैं: pahalee pankti ke padbhar ( wazn ya matrayen) ke saman hee anya sabhee panktiyon ka padbhar hota hai. sanyukt akshar ko deergh (bada ya 2) mante hain.
kusum thakur: achha
रविवार को 12:54 PM पर भेजा गया
kusum thakur: achha
मैं: पद का आखिरी शब्द भार तथा तुक में समान होता है
kusum thakur: achha
समान
रविवार को 12:58 PM पर भेजा गया
चाहा
यह
पहली
दूसरी
kusum thakur: han yah hai
रविवार को 1:01 PM पर भेजा गया
मैं: दूसरा पद :
दूर करो हाथों से बम. २+१ १+२ २+२ २ १+१ = १४
मिलो गले कह बम-बम-बम. १+२ १+२ १+१ १+१ १+१ १+१ = १४
दूर
मिलो
रविवार को 1:02 PM पर भेजा गया








kusum thakur: han ab bilkul spasht ho gaya
मैं: कम, गम, नम आदि शब्द पदांत हैं
kusum thakur: han
मैं: और क्या बताऊँ?
अब लिखें मुक्तिका
kusum thakur: jo samajh me nahi ayega poochh lungi han
yah likh sakti hoon


मैं: likhna shuroo kar deejiye... haiku kee tarah....
aapkee pahalee muktika abhee rach jayegee.
kusum thakur: 25th ko main usa ja rahi hoon isliye ajkal thori si vyastata rahti hai
15 th ko ja rahi hoon
jaroor likhungi
मैं: samajh sakta hoon... vahan khoob muktika aur haiku likhen...
fk baat aur
kusum thakur: han wahan jane ke kuchh dino ke bad se jaroor likhungi
मैं: मुक्तिका के हर पद को उर्दू के शे'र की तरह अलग प्रिष्ठ भूमि या विषय पर रचा जाता है.
kusum thakur: apke jaise guru aur utsaah vardhan karne wale mile to avashya likhungi
achha
रविवार को 1:09 PM पर भेजा गया
मैं: nmn.
kusum thakur: naman
रविवार को 1:11 PM पर भेजा गया
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17 टिप्पणियां:
गुड्डोंदादी (:): बहुत ही खूब सूरत है मोतिओं की माला में पिरोय एक दम सटीक भावपूर्ण जिसे पढते ही अश्रु बह निकले
मैं: aapke man ko chhoo sakee to mera kavi-karm safal ho gaya...aur kuchh naheen chahiye.
गुड्डोंदादी (:): भाई क्या लिखू उतर निरूतर हूँ
shabd to shor hain, tamasha hain.
bhavna ke sindhu men bataha hain
marm kee baat honth se n kaho
mun hee to bhavna kee bhasha hai.
गुड्डोंदादी (:): जी
बेनामी farhankhan ने कहा…
Farhan Khan: bahut achaa sir
kya baat hai
मैं: dhanyavad.
kya inhen gazal kah sakte hain. yadi haan to ye kis bahar men hain ya bahar se baahar hain?
Farhan Khan: myghe iss baare main zyadaa jaan kaaree nahinb hai lekin itnaa kehnaa chaoongaa kee ye to ghazal se bhhe achaa ek nayaa andaaz hai...jahaan tak mughe thodee see jaan kaaree ye hai ki ghazal main zyada tar aashiqaanaa byan hotaa hai lekin aaj kal iss par bhee zyada ghaur nahi hota....mere khyal se kisee ghazal se kam nahin hai
मैं: shukriya.
Farhan Khan: main ek chota sa student hoon sir mughe se ghaltee bhee ho saktee hai
आचार्य सलिल जी,
बहुत खूब!
अधरों पर मुस्कान मिली
लेकिन आँखें पायीं नम.
"इतना तो ज़िन्दगी में किसी की खलल पड़े
हँस हँस के सुकून न आये तो आँसू निकल पड़े’ (फ़ैज़)
सस्नेह
सीताराम चंदावरकर
अच्छी मुक्तिका है ,बधाई
आचार्य सलिल ,
तन तो चमकाना सुलभ है , मन को चमकाना कठिन |
मन अगर चमकाले कोई , खुश रहेगा रात दिन ||
"मन मलीन को ढाँक रहे
क्यों तन को नित कर चम्-चम्. "
आज तक दुनिया में बस साबुन ही साबुन बन रहे |
मलिन मन धोने का साबुन है कहाँ , कोई कहे ?
Your's ,
Achal Verma
आदरणीय अचल जी,
मलिन मन धोने का उपाय बहुत पहले सन्तों ने सुझाया है।
"निन्दक नियरे राखिये आँगन कुटिर छवाय
बिन पानी साबुन बिना निर्मल होत सुभाय"
सस्नेह
सीताराम चंदावरकर
क्या बात है ! अति सुन्दर !
पढ़कर आनंद आ गया.
सादर
प्रताप
आचार्य सलिल जी,
बहुत खूब!
अधरों पर मुस्कान मिली
लेकिन आँखें पायीं नम.
"इतना तो ज़िन्दगी में किसी की खलल पड़े
हँस हँस के सुकून न आये तो आँसू निकल पड़े’ (फ़ैज़)
सस्नेह
सीताराम चंदावरकर
smchandawarkar@yahoo.com
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