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रविवार, 30 मई 2010

रोचक प्रसंग: कहने को है बहुत कुछ वृद्ध जनों के पास. ---विजय कौशल

कहने को है बहुत कुछ वृद्ध जनों के पास:             विजय कौशल, हिन्दी: 'सलिल' 
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रोचक प्रसंग:
 
एक और साल गया बीत 
जीवन-घट और गया रीत
ठंड-गरम पहले था कम
अब अधिक है ठण्ड या गरम..
 
 
 
 
 
 अभी कुछ ही दिन हुए हैं यार.
जीवन में हर तरफ था प्यार.
अब मुझको समझ आ रहा-
आता क्यों विगत पर दुलार.
 
 
 
 
शादियों में बस्ती थी जान.
खेल-कूद, दावतों में प्राण.
अब अंतिम यात्रा में साथ-
शोक-सभा में झुकाए माथ.  

 
 
 
 
 हम पार्टी में भी हैं उदास.
खुश हैं एक-दूजे के खास.
पोर-पोर में समाई पीर-
रातों में कैसे हो धीर. 

 
 
 
 
 
 
बाहर दावत का हो चाव.
तृप्ति का हमेशा अभाव.
बार-बार शंका की भीत-
गोली खा शयन बना रीत.
 
 
 
 
 
निकट-दूर जगहों की सैर.
मिल न सके कहीं हमें खैर.
वाहन में जब हुए सवार-
गद्दी चुभे जैसे हों खार.
 
 
 
 
                                                                हम जाते थे क्लब हर रात 
   बिन पिए न बनती थी बात.
 अब घर में करते आराम.
       सुन ख़बरें बीत रहीं शाम.      
 
 
 
 
  बेढब है जीवन का हाल.
    कह-सुन हो रहे हैं निहाल.
     इसलिए हर पल लो आनंद. 
 जब तक कर दे न उम्र मंद.

 
 
 
 
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