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शुक्रवार, 21 मई 2010

क्षणिकाएँ... संजीव 'सलिल'


क्षणिकाएँ...
संजीव 'सलिल'
*
कर पाता दिल
अगर वंदना
तो न टूटता
यह तय है.
*
निंदा करना
बहुत सरल है.
समाधान ही
मुश्किल है.
*
असंतोष-कुंठा
कब उपजे?
बूझे कारण कौन?
'सलिल' सियासत
स्वार्थ साधती
जनगण रहता मौन.
*
मैं हूँ अदना
शब्द-सिपाही.
अर्थ सहित दें
शब्द गवाही..
*

Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

5 टिप्‍पणियां:

दिलीप... ने कहा…

bahut umda...
असंतोष-कुंठा
कब उपजे?
बूझे कारण कौन?
'सलिल' सियासत
स्वार्थ साधती
जनगण रहता मौन.

nilesh mathur ... ने कहा…

मैं हूँ अदना
शब्द-सिपाही.
अर्थ सहित दें
शब्द गवाही..
waah! kya baat hai!

Udan Tashtari... ने कहा…

Udan Tashtari...

बढ़िया क्षणिकायें.

Shekhar Kumawat ... ने कहा…

बहुत सुंदर


bahut khub


shekhar kumawat

CLUTCH ने कहा…

CLUTCH ...

kya baat hai very touching