कुल पेज दृश्य

गुरुवार, 20 मई 2010

दोहा का रंग प्रभु त्रिवेदी के संग:

दोहा का रंग प्रभु त्रिवेदी के संग:


बन्दूकों से हल नहीं, होते कभी विवाद.
ऐसी राह निकालिए, दुनिया हो आबाद..
*
फूलों की शैया तजी, मात-पिता घर धाम.
स्वर्ण अक्षरों में लिखे उन वीरों के नाम..
*
जल संस्कृति का मूल है, जल से है निर्माण.
जल से जीवित जन्तु सब, जल प्राणों का प्राण..
*
कठिन राह का हो गया, सरल-सफल आधार.
संकल्पों की मुद्रिका, पहुँची सागर-पार..
*
वर्तमान बनकर चला, सुख-दुःख भरा अतीत.
भावी-सम्मुख है खड़ा, लिये हाथ में जीत..
*
स्वर्ण-कटोरा हाथ में, ले निकला दिनमान.
दिशा-दिशा सुख बाँटता, यही महा अभियान..
*
जागृत हो संवेदना, देश-भक्ति का भाव.
परिलक्षित होगा तभी, शनैः-शनैः बदलाव..
*
स्वस्थ्य होड़ हो आपसी, सभी बनें संपन्न.
हित साधन साधते रहें, अंतस रहे प्रसन्न..
*
धरती पाकर खुश रहें, करते रहें तलाश.
समभाव है सब कुछ यहाँ, नीचा है आकाश..
*

कोई टिप्पणी नहीं: