दोहा के रंग भोजपुरी के संग:
संजीव वर्मा 'सलिल'
*
सपन दिखावैं रात भर, सुधि के दीपक बार.
जिया जरत बा बिरह में, अँखियाँ दें जल ढार..
*
पल-पल लागत बरस सम, मिल न दिन के चैन.
करवट बदल-बदल कटल, बैरन भइले रैन..
*
सावन सुलगल जेठ सम, साँसें लागल भार.
पिया बसल परदेस जा, बारिश लगल कटार..
*
अंसुंअन ले फफकलि नदी, अंधड़ भयल उसांस.
विरह अँधेरा, मिलन के आस बिजुरि उर-फांस..
*
ठगवा के लगली नजर, बगिया गइल झुराइ.
अंचरा बोबाइल अगन, मैया भइल पराइ..
*
रोटी के टुकड़ा मिलल, जिनगी भइल रखैल.
सत्य अउर ईमान के, कबहूँ न पकड़ल गैल..
*
प्रभु-मरजी कह कर लिहिल, 'सलिल' चुप्प संतोष.
नेता मेवा खा गइल, सेवा का कर घोष..
*
दोहा के रंग जम गइल, भोजपुरी के संग.
लला-लली पढ़ सीख लिहिल, हे जिनगी के ढंग..
*
केहू मत कहिबे सगा, मत केहू के गैर.
'सलिल' जोड़ कर ईश से, मान सबहिं के खैर..
*
दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम
संजीव वर्मा 'सलिल'
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सपन दिखावैं रात भर, सुधि के दीपक बार.
जिया जरत बा बिरह में, अँखियाँ दें जल ढार..
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पल-पल लागत बरस सम, मिल न दिन के चैन.
करवट बदल-बदल कटल, बैरन भइले रैन..
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सावन सुलगल जेठ सम, साँसें लागल भार.
पिया बसल परदेस जा, बारिश लगल कटार..
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अंसुंअन ले फफकलि नदी, अंधड़ भयल उसांस.
विरह अँधेरा, मिलन के आस बिजुरि उर-फांस..
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ठगवा के लगली नजर, बगिया गइल झुराइ.
अंचरा बोबाइल अगन, मैया भइल पराइ..
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रोटी के टुकड़ा मिलल, जिनगी भइल रखैल.
सत्य अउर ईमान के, कबहूँ न पकड़ल गैल..
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प्रभु-मरजी कह कर लिहिल, 'सलिल' चुप्प संतोष.
नेता मेवा खा गइल, सेवा का कर घोष..
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दोहा के रंग जम गइल, भोजपुरी के संग.
लला-लली पढ़ सीख लिहिल, हे जिनगी के ढंग..
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केहू मत कहिबे सगा, मत केहू के गैर.
'सलिल' जोड़ कर ईश से, मान सबहिं के खैर..
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दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम
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