नवगीत:
संजीव वर्मा 'सलिल'
मौन देखकर
यह मत समझो
मुँह में नहीं जुबान...
*
![silence_screensaver-58112-1.jpeg silence_screensaver-58112-1.jpeg](https://lh3.googleusercontent.com/blogger_img_proxy/AEn0k_uKNtoKTLwdWYxXDrtzai3Y152h4cKM7uVNaHk5hDGkOM4Scty1yp63UIAoLFTaLeCHR5tEm4lxkxnp8Qfz_1vBmF4BuY31q9fI975ka7QAwi9HTinCsfTPtJ1bOqpO0s3tP6UL37kONudS14MH0yUQXmKtfSQO=s0-d)
शांति-शिष्टता,
धैर्य-भद्रता,
जीवट की पहचान.
शांत सतह के
नीचे हलचल,
मचल रहे अरमान.
श्वेत-शयन लख
यह मत समझो
रंगों से अनजान.
मौन देखकर
यह मत समझो
मुँह में नहीं जुबान...
*
![work.916874.5.flat,550x550,075,f.winters-silence.jpg work.916874.5.flat,550x550,075,f.winters-silence.jpg](https://lh3.googleusercontent.com/blogger_img_proxy/AEn0k_tSfwb9SQE8Fn5OE3D7R-OtZ4CknLhmM01q7jvcZK1eUUgM5k4tT28i2BWYgwC7yjB2fPDtCpAnCQxcCgHDUCgV2CjaG5-PAICZzr25FCKtju4QcMyV7D57iXtXJDY8nfYu-yrFqnjaAqRXYrWk21NR=s0-d)
ऊपर-नीचे
सब जानें पर
ऊँच-नीच से दूर.
दिक्-दिगंत पर
नजर जमाये
आशान्वित भरपूर.
मुस्कानों से
'सलिल' न होगा
पीड़ा का अनुमान.
मौन देखकर
यह मत समझो
मुँह में नहीं जुबान...
*
![work.675726.6.flat,550x550,075,f.the-sound-of-silence.jpg work.675726.6.flat,550x550,075,f.the-sound-of-silence.jpg](https://lh3.googleusercontent.com/blogger_img_proxy/AEn0k_sblmEBWpF12mwXIbaFzpFi1qLDzPs2aWYn_vfGyZK_Mw3zWvjt3NvowNfAvSjMOxd1RrqqEviCiVyk9w7tUav5VId8SqT4f1mV5iGHJVteop93A_3csktzoVg9FajPQjICtkPuR-IsNdVNy09RI2Ok3Qa2Og=s0-d)
उत्तर का
प्रत्युत्तर देना
बहुत सहज आसान.
कह न अनर्गल
मौन साधना
क्या जानें नादान?
जो सचमुच
है बड़ा, 'सलिल' वह
नहीं दिखता शान.
मौन देखकर
यह मत समझो
मुँह में नहीं जुबान...
*
![](https://lh3.googleusercontent.com/blogger_img_proxy/AEn0k_s5J1eXWvl2ujsZRKEJUgR50ok5Bp_XCB10Jys_moC9ObQyheR0HIL6P-jrwihq9kd5VMAPL0QzxBWYK8pal_xM8Wof3Gi1_QvBPOwzAA=s0-d)
![](https://lh3.googleusercontent.com/blogger_img_proxy/AEn0k_s5J1eXWvl2ujsZRKEJUgR50ok5Bp_XCB10Jys_moC9ObQyheR0HIL6P-jrwihq9kd5VMAPL0QzxBWYK8pal_xM8Wof3Gi1_QvBPOwzAA=s0-d)
ले-दे बढ़ते,
ऊपर चढ़ते
पा लेते है जीत.
मिला ताल से
ताल सुनते
निज हित का संगीत.
स्वार्थ मित्र,
सर्वार्थ शत्रु कह
लिखें कर्म उन्वान...
*
संबंधों को
अनुबंधों में
बाँध भुनाते रीत.
नेह भाव
निस्वार्थ मनोहर,
ठोकर दें बन मीत.
सत्य न बिसरा
पछतायेगा
'सलिल' समय बलवान...
***
Acharya Sanjiv सलिल / http://divyanarmada.blogspot. com
संजीव वर्मा 'सलिल'
यह मत समझो
मुँह में नहीं जुबान...
*
शांति-शिष्टता,
धैर्य-भद्रता,
जीवट की पहचान.
शांत सतह के
नीचे हलचल,
मचल रहे अरमान.
श्वेत-शयन लख
यह मत समझो
रंगों से अनजान.
मौन देखकर
यह मत समझो
मुँह में नहीं जुबान...
*
ऊपर-नीचे
सब जानें पर
ऊँच-नीच से दूर.
दिक्-दिगंत पर
नजर जमाये
आशान्वित भरपूर.
मुस्कानों से
'सलिल' न होगा
पीड़ा का अनुमान.
मौन देखकर
यह मत समझो
मुँह में नहीं जुबान...
*
उत्तर का
प्रत्युत्तर देना
बहुत सहज आसान.
कह न अनर्गल
मौन साधना
क्या जानें नादान?
जो सचमुच
है बड़ा, 'सलिल' वह
नहीं दिखता शान.
मौन देखकर
यह मत समझो
मुँह में नहीं जुबान...
*
ले-दे बढ़ते,
ऊपर चढ़ते
पा लेते है जीत.
मिला ताल से
ताल सुनते
निज हित का संगीत.
स्वार्थ मित्र,
सर्वार्थ शत्रु कह
लिखें कर्म उन्वान...
*
संबंधों को
अनुबंधों में
बाँध भुनाते रीत.
नेह भाव
निस्वार्थ मनोहर,
ठोकर दें बन मीत.
सत्य न बिसरा
पछतायेगा
'सलिल' समय बलवान...
***
Acharya Sanjiv सलिल / http://divyanarmada.blogspot.
6 टिप्पणियां:
Shah Nawaz :
दिल को छू जाने वाली, एक बेहतरीन रचना. बहुत खूब!
Shah Nawaz
kunwarji's :
खतरनाक है जी.....
क्या प्यार से समझाया है...
Aapka nav geet pare bahut accha laga.
sangeeta swarup :
सुन्दर अभिव्यक्ति
रंजना :
अद्वितीय रचना...सदैव की भांति....
बहुत आनंद आया पढ़कर...आभार..
ana :
bahut sundar likha hai apne
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