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रविवार, 16 मई 2010

नवगीत: निर्माणों के गीत गुँजायें...... --संजीव वर्मा 'सलिल'















नवगीत:

निर्माणों के गीत गुँजायें...

संजीव वर्मा 'सलिल'
*













निर्माणों के गीत गुँजायें...
*
मतभेदों के गड्ढें पाटें,
सद्भावों की सड़क बनायें.
बाधाओं के टीले खोदें,
कोशिश-मिट्टी-सतह बिछायें.
निर्माणों के गीत गुँजायें...
*














निष्ठां की गेंती-कुदाल लें,
लगन-फावड़ा-तसला लायें.
बढ़ें हाथ से हाथ मिलाकर-
कदम-कदम पथ सुदृढ़ बनायें.
निर्माणों के गीत गुँजायें...
*



















विश्वास-इमल्शन को सींचें,
आस गिट्टियाँ दबा-बिछायें.
गिट्टी-चूरा-रेत छिद्र में-
भर धुम्मस से खूब कुटायें.
निर्माणों के गीत गुँजायें...
*














है अतीत का लोड बहुत सा,
सतहें सम कर नींव बनायें.
पेवर माल बिछाये एक सा-
पंजा बारम्बार चलायें.
निर्माणों के गीत गुँजायें...
*














मतभेदों की सतह खुरदुरी,
मन-भेदों का रूप न पायें.
वाइब्रेशन-कोम्पैक्शन दें-
रोलर से मजबूत बनायें.
दूरियाँ दूरकर एक्य बढ़ायें.
निर्माणों के गीत गुँजायें...
*














राष्ट्र-प्रेम का डामल डालें-
प्रगति-पन्थ पर रथ दौड़ायें.
जनगण देखे स्वप्न सुनहरे,
कर साकार, बमुलियाँ गायें.
निर्माणों के गीत गुँजायें...
*














श्रम-सीकर का अमिय पान कर,
पग को मंजिल तक ले जाएँ.
बनें नींव के पत्थर हँसकर-
काँधे पर ध्वज-कलश उठायें.
निर्माणों के गीत गुँजायें...
*















टिप्पणी: इमल्शन =  सड़क  निर्माण के पूर्व मिट्टी-गिट्टी की पकड़ बनाने के लिये डामल-पानी का तरल मिश्रण, पेवर = डामल-गिट्टी का मिश्रण समान मोती में बिछानेवाला यंत्र, पंजा = लोहे के मोटे तारों का पंजा आकार, गिट्टियों को खींचकर गड्ढों में भरने के लिये उपयोगी, वाइब्रेटरी रोलर से उत्पन्न कंपन तथा स्टेटिक रोलर से बना दबाव गिट्टी-डामल के मिश्रण को एकसार कर पर्त को ठोस बनाते हैं, बमुलिया = नर्मदा अंचल का लोकगीत, 













दिव्यनर्मदा.ब्लॉगस्पोट.कॉम

4 टिप्‍पणियां:

SANJEEV RANA ने कहा…

SANJEEV RANA :

बहुत अच्छी रचना
आभार

hindihindi.ning.com ने कहा…

मतभेदों के गड्ढें पाटें,
सद्भावों की सड़क बनायें.
बाधाओं के टीले खोदें,
कोशिश-मिट्टी-सतह बिछायें.
निर्माणों के गीत गुँजायें.......सादर नमन आपको एवं आपकी उत्कृष्ट लेखनी को। एकदम जीवंतता के साथ ये रचना बहुत ही अच्छी सीख दे जाती है। सादर आभार।।

Ganesh Jee 'Bagi' ने कहा…

वाह आचार्या जी, आपने तो सिविल इंजिनियरिंग वाली गीत लिख डाली है, बहुत सुंदर रचना , बहुत बहुत बधाई,

Rana Pratap Singh ने कहा…

श्रद्धेय आचार्य जी के चरणों में सादर प्रणाम
बिल्कुल सहज भाव से एवं सहज भाषा के साथ चरित्र रुपी सड़क के निर्माण की बात समझा दी आपने....बचपन में एक गीत गाया करता था..रचनाकार का नाम याद नहीं है...आज उसकी याद आ गई
.
निर्माणों के पावन युग में हम चरित्र निर्माण न भूलें.....
स्वार्थ साधना की आंधी में वसुधा का कल्याण न भूलें...

माना अगम आगाज सिन्धु है संघर्षों का पार नहीं है...
किन्तु डूबना मझधारों में साहस को स्वीकार नहीं है...
जटिल समस्या सुलझाने को, नूतन अनुसंधान न भूलें.