बैंगन पर दोहे: दोहा, सलिल,
संजीव वर्मा 'सलिल'
'बैंगन' हूँ बेगुन नहीं, मुझे बनाओ मीत.
'भटा' या कि 'भांटा' कहो, नहीं घटेगी प्रीत..
आलू मेरा यार है, मन भायी है सेम.
साथ हमारा अनूठा, जैसे साहब-मेम..
काला नीला बैगनी, भाता रंग सफ़ेद.
हिलमिल रहता सभी संग, यही खुशी का भेद..
कर उपास दुबला बनूँ, खाकर गोल-मटोल.
उगूँ कछारों में लगूँ, छोटा-मोटा ढोल..

कट जाता हूँ मौन रह, खाओ तल या भून.
ना मैं आँसू बहाता, नहीं बहाता खून..
भीतर से हूँ नर्म मैं, आता सबके काम.
भेदभाव करता नहीं, भला करेंगे राम..
तुरत पकायें या सुखा, जैसा भाये स्वाद.
ऊगूँ क्यारी-खेत में, दो या मत दो खाद..
मिर्ची-लहसुन संग रुचे, भर्ता बाटी दाल.
फूल बैंगनी हँस रहे, लेकर कर में शूल.
फलने दो तोड़ो नहीं, कहती माटी-धूल..
शादी की पंगत सभी, मेरे बिन बेहाल..
'थाली का बैगन' कहें, लोग न आती लाज.
सांसद हूँ सब्जियों का, करता सब पर राज..
मित्र टमाटर को मिला नन्हा सिर पर ताज.
मेरे सिर का ताज है, बड़ा- कहो सरताज..
********************************
दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम
संजीव वर्मा 'सलिल'

'भटा' या कि 'भांटा' कहो, नहीं घटेगी प्रीत..
आलू मेरा यार है, मन भायी है सेम.
साथ हमारा अनूठा, जैसे साहब-मेम..
काला नीला बैगनी, भाता रंग सफ़ेद.
हिलमिल रहता सभी संग, यही खुशी का भेद..
कर उपास दुबला बनूँ, खाकर गोल-मटोल.
उगूँ कछारों में लगूँ, छोटा-मोटा ढोल..
कट जाता हूँ मौन रह, खाओ तल या भून.
ना मैं आँसू बहाता, नहीं बहाता खून..
भीतर से हूँ नर्म मैं, आता सबके काम.
भेदभाव करता नहीं, भला करेंगे राम..
तुरत पकायें या सुखा, जैसा भाये स्वाद.
ऊगूँ क्यारी-खेत में, दो या मत दो खाद..
मिर्ची-लहसुन संग रुचे, भर्ता बाटी दाल.

फलने दो तोड़ो नहीं, कहती माटी-धूल..
शादी की पंगत सभी, मेरे बिन बेहाल..
'थाली का बैगन' कहें, लोग न आती लाज.
सांसद हूँ सब्जियों का, करता सब पर राज..
मित्र टमाटर को मिला नन्हा सिर पर ताज.
मेरे सिर का ताज है, बड़ा- कहो सरताज..
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दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम
20 टिप्पणियां:
प्रशंसनीय ।
ab to bengan khana hi padega hume bhi..ha ha ...ha..bht pyari kavita...baalma ko supurd...nice work
-- Dimpal Maheshwari
बैगन पर मन आ गया, पूरी करिए चाह.
सिंपल डिम्पल खाइए, जी भर कहिये 'वाह'.
" बैंगन पर बेहतरीन कविता, बैंगन के बारे सरस भाषा में ढेर-सारी जानकारी..वाकई में बैंगन सब्जियों का सांसद है...."
Amitraghat
अमृत घट बैंगन हुआ, करिए जी भर पान.
इस रसनिधि का स्वाद ले, बन जाएँ रसखान..
माधव :
बैगन का ऐसा चरित्र चित्रण लाजवाब है मजा आ गया
माधव : बैगन का ऐसा चरित्र चित्रण लाजवाब है मजा आ गया
माधव को बैंगन रुचे, थैला भरकर लांय.
श्री राधा के साथ मिल, भर्ता-बाटी खांय.
Manju Gupta: " लाजवाब दोहे हैं."
मंजू जी ! खाकर भटे, चटखारे लें आप.
बाँटें दोहाकार सँग, नेह सकेगा व्याप..
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक :
दोहे पढ़कर मन मस्त हो गया!
ये नन्हामन के बालपाठकों के बहुत बढ़िया लगेंगे!
ज्यों 'मयंक' नभ पर सजे, त्यों भू का सिंगार.
भटा आपको भा गया, ग्रहण करें सरकार..
maja aa gaya.. baihan ki shaan me bharata banane ka man hai...
सोमाद्री जी बनायें, भरता जब भी आप.
मुझे बुलायें-खिलायें, वरना होगा पाप..
अदरक लहसुन मिर्च गुड़, संग भरते का भोग.
इष्ट-मित्र सोमाद्रि मिल, लगा मिटायें रोग..
भरवाँ बैंगन बहुत सुंदर लगे! -- रावेंद्रकुमार रवि
अक्षिता (पाखी) :
बैंगन के बारे में बहुत ही सुन्दर गीत !!
पाखी की दुनिया में 'मम्मी मेरी सबसे प्यारी' !
soni garg :
began ke baare itni detail se kabhi pada nahi aaj pada pad kar sirf achha hi nahi laga balki began ka swad yaad a gaya ......very tasty..
दोहों में ही रच दिया, बैंगन का संसार।
इसीलिये तो टिप्पणी, में भर आया प्यार।।
पाखी से रवि ने कहा, सोनी को ले साथ.
चलो भटा ले आयें हम, गह मयंक का हाथ..
बोला तुरत प्रियंक तब, मुझको भी लो संग.
वरना तुमको तंग कर, करूँ रंग में भंग..
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