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गुरुवार, 2 अप्रैल 2009

गीत

आचार्य संजीव 'सलिल'

नीचे-ऊपर,
ऊपर नीचे,
रहा दौड़ता
अँखियाँ मीचे।
मेघा-गागर
हुई न रीती-
पवन थका,
दिन-रात उलीचे

नाव नदी में,
नदी नाव में,
भाव समाया है,
अभाव में।
जीवन बीता-
मोल-भाव में।
बंद रहे-
सद्भाव गलीचे

नहीं कबीरा,
और न बानी।
नानी कहती,
नहीं कहानी।
भीड-भाड़ में,
भी वीरानी।
ठाना- सींचें,
स्नेह-बगीचे

कंकर- कंकर
देखे शंकर।
शंकर में देखे
प्रलयंकर।
साक्ष्य- कारगिल
टूटे बनकर।
रक्तिम शीतल
बिछे गलीचे

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1 टिप्पणी:

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

आपका यह गीत बहुत कुछ सीखने को प्रेरित करता है। आपके प्रतीक बहुत ही श्रे
ष्‍ठ हैं। बधाई।