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रविवार, 16 अप्रैल 2023

मुक्तक, कुण्डलिया, गीत, नवगीत, अव्यक्त अग्रवाल, समीक्षा, दोहा, जनक छंद, बाँस, छत्तीसगढ़ी,

मुक्तक

आमंत्रण या आवश्यकता अगर नहीं तो चुप ही रहिए।
सीख सीखिए, मत सिखाइए, नहीं सहारा नाहक गहिए।।
बिन माँगे सलाह बेमानी, कोई उस पर गौर न करता-
हो संजीव जीव सब लखिए, जो हो श्रेष्ठ उसी को तहिए।।
***
प्रश्नोत्तर
हिंदी धर्म में कन्या को लक्ष्मी कहा जाता है तो कन्यादान क्यों किया जाता है?
कुण्डलिया
सुता लक्ष्मी सत्य है, करिए उसका दान।
नहीं किया तो टैक्स भर, हो जाएँ हैरान।।
हो जाएँ, हैरान, लगे जी एस टी भारी।
वैल्थ टैक्स दे लगे, भार कन्या बेचारी।।
सौंप और को भार, हुआ बेफिक्र हर पिता।
शीघ्र खोज दामाद, सौंपिए उसीको सुता।
१६-४-२०२३
***
जीवन में अनमोल क्या है?
कुण्डलिया
जीवन में अनमोल है, आती-जाती श्वास।
रंग श्वास में भर रही, मन में पलती आस।।
मन में पलती आस, सास साली अरु सलहज।
अगर न हों तो, करें किस तरह श्वसुरालय हज।।
कहता कवि संजीव, पत्नि बिन सकल सृष्टि वन।
खटिया करती खड़ी, मगर संजीवित जीवन।।
१६-४-२०२३
***
गीत:
जीवन के ढाई आखर को
*
बीती उमर नहीं पढ़ पाये, जीवन के ढाई आखर को
गृह स्वामी की करी उपेक्षा, सेंत रहे जर्जर बाखर को...
*
रूप-रंग, रस-गंध चाहकर, खुदको समझे बहुत सयाना
समझ न पाये माया-ममता, मोहे मन को करे दिवाना
कंकर-पत्थर जोड़ बनायी मस्जिद, जिसे टेर हम हारे-
मन मंदिर में रहा विराजा, मिला न लेकिन हमें ठिकाना
निराकार को लाख दिये आकार न छवि उसकी गढ़ पाये-
नयन मुँदे मुस्काते पाया कण-कण में उस नटनागर को...
*
श्लोक-ऋचाएँ, मंत्र-प्रार्थना, प्रेयर सबद अजान न सुनता
भजन-कीर्तन,गीत-ग़ज़ल रच, मन अनगिनती सपने बुनता
पूजा-अनुष्ठान, मठ-महलों में रहना कब उसको भाया-
मेवे छोड़ पंजीरी फाके, देख पुजारी निज सर धुनता
खाये जूठे बेर, चुराये माखन, रागी किन्तु विरागी
एक बूँद पा तृप्त हुआ पर है अतृप्त पीकर सागर को...
*
अर्थ खोज-संचित कर हमने, बस अनर्थ ही सदा किया है
अमृत की कर चाह गरल का, घूँट पिलाया सतत पिया है
लूट तिजोरी दान टेक का कर खुद को पुण्यात्मा माना-
विस्मित वह पाखंड देखकर मनुज हुआ पाषाण-हिया है
कैकट्स उपजाये आँगन में, अब तुलसी पूजन हो कैसे?
देश निकाला दिया हमीं ने चौपालों पनघट गागर को
१६-४-२०२१
...
पुस्तक सलिला
'सही के हीरो' साधारण लोगों की असाधारणता की मार्मिक कहानियाँ
*
[पुस्तक विवरण- सही के हीरो, कहानी संग्रह, ISBN 9789385524400, डॉ. अव्यक्त अग्रवाल, प्रथम संस्करण २०१६, आकार २१.५ से.मी. x १३.५ से.मी., आवरण पेपर बैंक बहुरंगी, कहानीकार संपर्क- डी ७ जसूजा सिटी, जबलपुर ४८२००३]
*
मनुष्य में अनुभव किये हुए को कहने की अदम्य इच्छा वाक् क्षमता के रूप में विकसित हुई। अस्पष्ट स्फुट ध्वनियाँ क्रमशः सार्थक संवादों के रूप में आईं तो लयबद्ध कहन कविता के रूप में और क्रमबद्ध कथन कहानी के रूप में विकसित हुए। कहानी, कथा, किस्सा, गल्प, गप्प और चुटकुले विषयवस्तु के आकार और कथ्य के अनुरूप प्रकाश में आये। गद्य में निबन्ध, संस्मरण, यात्रावृत्त, व्यंग्य लेख, आत्मकथा, समीक्षा आदि विधाओं का विकास होने के बाद भी कहानी की लोकप्रियता सर्वकालों में सर्वाधिक थी, है और रहेगी। कहानी वह जो कही जाए, अर्थात उसमें कहे जाने और सुने जाने योग्य तत्व हों। वर्तमान पूँजीवादी राजनीति-प्रधान व्यक्तिपरक जीवन शैली में साहित्य संसाधनों और पहुँच के सफे पर हाशिये में रखे जा रहे जीवट और संघर्ष को पुनर्जीवन दे रहा है।
स्वतंत्रता के पश्चात अहिंसा की माला जपते दल विशेष ने सत्ता पर और हिंसा पर भरोसा करनेवाले अन्य दल विशेष ने शिक्षा संस्थानों और साहित्यिक अकादमियों पर कब्ज़ा कर साहित्यिक विधाओं में वैषम्य और विसंगतियों के अतिरेकी चित्रण को सामने लाकर सामाजिक संघर्ष को तेज करनेवाले साहित्य और साहित्यकारों को पुरस्कृत किया। फलतः, आम आदमी के नाम पर स्त्री-पुरुष, संपन्न-विपन्न, नेता-जनता, श्रमिक-उद्योगपति, छात्र-शिक्षक, हिन्दू-मुस्लिम आदि के नाम पर टकराव ने सद्भाव, सहयोग, सहकार, विश्वास, निष्ठा आदि को अप्रासंगिक बनने का काम किया। इस पृष्ठभूमि में अत्यन्त अल्प संसाधनों और पिछड़े क्षेत्र से संघर्ष कर स्वयं को विशेषज्ञ चिकित्सक के रूप में स्थापित कर, अपने मरीजों के इलाज के साथ-साथ उनके जीवन-संघर्ष को पहचान कर मानसिक संबल देनेवाले डॉ. अव्यक्त अग्रवाल ने निर्बल का बल बनने के अपने महाभियान में विवेच्य कहानी संग्रह के माध्यम से पाठकों को भी सहभागी बनने का अवसर दिया है।
इस कहानी संग्रह के अधिकांश पात्र निम्न जीवन स्तर और विपन्नता की मेंड़ पर लगातार चुभ रहे काँटों के बीच पैर रखते हुए आगे बढ़ते हैं। नियति ने भले ही इन्हें मरने के लिए पैदा किया हो पर अपनी जिजीविषा के सहारे ये मौत के अनुकूल परिस्थितियों से जूझकर जीवन का राजमार्ग तलाश पाते हैं। साहित्य के प्रभाव, उपयोगिता और पठनीयता पर प्रश्न उठानेवाले इस संग्रह को पढ़ें तो उनके जीवन की नकारात्मक ऊर्जा सकारात्मकता का वरण कर सकेगी। परिस्थितियों के चक्रव्यूह में फँसकर लहूलुहान होते हुए भी ऊपर उठने और आगे बढ़ने को प्रेरित करते इस कथा-संग्रह में कथाकार शिल्प पर कथ्य को वरीयता देता है। कहानी के पात्र पारिस्थितिक वैषम्य और विसंगति के हलाहल को कंठ में धारकर अपने सपने पूरे होते देखने का अमृत पान करते हुए कहीं काल्पनिक प्रतीत नहीं होते। ये कहानियाँ वास्तव में कल से प्राप्त विरासत को आज सँवार-सुधार कर कल को उज्जवल थाती देने का सारस्वत अनुष्ठान हैं।
'सही के हीरो' शीर्षक और मुखपृष्ठ पर अंकित देबाशीष साहा द्वारा निर्मित चित्र ही यह बता देता कि आम आदमियों के बीच में से उभरते हुए चरित नायक अपनी भाषा, भूषा, सोच और संघर्ष के साथ पाठक से रू-ब-रू होंगे। मर्मस्पर्शी कहानियाँ तथा प्रेरक कहानियाँ और संस्मरण दो भागों में क्रमशः १० + १८ कुल २८ हैं। संस्मरणात्मक कहानियाँ, पाठक को देखकर भी अनदेखे किये जाते पलों और व्यक्तियों से आँखें मिलाने का सुअवसर उपलब्ध कराते हैं। पात्रों और परिवेश के अनुकूल शब्द-चयन और वाक्य-संरचना कथानक को विश्वसनीयता प्रदान करते हैं। अंतर्जाल पर सर्वाधिक बिकनेवाले संग्रहों में सम्मिलित इस कृति की प्रथम कहानी 'लाइफगार्ड' के नायक एक बेसहारा बच्चे विक्टर को फ्रांसिस पालता है, युवा विक्टर अन्य बेसहारा बच्चे एडम को अपना लेता है और उसे विमाता से बचाने के लिए अपनी प्रेमिका से विवाह करने से कतराता है। डूबते फ्रांसिस को बचाते हुए मौत के कगार पर पहुँचे विक्टर की चिकित्सा अवधि के मध्य विक्टर की प्राणरक्षा की दुआ माँगते एडम और मारिया एक दूसरे के इतने निकट आ जाते हैं कि नन्हा एडम विक्टर से मारिया मम्मी की माँग कर उसे नया जीवन देता है।
कहानी 'चने के दाने' एक न हो सके किशोर प्रेमियों के पुनर्मिलन की मर्मस्पर्शी गाथा है। कठोर ह्रदय पाठकों की भी ऑंखें नम कर सकने में समर्थ 'आधी परी' तथाकथित समझदारों द्वारा स्नेह-प्रेम की आड़ में अल्पविकसित का शोषण करने पर आधारित है। तरुणी प्रीति के बहाने जीवनसाथी चुनते समय स्वस्थ्य - समझ का संदेश देती है 'पासवर्ड' कहानी। 'एक अलग प्रेम कहानी' साधनहीन ग्रामीण दंपति के एकांतिक प्रेम के समान्तर चिकित्सक-रोगी के बीच महीन विश्वास तन्तु के टूटने तथा बढ़ते व्यवसायीकरण को इंगित करती व्यथा-कथा है। पारिवारिक रिश्तों के बिखरने पर केंद्रित चलचित्र 'बावर्ची' में नायक घरेलू नौकर बनकर परिवार के सदस्यों के बीच मरते स्नेह बंधन को जीवित करता है। कहानी जादूगर में नायिका के कैशोर्य काल का प्रेमी जो अब मनोचिकित्सक है, नायिका में उसके पति के प्रति घटते प्रेम को पुनर्जीवित करता है। 'बहुरुपिया' में साधनहीन भाई-बहिन का निर्मल प्रेम, 'आइसक्रीम कैंडी' में राजनेताओं के कारण आहत होते आमजन, 'ज़िंदगी एक स्टेशन' में बदलते सामाजिक ढाँचे के कारण स्थापित व्यवसायों के अलाभप्रद होने की समस्या और समाधान तथा 'मेरा चैंपियन' में पिता के सपने को पूरा करते पुत्र की कहानी है।
दूसरे भाग में 'सही का हीरो' एक साधनहीन किन्तु अपने सपने साकार करने के प्रति आत्मविश्वास से भरे बच्चे की कथा है। 'गूगल' किसी घटना को देखने के दो भिन्न दृष्टिकोण, 'मैं ठीक हूँ' मौत के मुख से लौटी नन्हीं बच्ची द्वारा जीवन की हर साँस का आनंद लेने की सीख, 'दुश्वारियाँ एक अवसर' अपंग बच्चे के संकल्प और सफलता, 'सफलता मंत्र' जीवन का आनंद लेने, 'मेरी पचमढ़ी और मैं' संस्मरण, 'आसान है' में सच को स्वीकार कर औरों को ख़ुशी देने, 'उमैया एक तमाशा' विपन्न बच्चों में छिपी प्रतिभा, 'एक और सुबह' बचपन की यादों, 'फाँस' जीवनानंद की खोज, 'लोकप्रियता का रहस्य' अपनी क्षमताओं की पहचान, 'वो अधूरी कहानी' जीवन के उद्देश्य की पहचान, 'सफलता सबसे शक्तिशाली मंत्र ' निज सामर्थ्य से साक्षात्, 'स्वतः प्रेरणा' मन की आवाज़ सुनने, 'हम सब रौशनी पुंज' निराशा में आशा, 'हवा का झौंका समीर' में बेसहारा बच्चों के लालन-पालन तथा 'ज़िन्दगी एक चैस बोर्ड' में अपने उद्देश्य की तलाश को केंद्र में रखकर कथा का ताना-बाना बुना गया है।
'सही का हीरो' कहानी संग्रह की विशेषता इसमें साधारणता का होना है। अधिकांश कहानियाँ जीवन में घटी वास्तविक घटनाओं पर आधारित हैं। यथार्थ को कल्पना का आवरण पहनाते समय यह ध्यान रखा गया है कि मूल घटना और पात्रों की विश्वसनीयता, उपयोगिता और सन्देशवाहकता बनी रहे। अधिकांश घटनाएँ और पात्र पाठक के इर्द-गिर्द से ही उठाये गए हैं किन्तु उन्हें देखने की दृष्टि, उनके मूल्याङ्कन का नज़रिया और उसने सीख लेने का हौसला बिलकुल नया है। इन कहानियों में अभाव-उपेक्षा, टकराव-बिखराव, सपने-नपने, गिराव-उठाव, निराशा-आशा, अवनति-उन्नति, विफलता-सफलता, नासमझी और समझदारी अर्थात जीवन रूपी इंद्रधनुष का हर रंग अपनी चमक और चटख के साथ उपस्थित है। नकारात्मकता पर सकारात्मकता की विजय, पाठक को लड़ने, बदलने और जीतने का सन्देश देती है। शिल्प की दृष्टि से ये रचनाएँ कहानी, लघुकथा, संस्मरण, शब्द चित्र आदि विधाओं का प्रतिनिधित्व करती हैं।
डॉ. अव्यक्त अग्रवाल की भाषा सहज, सरस, सुगम, विषय, पात्र और परिवेश के अनुकूल है। किसी पहाड़ी से नि:सृत निर्झर की तरह अनगढ़पने में देने की आकुलता, नया ग्रहण करने की आतुरता और सबको अपना लेने की उत्सुकता पात्रों को जीवंत और प्रेरणादायी बनाती है। अव्यक्त जी खुद घटना को व्यक्त नहीं करते, वे पात्र या घटना को सामने आने देते हैं। कम से कम में अधिक से अधिक कहने का कौशल सहज नहीं होता किन्तु अव्यक्त जी इसे कुशलतापूर्वक साध सके हैं। वे पात्र के मुँह में शब्द ठूँसने या कहलाने का कोई प्रयास नहीं करते। उनके पात्र न तो भदेसी होने का दिखावा करते हैं, न सुसंस्कृत होने का पाखण्ड। कथ्य संक्षिप्त - गठा हुआ, संवाद सारगर्भित, भाषा शैली सहज - प्रचलित, शब्द चयन सम्यक - उपयुक्त, मुहावरों का यथोचित प्रयोग, हिंदी, उर्दू, संस्कृत, अंग्रेजी शब्दों का प्रचलन के अनुसार प्रयोग पाठक को बाँधता है। इस उद्देश्यपूर्ण कृति का सर्वाधिक लोकप्रिय साहित्य में शुमार होना आश्वस्त करता है कि हिंदी तथा साहित्य के प्रेमी पाठकों का अभाव नहीं है। सही के हीरो' ही देश और समाज का गौरव बढ़ाकर मानवता को परिपुष्ट करते हैं। अव्यक्त जी को इस कृति हेतु
बधाई
। उनकी आगामी कृति की प्रतीक्षा होना स्वाभाविक है।
------
दोहा सलिला
*
अरुणचूर दे रहा है, अरुण देखकर बाँग
जो सोये वे कह रहे, व्यर्थ अड़ाता टाँग
*
कन्याएँ धरना धरे, पूर्ण कीजिए माँग
क्वाँरे झट सिंदूर ले, पहुँचे भरने माँग
*
वह बोली यह टाँग दे, वह भागा हो भीत
टाँग न दूँ मैं तो कभी, कैसी है यह रीत
*
संजीव
१६-४-२०२०
मनरंजन:
प्रस्तुत दोहे का अर्थ व रचनाकार बताएँ
अम्बुज अरि पति ता सुता ता पति उर को हार।
ता अरि पति कि भामिनी आई बसै यही द्वार।।
वास्तु विमर्श
*
पूर्व, पूर्वोत्तर व उत्तर दिशा में भगवान का चित्र स्थापित कर, उसकी ओर मुँह कर पूजन करें।
पूर्व सूर्य भगवान के प्रागट्य की दिशा है।
उत्तर में दिशादर्शक ध्रुवतारा है।
एक दिन में पथ प्रदर्शन करता है दूसरा रात में राह दिखाता है। दोनों के मध्य ईशान दिशा को ईश का स्थान मानता है वास्तुशास्त्र।
यह विग्यान सम्मत भी है। सूर्य प्रकाश और ऊर्जा के अक्षय स्रोत हैं। वे जीवनदाता हैं। सूर्य किरणें प्रकाश देती हैं, विषाणुओं को नष्ट करती हैं, विटामिन डी देती हैं, आतिशी शीशे का प्रयोग कर इनसे आग सुलगाई जा सकती है।
विश्व के प्रतापी राजवंश खुद को सूर्यवंशी कहते रहे हैं।
'भा' धातु का अर्थ प्रकाशित करना है इसलिए सूर्य भास्कर और हमारा देश 'भारत' है। हमें इंडिया नहीं होना है।
सूर्योपासना कुष्ठ रोग निवारक बताई गई है।
वास्तु के अनुसार आवास में सूर्य प्रकाश आना आवश्यक है। यदि न आता हो तो यथासंभव रोज या सप्ताह में एक दिन धूप में कुछ घंटे बिताएँ। पश्चिमी देशों में लोग समुद्र तट पर जाकर 'सन बाथ' लेते हैं अर्थात नयूनतम वस्त्रों में देह को सूर्य प्रकाश ग्रहण कराते हैं। यह फैशन या निर्लज्जता नहीं, प्राकृतिक चिकित्सा है। हमारे गाँवों में पनघट, नदी, तालाब या कुएँ पर स्नान करने की परंपरा इसीलिए है कि शुद्ध प्राणवायु और सूर्यप्रकाश का मणिकांचन संयोग हो सके।
कुंभादि पर्वों पर अगणित मनुष्यों के स्नान के समय सूर्य किरणें विषाणु नष्ट करती रहती हैं। वर्तमान कोरोना संकट का विकरालतम रूप वहीं है जहाँ सूर्य देव की कृपा कम है। हम रोज सवेरे सूर्योदय के समय उन्हें प्रणाम कर दीर्घ - निरोगी तथा कर्मप्रधान जीवन की कामना करें। सूर्य स्वानुशासन, कर्मठता, नियमितता तथा निष्काम कर्म के जीवंत प्रतीक हैं।
*

नव प्रयोग
दोहा-जनक छंद
*
विधि-विधान से कार्य कर, ब्रह्मा रहें प्रसन्न
याद रखें गुरु-सीख तो, विपद् न हो आसन्न
बात मीठी ही कहिए
मुकुल मन हँसते रहिए
स्नेह सलिला सम बहिए
*


मुक्तक
*
पंडित को पेट हेतु राम की जरूरत है
मंदिर को छत हेतु खाम की जरूरत है
सीता को दंडित कर राजदंड ठठा रहा
काल कहे नाश परिणाम की जरूरत है
*
रोजी और रोटी ही अवाम की जरूरत है
हाथों को भीख नहीं काम की जरूरत है
स्वाति सलिल मोतियों के ढेर लगा देंगे पर
मोल लेने के लिए दाम की जरूरत है
*
शीत कहे सूर्य तपो घाम की जरूरत है
जेठ कहे अब न तपो शाम की जरूरत है
सूर्य ठिठक सोच रहा, जो कहते कहने दो
पहले कर काम फिर आराम की जरूरत है
*
आधुनिका को चिकने चाम की जरूरत है
मद्यप को साकी को जाम की जरूरत है
सत्ता को अमन-चैन से न रहा वास्ता
कैसे भी, कहीं भी हो लाम की जरूरत है
*
कोरोना को तुरत लगाम की जरूरत है
घर में खुश रह कहें विराम की जरूरत है
मदद करें यथाशक्ति, पढ़ें-लिखें, योग करें
साहस सुख शांति दे, अनाम की जरूरत है
*
१६-४-२०२०

***
भक्ति गीत :
कहाँ गया
*
कहाँ गया रणछोड़ रे!
जला प्रेम की ज्योत
*
कण-कण में तू रम रहा
घट-घट तेरा वास.
लेकिन अधरों पर नहीं
अब आता है हास.
लगे जेठ सम तप रहा
अब पावस-मधुमास
क्यों न गूंजती बाँसुरी
पूछ रहे खद्योत
कहाँ गया रणछोड़ रे!
जला प्रेम की ज्योत
*
श्वास-श्वास पर लिख लिया
जब से तेरा नाम.
आस-आस में तू बसा
तू ही काम-अकाम.
मन-मुरली, तन जमुन-जल
व्यथित विधाता वाम
बिसराया है बोल क्यों?
मिला ज्योत से ज्योत
कहाँ गया रणछोड़ रे!,
जला प्रेम की ज्योत
*
पल-पल हेरा है तुझे
पाया अपने पास.
दिखता-छिप जाता तुरत
ओ छलिया! दे त्रास.
ले-ले अपनीं शरण में
'सलिल' तिहारा दास
दूर न रहने दे तनिक
हम दोनों सहगोत
कहाँ गया रणछोड़ रे!
जला प्रेम की ज्योत
***
दोहा दुनिया
*
नेह-नर्मदा नहा ले, गर्मी होगी शांत
जी भर जलजीरा गटक, चित्त न पित्त अशांत
*
नित्य निनादित नर्मदा, कलकल सलिल प्रवाह
ताप किनारे ही रुका, लहर मिटाती दाह
*
परकम्मा करते चरण, वरते पुण्य असीम
छेंक धूप को छाँह दें, पीपल, बरगद, नीम
*
मन कठोर चट्टान सा, तप पा-देता कष्ट
जल संतों सा तप करे, हरता द्वेष-अनिष्ट
*
मग पर पग पनही बिना, नहीं उचित इस काल
बाल न बाँका लू करे, पनहा पी हर हाल
*
गाँठ प्याज की संग रख, लू से करे बचाव
मट्ठा पी ठट्ठा करो, व्यर्थ न खाओ ताव
*
भर गिलास लस्सी पियो, नित्य मलाईदार
कहो 'नर्मदे हर' सलिल, एक नहीं कई बार
*
पीस पोदीना पत्तियाँ, मिर्ची-कैरी-प्याज
काला नमक व गुड़ मिला, जमकर खा तज लाज
*
मीठी या नमकीन हो, रुचे महेरी खूब
सत्तू पी ले घोलकर, जा ठंडक में डूब
*
खरबूजे-तरबूज से, मिले तरावट खूब
लीची खा संजीव नित, मस्ती में जा डूब
*
गन्ना-रस ग्लूकोज़ का, करता दूर अभाव
गुड़-पानी अमृत सदृश, पार लगाता नाव
*
***
छंद बहर का मूल है: ४
कुंडल छंद
*
छंद परिचय:
बाईस मात्रिक महारौद्र जातीय कुंडल छंद
चौदह वार्णिक शर्करी जातीय छंद।
संरचना: SIS ISI SIS ISI SS
सूत्र: रजरजगग।
बहर: फ़ाइलुं मुफ़ाइलुं मुफ़ाइलुं फ़ऊलुं।
*
प्रात, शाम, रात रोज आप ही सुहाए
मौन हेरता रहा न आज आप आए
*
छंद-गीत, राग-रीत कौन सीखता है?
शारदा कृपा करें तभी न सीख पाए
*
है कहाँ छिपा हुआ, न चाँद दीखता है
दीप बाल-बाल रात ही न हार जाए
*
दूर बैठ ताकती , न भू भुला सकी है
सूर्य रश्मि-रूप धार श्वास में समाए
*
आसमान छेदता, दिशा-हवा न रोके
कामदेव चित्त को अशांत क्यों बनाये?
*
प्रेमिका न ज्ञान-दान प्रेम चाहती है
रुठती न, रूठना दिखा-दिखा खिझाए
*
हारता न, हार-हार प्रेम जीतता है
जीतता न जीत-जीत, प्रेम ही हराए
*
१६.४.२०१७
***
* शादी या बर्बादी **
1. आ बैल मुझे मार = पत्नी से पंगा लेना।
2. दीवार से सिर फोड़ना = पत्नी को कुछ समझाना।
3. चार दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात = पत्नी का मायके से वापस आना।
4. आत्महत्या के लिए उकसाना = शादी की राय देना।
5. दुश्मनी निभाना = दोस्तों की शादी करवाना।
6. खुद का स्वार्थ देखना = शादी ना करना।
7. ओखली में सिर देना = शादी के लिए हां करना।
8. दो पाटों में पिसना = दूसरी शादी करना।
9. खुद को लुटते हुऐ देखना = पत्नी को पर्स से पैसे निकालते हुए देखना।
10. पैरों तले जमीन खिसकना = पत्नी का अचानक साक्षात सामने आना।
11. सिर मुंडाते ही ओले पड़ना = परीक्षा में फेल होते ही शादी हो जाना।
12. शादी के लिए हां करना = स्वेच्छा से जेल जाना।
13. साली आधी घर वाली = वह स्कीम जो दूल्हे को बताई जाती है लेकिन दी नहीं जाती
आभार: गुड्डो दादी
***
नवगीत
संजीव
.
बांसों के झुरमुट में
धांय-धांय चीत्कार
.
परिणिति
अव्यवस्था की
आम लोग
भोगते.
हाथ पटक
मूंड पर
खुद को ही
कोसते.
बाँसों में
उग आये
कल्लों को
पोसते.
चुभ जाती झरबेरी
करते हैं सीत्कार
.
असली हो
या नकली
वर्दी तो
है वर्दी.
असहायों
को पीटे
खाखी हो
या जर्दी.
गोलियाँ
सुरंग जहाँ
वहाँ सिर्फ
नामर्दी.
बिना किसी शत्रुता
अनजाने रहे मार
.
सूखेंगे
आँसू बह.
रक्खेंगे
पीड़ा तह.
बलि दो
या ईद हो
बकरी ही
हो जिबह.
कुंठा-वन
खिसियाकर
खुद ही खुद
होता दह
जो न तर सके उनका
दावा है रहे तार
***
नवगीत:
.
नेह नर्मदा-धारा मुखड़ा
गंगा लहरी हुए अंतरे
.
कथ्य अमरकंटक पर
तरुवर बिम्ब झूमते
डाल भाव पर विहँस
बिम्ब कपि उछल लूमते
रस-रुद्राक्ष माल धारेंगे
लोक कंठ बस छंद कन्त रे!
नेह नर्मदा-धारा मुखड़ा
गंगा लहरी हुए अंतरे
.
दुग्ध-धार लहरें लय
देतीं नवल अर्थ कुछ
गहन गव्हर गिरि उच्च
सतत हरते अनर्थ कुछ
निर्मल सलिल-बिंदु तर-तारें
ब्रम्हलीन हों साधु-संत रे!
नेह नर्मदा-धारा मुखड़ा
गंगा लहरी हुए अंतरे
.
विलय करे लय मलय
न डूबे माया नगरी
सौंधापन माटी का
मिटा न दुनिया ठग री!
ढाई आखर बिना न कोई
किसी गीत में तनिक तंत रे!
नेह नर्मदा-धारा मुखड़ा
गंगा लहरी हुए अंतरे
.
***
नव गीत:
.
अपने ही घर में
बेबस हैं
खुद से खुद ही दूर
.
इसको-उसको परखा फिर-फिर
धोखा खाया खूब
नौका फिर भी तैर न पायी
रही किनारे डूब
दो दिन मन में बसी चाँदनी
फिर छाई क्यों ऊब?
काश! न होता मन पतंग सा
बन पाता हँस दूब
पतवारों के
वार न सहते
माँझी होकर सूर
अपने ही घर में
बेबस हैं
खुद से खुद ही दूर
.
एक हाथ दूजे का बैरी
फिर कैसे हो खैर?
पूर दिये तालाब, रेत में
कैसे पायें तैर?
फूल नोचकर शूल बिछाये
तब करते है सैर
अपने ही जब रहे न अपने
गैर रहें क्यों गैर?
रूप मर रहा
बेहूदों ने
देखा फिर-फिर घूर
अपने ही घर में
बेबस हैं
खुद से खुद ही दूर
.
संबंधों के अनुबंधों ने
थोप दिये प्रतिबंध
जूही-चमेली बिना नहाये
मलें विदेशी गंध
दिन दोपहरी किन्तु न छटती
फ़ैली कैसी धुंध
लंगड़े को काँधे बैठाकर
अब न चल रहे अंध
मन की किसको परख है
ताकें तन का नूर
१६-४-२०१५
***
छत्तीसगढ़ी दोहा
*
हमर देस के गाँव मा, सुन्हा सुरुज विहान.
अरघ देहे बद अंजुरी, रीती रोय किसान..
*
जिनगानी के समंदर, गाँव-गँवई के रीत.
जिनगी गुजरत हे 'सलिल', कुरिया-कुंदरा मीत..
*
महतारी भुइयाँ असल, बंदत हौं दिन-रात.
दाई! पैयाँ परत हौं. मूंडा पर धर हात..
*
जाँघर तोड़त सेठ बर, चिथरा झूलत भेस.
मुटियारी माथा पटक, चेलिक रथे बिदेस..
*
बाँग देही कुकराकस, जिनगी बन के छंद.
कुररी कस रोही 'सलिल', मावस दूबर चंद..
१६.४.२०१०
***
आरोग्य-आशा:
स्व. शान्ति देवी वर्मा के नुस्खे
पारंपरिक चिकित्सा-विधि
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आपको ऐसे नुस्खे ज्ञात हों तो भेजें। इनका प्रयोग स्वविवेक से करें।
वायु भगाएँ दूर :
एक चुटकी अजवाइन में नीबू रस की कुछ बूँदें डालकर थोड़े से नमक के साथ मिलाकर रगड़ लें। आधा कप पानी के साथ सेवन करने पर कुछ देर बाद वायु निकलना प्रारम्भ हो जायेगी।
पांडु रोग / पीलिया :
अदरक की पतली-पतली फाँकें नीबू के रस में डूबा दें। इसमें अजवाइन के दाने तथा स्वाद के अनुसार नमक मिला दें. अदरक का रंग लाल होने पर तीन-चार बार सेवन करने पर पांडु रोग में लाभ होगा.
इसक् साथ रोज सवेरे तथा शाम को किसी बगीचे या मैदान में जहाँ खूब पेड़-पौधे हों घूमना लाभदायक है। बगीचे में खूब गहरी-गहरी साँसें लें ताकि अधिक से अधिक ओषजन वायु शरीर में पहुँचे।
जोड़ों का दर्द:
सरसों के तेल में लहसुन तथा अजवाइन दल कर आग पर गरम करें। लहसुन काली पड़ने पर ठंडा कर छान लें और किसी शीशी में भर लें। इसकी मालिश करते समय ठंडी हवा न लगे। धीरे-धीरे दर्द कम होकर आराम मिलेगा।
यह तेल कान के दर्द को भी दूर करेगा. दाद, खारिश, खुजली में इसके उपयोग से लाभ होगा. कब्ज से बचें तथा कढ़ी, चांवल जैसा वायु बढ़ने वाला आहार न लें.
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