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सोमवार, 17 अप्रैल 2023

पन्नालाल श्रीवास्तव 'नूर'

 
कायस्थ कर्म नैपुण्यता के पर्याय 'नूर' चाचा 

प्रो. किरण श्रीवास्तव, रायपुर 


                  इतिहास में कायस्थ अपनी बहुमुखी प्रतिभा, कार्य कुशलता, विद्वता तथा समर्पण के पर्याय रहे हैं। कायस्थ वैशिष्ट्य के प्रतीक पुरुषों में मुझे नूर चाचा याद आते हैं। मेरे पिताश्री स्मृतिशेष राजबहादुर वर्मा जी जेल अधीक्षक को जिन कुछ लोगों को ह्रदय से आदर देते देखा उनमें नूर चाचा अग्रगण्य थे। नूर चाचा जब आते तो पहली बार मिलनेवालों पर उनका व्यक्तित्व अपनी छाप छोड़ता। गोरे, छरहरे, लंबे, सौम्य और शालीन पन्नालाल श्रीवास्तव 'नूर' को पिताजी अग्रज मानते थे, चूँकि वे मेरे ताऊजी स्मृतिशेष धर्म नारायण वर्मा, आयकर वकील के निकटतम मित्रों में थे।  

                  नूर चाचा का जन्म ५ दिसंबर १९१५ को हुआ था। उनके पिताश्री का नाम श्री गया प्रसाद श्रीवास्तव था। उनहोंने बी.ए., एल-एल.बी. की उपाधियाँ प्राप्त कीं तथा वकालत को आजीविका का साधन बनाया। वे १९६४ में हितकारिणी विधि महाविद्यालय के प्राचार्य बनाए गए और लंबे समय तक उनहोंने महाविद्यालय को अग्रिम पंक्ति में बनाए रखा। उनकी अभिरुचि साहित्य सृजन और समाज सेवा के क्षेत्र में भी थी। १९६४ में ही वे महापौर निर्वाचित हुए। नूर साहब प्रजा समाजवादी पार्टी (पीएसपी) के समर्पित कार्यकर्ता थे। वर्ष १९५२ से  वर्ष १९७७  तक वे नगर निगम के सदस्य रहे। पीएसपी की ओर से नूर साहब जबलपुर नगर निगम में वर्ष १९६४ में महापौर के रूप में चुने गए। उनके महापौर कार्यकाल में जबलपुर में साह‍ित्यि‍क व सांस्कृतिक वातावरण का विस्तार हुआ। नूर जी ने जबलपुर में आल इंड‍िया मुशायरा की शुरूआत करवाई। उर्दू में उनकी महारत को देखते हुए उन्हें मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी के गठन के समय सदस्य मनोनीत किया गया।

                  संस्कारधानी जबलपुर के महापौर के रूप में उनका कार्यकाल निष्पक्षता, निर्वैर्यता तथा कर्म नैपुण्य की मिसाल रहा। वे राजनीति में अजातशत्रु थे। उनसे असहमार विपक्षी भी उनकी विद्वता, मिलनसारिता और परोपकारिता का सम्मान करते थे। वे गाँधीवादी-समाजवादी विचारधारा के पक्षधसर थे किन्तु साम्यवादी अथवा दक्षिणपंथियों के साथ भी उनके व्यक्तिगत संबंध मधुर थे। उनको जहांजहाँ कहीं कोई बात अपने उसूलों के ख‍िलाफ़ नज़र आती, वे उसका इज़हार फौरनकरते किन्तु मनोमालिन्य से कोसों दूर थे।

                  हिन्दी, अंग्रेजी, उर्दू और फारसी भाषा में गहन अध्ययन नूर जी की विशेषता थी। उनकी यह विरासत उनके ज्येष्ठ पुत्र प्रो. डॉ. आशुतोष श्रीवास्तव ने ग्रहण की, जो तत्कालीन जबलपुर विश्वविद्यालय (अब रानीदुर्गावती विश्वविद्यालय) रसायन शास्त्र के प्राध्यापक थे। ‘नूर’ जी को न्यायलय में बहस के बाद बार रूम में आ कर आराम कुर्सी में आँख मूँदकर ध्यानस्थ रहने में बहुत आनंद आता था। गोविंदराम सेकसरिया महाविद्यालय के प्राचार्य, मशहूर शायर प्रेमचंद श्रीवास्तव 'मज़हर' पन्नालाल श्रीवास्तव के अभ‍िन्न मित्र थे। नूर जी  ने जबलपुर में उर्दू की एक प्रतिष्ठित संस्था अंजुमन तरक्कीये की स्थापना की थी। जनाब आग़ा जब्बार खां साहेब के निवास स्थान में नियमित रूप से मुशायारे का आयोजन होता था। नूर जी जान-बूझकर सबसे आखिर में कलाम पेश करते ताकि उनको सुनने के लिए श्रोता बैठे रहें। इन महफिलों में 
हाईकोर्ट के जज, डाक्टर, वकील-बैरिस्टर, प्रोफेसर, प्रतिष्ठ‍ित व्यवसायी, उच्च सरकारी व सैनिक अध‍िकारी शामिल होते थे। 

                  नूर जी मधुर गीतकार भी थे।  उनके गज़लकार उनके गीतकार पर हावी हो गया था। उनका पहला दीवान मंज़िल-मंज़िल १९७२ में, दूसरी कृति गीत संग्रह लहरें और तिनके १९८९ में तथा तीसरी और अंतिम पुस्तक रुबाइयाते खय्याम व ग़ज़लियाते हाफ़िज़ १९९० में प्रकाशित हुई थी। १७ सितंबर १९७२ को फ़‍िराक़ गोरखपुरी ने लिखा-‘’जनाब ‘नूर’ को उर्दू से अच्छी खासी वाक़फ़‍ियत है, और वह रवां दवां तौर पर अपने ख़यालात को सफ़ाई के साथ मौज़ूं अश्आर के सांचे में ढाल देते हैं। उनका अन्दाज़े-बयान शुस्त: है, और उनके कलाम में जो ज़बान की चाश्नी है उसका रह रह कर अन्दाज़ हो जाता है।‘’

                  बकौल पत्रकार पंकज परिमल -‘नूर’ साहब का असल जौहर उनकी इंसानियत और इंसान दोस्ती रही। इस में मेहनत तो ज्यादा पड़ती है मगर सच यही है कि फ़र‍िश्ता से इंसान बनना बेहतर है। पन्नालाल श्रीवास्तव ‘नूर’ सही मानों में इंसान थे और बकौल रशीद अहमद सिद्दीकी अच्छे शायर की असल पहचान भी यही है।' मध्य प्रदेश उर्दू साहित्य अकादमी प्रतिवर्ष प्रादेशिक स्तर पर पन्नालाल श्रीवास्तव नूर पुरस्कार (आत्मकथा, संस्मरण विधा में) प्रदान कर नूर जी को खिराजे-अकीदत पेश करती है। कदमी ने मानकुंवर बाई महिका स्वाशाही महाविद्यालय जबलपुर में उर्दू विभाग के अध्यक्ष डॉ. एम. ए. आरिफ द्वारा लिखित मोनोग्राफ २०२० में प्रकाशित किया। 
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संपर्क : प्रो। किरण श्रीवास्तव, डी १०५ शैलेन्द्र नगर, रतन पैलेस के सामने, समीप कटोरा तालाब, रायपुर छत्तीसगढ़। 

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