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गुरुवार, 20 अप्रैल 2023

सोनेट विमर्श

सोनेट विमर्श

उषा
मनोरमा जैन 'पाखी'
*
देख उषा की अरुणिम आभा।
रवि रश्मि को रंग बिखराते।
प्राची गोद अरुण अलसाया
फूलों पर भँवरे मँडराते।।


कानन में भी हुआ सबेरा ।
चिड़ियाँ चहक उठीं पेड़ों पर।
श्यामल घन ने डाला घेरा।।
बहने लगी हवा अति सुंदर।।

शंख नाद भी दिया सुनाई ।
पूजा के भी थाल सजे हैं।
घंटों की भी बारी आई ।।
ढोल-मंजीरे भी बजे हैं।।

रवि का हाथ पकड के आती
उषा नित नये स्वप्न दिखाती ।।

विमर्श

रवि रश्मि को रंग बिखराते
यहाँ रंग का उच्चारण २१ न होकर ११ रँग हो रहा है। इसलिए रवि को सूर्य करने पर विचार कीजिए। सूर्य रश्मि को रँग बिखराते।
बहने लगी हवा अति सुंदर
'सुंदरता' विशेषण है। यह आकार के लिए है या निराकार के लिए? हवा निराकार है। प्रकृति सुंदर है। प्रकृति का आकार है।
अंतिम अंतरे में 'भी' की बार-बार आवृत्ति खटकती है। इसने और उसने भी, 'भी' के पूर्व कुछ होता है जिसे पश्चातवर्ती जुड़ता है। शंख नाद के साथ 'भी' होना अर्थात उससे पहले भी कुछ सुनाई दिया था। उसका संदर्भ नहीं है।
केवल विचारार्थ।
***
चित्र पर सोनेट 

निमंत्रण 
किसको देखा कौन कहे?
नयन निमंत्रण दें गुपचुप। 
महक मोगरा सुमन रहे।।
मौन करे रस-पान मधुप।।

बोले वाक् अवाक् अबोल। 
तरस-बरस मत मधु-रस ले।
रखा बना रस मन में घोल।। 
लिए हाथ रस कस चख ले।। 

नहिं निष्काम सकाम सखा।
पीस पिसे मेंहदी जैसे। 
कहो श्वास रस कभी चखा?
खास आम रस हो कैसे?

रचा रास रस कौन दहे?
सकल मिलन पल मौन तहे।।
*  


 
सूर्यमुखी 
सूर्यमुखी रवि-किरणें  देख। 
अपलक रूप निहारे मौन। 
भौंचक मुख विस्मय की रेख।।
नट हो पूछ रहा तुम कौन।।

सन सन पवन कहे संदेश। 
सूर्य-सुता भू-तनय मिले।
कदली पर्ण प्रसन्न विशेष।। 
भू-नभ के मन-प्राण खिले।। 

घर-घर पौधारोपण हो।
प्राणवायु आरोग्यप्रदा। 
खुशियों का आरोहण हो।।  
कुशल-क्षेम हो अमित सदा।।  

करें सूर्य के दर्शन भोर। 
थामे रहें सफलता डोर। ।।
*  

साॅनेट
समय
रेखा श्रीवास्तव अमेठी यू पी
*
समय बहुत कुछ सिखलाता। १४ 
सबक नहीं सीखा जिसने।
दिन बीते फिर पछताता।।
खो देता सब जीवन से।।

समय किसी का सगा नहीं।
मोल समय का जानो तुम ।
किसने किसको ठगा नहीं ।।
जग का सच पहचानो तुम ।।

राजा से हैं रंक बने ।
खेल विधाता है कैसा।
बड़े-बडे़ मिट धूल सने।।
जो बोया काटा वैसा।।

समय को न तुम बरबाद करो।।
सदा नेक सब काम करो।।
विचारार्थ 
*
सॉनेट - हेमंत ऋतु 

रे मन तू बन जा कबीर 
हो मन चंगा तो नाच 
रे मन तू बन जा फ़क़ीर 
हो मन बेढंगा तो नाच 

चाहे चले अंधड़ पवन 
झरे तरु से पत्ते सूखे 
नाच ऐसे हो के मगन 
नाचे जैसे बच्चे बूढ़े 

ऋतु हेमंत त्योहार लाए 
पर्व मनाएँ मस्ती में 
नाचे गाए घर बार सजाए 
उजास फलाएँ बस्ती में 

कबीर वाणी चाहे राम कहानी 
ऋतु हेमंत में नाच गा के सुनानी
*
सॉनेट
कबीर
*
ज्यों की त्यों चादर धर भाई
जिसने दी वह ले जाएगा।
क्यों तैंने मैली कर दी है?
पूछे तो क्या बतलाएगा?

काँकर-पाथर जोड़ बनाई
मस्जिद चढ़कर रोज बांग दे।
पाथर पूज ईश कब मिलता?
नाहक रचते लोग स्वांग रे!

दो पाटन के बीच न बचता
कोई सोच दुखी मत होना।
कीली लगा न किंचित पिसता
सत्य सीखकर सुख से सोना।

जोड़े व्यर्थ न कभी अमीरा। 
कहते सत्य कमाल-कबीरा।।
५-१२-२०२१
***
 




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