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गुरुवार, 27 अप्रैल 2023

मुक्तिका

मुक्तिका 

तू ही लिख

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सीधी-सादी सच्ची बातें, मैं न लिखूँगा, तू ही लिख।

पंडज्जी ने की हैं घातें, मैं न लिखूँगा, तू ही लिख।।

नेता जी की मोंड़ी भागी, प्रेस न छापे, टी.वी. चुप। 

काली थीं हैं काली रातें, मैं न लिखूँगा, तू ही लिख।।

छाती छीली चट्टानों की, लूट रहे हैं रेती मिल।

वृक्षों को काटा दुष्टों ने, मैं न लिखूँगा, तू ही लिख।।

कौए जीतें, हारें सारे हंस, यही होना है कल।

नागों-साँपों की सत्ता है, मैं न लिखूँगा, तू ही लिख।।

मारेंगे रोने भी देंगे, सोच न, गा नेता का जस।

खोई जीतें पाई मातें, मैं न लिखूँगा, तू ही लिख।।






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