मुक्तिका
तू ही लिख
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सीधी-सादी सच्ची बातें, मैं न लिखूँगा, तू ही लिख।
पंडज्जी ने की हैं घातें, मैं न लिखूँगा, तू ही लिख।।
नेता जी की मोंड़ी भागी, प्रेस न छापे, टी.वी. चुप।
काली थीं हैं काली रातें, मैं न लिखूँगा, तू ही लिख।।
छाती छीली चट्टानों की, लूट रहे हैं रेती मिल।
वृक्षों को काटा दुष्टों ने, मैं न लिखूँगा, तू ही लिख।।
कौए जीतें, हारें सारे हंस, यही होना है कल।
नागों-साँपों की सत्ता है, मैं न लिखूँगा, तू ही लिख।।
मारेंगे रोने भी देंगे, सोच न, गा नेता का जस।
खोई जीतें पाई मातें, मैं न लिखूँगा, तू ही लिख।।
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