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सोमवार, 17 अप्रैल 2023

महादेव प्रसाद 'सामी'

चलते-फिरते विश्वविद्यालय महादेव प्रसाद 'सामी' 


मन्वन्तर वर्मा 'मनु' 

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                   प्रोफेसर महादेव प्रसाद 'सामी' एक ऐसी शख्सियत का नाम जो आदमी के चोले में चलता-फिरता विश्वविद्यालय था। बीसवीं सदी के चंद चुनिंदा शायरों की फहरिस्त में सामी जी का नाम अव्वल हो सकता है। सामी साहब का जन्म बाबू देवीप्रसाद (सुपरिन्टेन्डेन्ट कमिश्नर ऑफिस लखनऊ) के घर में २० जुलाई १८९५ को कस्बा जैदपुर, हरदोई उत्तर प्रदेश में तथा निधन २ अक्टूबर १९७१ को जबलपुर मध्य प्रदेश में हुआ। वे गोमती और नर्मदा के बीच की ऐसी अदबी कड़ी थे जो शायरी को पूजा की तरह मुकद्द्स मानते थे। उनका एक मात्र दीवान 'कलामे सामी' उनके  इंतकाल के २ साल बाद साल १९७३ में अंजुमन तरक्किये उर्दू ने साया किया। इसका संपादन मशहूर शायर, वकील जनाब पन्नालाल श्रीवास्तव 'नूर' (मेयर जबलपुर) और भगवान दयाल डग ने किया। दीवान की शुरुआत में 'दो शब्द' लिखते हुए हिंदी-संस्कृत-अंग्रेजी के विद्वान् कृष्णायनकार द्वारका प्रसाद मिश्र (मुख्य मंत्री मध्य प्रदेश, कुलपति सागर विश्वविद्यालय) ने लिखा - 'प्रोफेसर सामी में काव्य प्रतिभा एवं आचार्यत्व का सुंदर समागम था। आजीवन आत्म प्रकाशन से दूर रहकर उनहोंने काव्य रचना की थी..... उनकी रचनाओं में उनके भाषा पर असाधारण अधिकार के साथ ही उनकी मौलिक सूझ-बूझ एवं हृदयानुभूति के भी दर्शन होते हैं। यत्र-तत्र उनके कलाम में दार्शनिकता की भी झलक है जो किसी भी भारतीय कवि के लिए, चाहे वह किसी भी भाषा का कवि हो सर्वथा स्वाभाविक है। ग़ज़लों के विषय प्राय: परंपरागतबपरंपरागत तो होते ही हैं फिर भी 'सामी' के काव्य में अनेक नवीन उद्भावनाएँ हैं। भाषा में अभिव्यंजन कौशल के साथ प्रवाह है और अर्थ गांभीर्य के साथ सरलता। कल्पना की उड़ान के साथ पार्थिव जीवन की सच्चाई उनके काव्य को उनकी निजी विशेषता प्रदान करती है।'

                   सामीजी ने शाने अवध कहे जानेवाले शहर लखनऊ में मैट्रिक तक उर्दू-फ़ारसी का अध्ययन किया। आपने स्वध्याय से दोनों भाषाओँ का इतना गहन एवं व्यापक ज्ञान अर्जित किया कि आपकी गिनती 'उस्तादों' में होने लगी। विद्यार्थी काल में पढ़ने के साथ साथ अपने ट्यूशन भी लीं। आपके विद्यार्थियों में मशहूर शायर जोश मलीहाबादी भी थे। जोश ने आपने शायरी कफ़न नहीं विज्ञान सीखा। वे ऐसी शख्सियत थे की सिर्फ मैट्रिक होते हुए भी सागर विश्वविद्यालय द्वारा विशेष अनुमति से  हितकारिणी सिटी कॉलेज जबलपुर में उर्दू-फ़ारसी' के प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष बनाए गए। उर्दू अदब में 'उस्ताद परंपरा' है मगर सामी जी अपने उस्ताद आप ही थे। रायबरेली उत्तर प्रदेश निवासी मुंशी नर्मदा प्रसाद वर्मा (इंस्पेक्टररजिस्ट्रेशन विभाग जबलपुर) की पुत्री लक्ष्मी देवी के साथ ८ मई १९१८ को आपका विवाह संपन्न हुआ। १९२१ में आप नार्मल  स्कूल बिलासपुर में गणित तथा विज्ञान के शिक्षक होकर आए।  पहले साल में ही इनकी विद्वता, योगयता और कुशलता की धाक ऐसी जमी की आपको टीचर्स ट्रेनिंग कॉलेज जबलपुर में चुन लिया गया और आप ट्रेनिंग का २ वर्ष का कोर्स एक वर्ष में पूर्ण कर परीक्षा में अव्वल आए। आपको मॉडल हाई स्कूल जबलपुर में नियुक्त कर दिया गया। आप १९४० तक लगभग २० वर्ष मॉडल हाई स्कूल में ही रहे। विज्ञान और गणित पढ़ाने में आपका सानी नहीं था।  आपने शृंगारिक ग़ज़लों के साथ देश हुए समाज की गिरी हुई हालत को सुधारने के नज़रिए से नैतिकता और दार्शनिकता से भरपूर ग़ज़लें लिखकर नाम कमाया। इसके अलावा आपने अरबी-फ़ारसी व संस्कृत सीखकर उसके साहित्य का गहराई से अध्ययन किया। आप अपनी विद्वता  गणित, विज्ञान के अतिरिक्त अरबी-फ़ारसी-उर्दू  विषयों के लिए भी बोर्ड तथा विश्वविद्यालय की कमेटियों में परीक्षक बनाए जाते थे। वे अलस्सुबह उठाकर पढ़ना शुरू कर देते हुए देर रात तक पढ़ते-पढ़ाते रहते थे। उनके घर पर दिन भर किसी स्कूल की तरह पढ़नेवाले आते रहते। वे किसी को खाली हाथ लौटाते नहीं थे। 

                   खुद केवल मैट्रिक तक पढ़ाई करने के बाद भी वे बी.ए,. एम. ए. के विद्यार्थियों को गणित, विज्ञान, भौतिकी, उर्दू तथा फारसी आदि पढ़ाते थे। और तो और की बार खुद प्रफेसर आदि भी अपनी मुश्किलात आपसे हल कराते थे। हिंदी साहित्य और हिंदी साहित्यकारों को भी आपसे लगातार मदद मिलती रहती थी। आपने अपना एक भी दीवान साया नहीं कराया। पूछने पर कहते 'पढ़ने-पढ़ाने-सोचने से ही फुरसत नहीं मिलती'। आपके मार्गदर्शन में केशव प्रसाद पाठक ने उमर खय्याम के साहित्य का हिंदी अनुवाद किया। आपने पत्रिका प्रेमा के संपादक रामानुजलाल श्रीवास्तव 'ऊँट बिलहरीवी' का  महाकवि अनीस और महाकवि ग़ालिब की टीका करने में मार्गदर्शन किया। आप हिंदी छंद शास्त्र के विद्वान् थे। सेठ गोविंददास और सुभद्रा कुमारी चौहान  आदि आपके प्रशंसक थे। 

                   भारत की लालफीताशाही की ताकत का पार नहीं है। सामी जी भी इसके शिकार हुए। एक तरफ जहाँ आपकी विद्वता की धाक पूरे प्रान्त में थी, दूसरी और १८ साल नौकरी करते हुए अपने पद और वेतन से ऊपर का काम करने पर भी आप को कोई पदोन्नति नहीं गई। गज़ब तो यह की १९४० में जबलपुर में पहला कॉलेज हितकारिणी सिटी कॉलेज स्थापित होने पर विश्वविद्यालय से विशेष अनुमति लेकर आपको उर्दू-फारसी का प्राध्यापक और विभागाध्यक्ष बनाया गया, दूसरी और समय से पूर्व शालेय शिक्षा विभाग से सेवा निवृत्ति के कारन आपको पेंशन नहीं दी गई। उन्हें अपने घर का खर्च चलने के लिए ट्यूशन करनी पड़ी। तब बिजली नहीं थी। जमीन पर बैठकर लगातार झुककर पढ़ने के कारण आपकी कमर झुक गई और आप को लकड़ी का सहर लेना पड़ा। कॉलेज से आप १०७० में सेवा मुक्त हुए। अपनी खुद के संतान न होने पर भी आपने दिवंगत बड़े भाई के ३ पुत्रों तथा १ पुत्र की पूरी जिम्मेदारी उठाई। उन्हें पढ़ा-लिखकर, विवाहादि कराए। 

                   निरंतर कमजोर होती विवाह और परिवार संस्थाओं के इस संक्रमण काल में सामी जी का जीवन एक उदाहरण है की किस तरह अपना जीवन खुद की सुख-सुविधा तक सीमित ना रखकर सूर्य की तरह सबको प्रकाशित कार जिया जाता है। वैदुष्य, समर्पण, निष्ठा, मेधा, और वीतरागता के पर्याय महादेव प्रसाद सामी जी दर्शन शास्त्र, ज्योतिष शास्त्र, धर्म शास्त्र, तर्क शास्त्र, इतिहास आदि में अपनी विद्वत के लिए सर्वत्र समादृत थे। 
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संपर्क - ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन जबलपुर ४८२००१   
 























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