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शुक्रवार, 21 अप्रैल 2023

हेमंत छंद, सॉनेट, अंगिका, दोहा, बाला छंद, रामवत छंद, बुंदेली कहानी, चित्र अलंकार ,

सॉनेट
रेलगाड़ी
रेलगाड़ियाँ दौड़ रही हैं।
पूरब-पच्छिम-उत्तर-दक्खिन।
सबको पीछे छोड़ रही हैं।।
करें सफर हर साँझ-रात-दिन।।

कौन बताए कितने चक्के?
बोगी-बर्थ-सीट हैं कितनी?
खातीं, देतीं कितने धक्के?
सहनशक्ति है ईश्वर जितनी।।

जितना पैसा, उतनी सुविधा।
बिना टिकट मत चढ़ो मुसाफिर।
रखना मन में तनिक न दुविधा।।
लड़ना हर मुश्किल से डटकर।।

सबसे लेती होड़ रही हैं।
रेलगाड़ियाँ दौड़ रही हैं।।
२१-४-२०२३
●●●सॉनेट
जागरण
जागरण का समय जागो
बहुत सोये अब न सोना।
भुज भरे आलस्य त्यागो
नवाशा के बीज बोना।।
नमन कर रख कदम भू पर
फेफड़ों में पवन भर ले।
आचमन कर सलिल का फिर
गगन-रवि को नमन कर ले।।
मुड़ न पीछे, देख आगे
स्वप्न कुछ साकार कर ले।
दैव भी वरदान माँगे
जगत का उद्धार कर दे।।
भगत के बस में रहे वह
ईश जिसको जग रहा कह।।
२१-४-२०२२
•••
चित्र अलंकार
अर्ध पिरामिड
*
हे
राम!
मत हो
प्रभु वाम।
कोरोना मार,
लो हमें उबार,
हर पीर तमाम।
बहुत दुखी संसार,
सब तरफ हाहाकार,
बाँह थाम, स्वीकार प्रणाम।
*
दोहा सलिला
*
प्राण दीप की दीप्ति दे, कोरोना को मात।
श्वास सलिल संजीव कर, कहे हुआ फिर प्रात।।
*
लोभ-मोह कम कीजिए, सुख देता संतोष।
बाहर कम घर अधिक रह, बढ़ा स्नेह का कोष।।
*
जो बिछुड़े उनको नमन, जो सँग रखिए ध्यान।
खुद भी रहिए सुरक्षित, पा-दें साँसें दान।।
*
करें गरारे भाप लें, सुबह शाम लें धूप।
कांता की जय बोले, कहिए कांत अनूप।।
*
आशा कभी न छोड़िए, करें साधना योग।
लगे मुखौटा दूर हो, कोरोना का रोग।।
२१-४-२०२१

***
नवगीत
शेष है
*
दुनिया की
उत्तम किताब हम
खुद को पढ़ना
मगर शेष है
*
पोथी पढ़-पढ़ थक हारे हैं
बिना मौत खुद को मारे हैं
ठाकुर हैं पर सत्य न बूझें
पूज रहे ठाकुरद्वारे हैं
विधना की
उत्तम रचना हम
खुद कुछ रचना
मगर शेष है
*
अक्षर होकर क्षर ही जोड़ा
राह बना, अपना पग मोड़ा
तिनका-तिनका चले जोड़ने
जोड़-जोड़कर हर दिल तोडा
छंदों का
उत्तम निभाव हम
खुद का निभना
मगर शेष है
*
डर मत, उछल-कूद मस्ता ले
थक जाए तो रुक सुस्ता ले
क्यों यंत्रों सा जीवन जीता?
चल पंछी बन, कलरव गा ले
कर्मों की
उत्तम कविता हम
खुद को कहना
मगर शेष है
***
***
बुंदेली कहानी
समझदारी
*
आज-काल की नईं, बात भौर दिनन की है।
अपने जा बुंदेलखंड में चन्देलन की तूती बोलत हती।
सकल परजा भाई-चारे कें संगै सुख-चैन सें रैत ती।
सेर और बुकरियाँ एकई घाट पै पानी पियत ते।
राजा की मरजी के बगैर नें तो पत्ता फरकत तो, नें चिरइया पर फड़फड़ाउत ती।
सो ऊ राजा कें एक बिटिया हती।
बिटिया का?, कौनऊ हूर की परी घाईं, भौतऊ खूबसूरत।
बा की खूबसूरती को कह सकत आय?
जैसे पूरनमासी में चाँद, दीवारी में दिया जोत की सी, जैंसे दूद में झाग।
ऐंसी खिलंदड जैसे नर्मदा और ऊजरी जैंसे गंगा।
जब कभूं राजकुँवरि दरबार में जात तीं तौ दरबार जगमगान लगत तो।
राजकुँवरि के रूप और गुनन कें बखान सें सकल परजा को सर उठ जात तो।
एक सें बढ़के एक राजा, जागीरदार अउर जमींदार उनसें रिश्ते काजे ललचात रैत ते।
मनो राजकुँवरि कौनऊ के ढिंगे आँख उठा के भी नें हेरत ती।
जब कभऊं राजदरबार में कछू बोलत ती तो मनो बीना कें तार झनझना जाउत ते।
राजा के मूं लगे दरबारन नें एक दिना हिम्मत जुटा कहें राजा साब सें कई।
"महाराज जू! बिटिया रानी सयानी भई जात हैं।
उनके ब्याह-काज कें लाने बात करो चाही।
समय जात देर नईं लगत, बात-चीत भओ चहिए।''
दरबारन की बातें कान में परतई राजकुँवरि के गालन पे टमाटर घाईं लाली छा गई।
राजकुँवरि के नैन नीचे झुक गए हते।
राजा साहब ने जा देख कें अनुमान कर लओ कि दरबारी ठीकई कै रए।
राजकुँवरि ने परदे की ओट सें कई -''दद्दा जू! हुसियार राजा कहें अपनेँ वफादार दरबारन की बात सुनों चाही।''
राजा साब नें अचरज के साथ राजकुँवरि की तरफ हेर खें कई ''हम सोई ऐंसई सोचत रए। ''
''दद्दा जू! मनो ब्याह काजे हमरी एक शर्त है।
हम बा शर्त पूरी करबे बारे सें ब्याह करो चाहत हैं।"
अब तो महाराज जू और दरबारां सबईं खों जैसे साँप सूंघ गओ।
बेटी जू के मूं सें सरत को नाम सुनतई राजा साब और दरबारी सब भौंचक्के रए गए।
कोई ने सोची नईं हती के राजकुँवरि ऐसो कछू बोल सकत ती।
सबरे जाने सोच में पर गए कि राजकुँवरि कछू ऐसो-वैसो नें कै दें।
कहूँ उनकी कई पूरी नें कर पाए तो का हुईहै?
राजकुँवरि नें सबखों चुप्पी लगाए देख खें आपई कई।
"आप औरन खों परेसान होबे की कौनऊ जरूरत नईआ।''
अब राजा साब ने बेटी जू सें कई- "बेटी जू! अपुन अपुनी सरत बताओ तें हम सब अपुन की सरत पूरी करबे में कछू कोर-कसार नें उठा रखबी।"
अब बेटी जु ने संकुचाते-संकुचाते अपनी सरत बताबे खातिर हिम्मत जुटाई और बोलीं-
"दद्दा जू! हम ऐसें वर सें ब्याह करो चाहत हैं जो चाहे गरीब हो या अमीर, गोरो होय चाए कारो, पढ़ो-लिखो होय चाए अनपढ़, लंगड़ो होय चाए लूलो पै बो बैठ खें उठ्बो नें जानत होय।"
बेटी जू सें ऐंसी अनोखी सरत सुन खें दरबारन खों दिमाग चकरा गओ।
आप राजा साब सोई कछू नें समझ पा रए थे।
मनो राजा साब राजकुँवरि की समझदारी के कायल हते।
सबई दारबारन खों सोच-बिचार में डूबो देख राजा जू नें तुरतई राज घराने कें पुरोहित खें बुला लाबे काजे एक चिठिया ले कें खबास खें भेज दओ।
पंडज्जी और खबास खों आओ देख कें महाराज जू नें एक चिट्ठी दे कें आदेस दओ-
"तुम दोउ जनें देस-बिदेस घूम-घूम खें जा मुनादी कराओ और कौनऊ ऐसे खों पता लगैयों जो बैठ खें उठाबो नें जानत होए।"
तुमें जिते ऐसो कौनऊ जोग बार मिले जो बैठ खें उठ्बो नेब जानत होय, उतई बेटी जू का ब्याह तय कर अइयो।
उतई बेटू जु के ब्याओ काजे फलदान को नारियल धर अइयो।
राजा साब की आज्ञा सुनकें पंडज्जी और खबास दोई जनें देसन-देसन कें राजन लौ गए।
बे हर जगू बिन्तवारी करत गए मनो निरासा हाथ लगत गई।
बे जगूं-जगूं कैत गए "जून राजकुंवर बैठ खें उठ्बो नें जानत होय ओई के संगे अपनी राजकुंवरि का फलदान करबे काजे आये हैं।"
बे जिते-जिते गए, उतई नाहीं को जवाब मिलत गओ।
कहूँ-कहूँ राजा लोग कयें 'जे कैसी अजब सर्त सुनात हो?
राजकुंवरि खें ब्याओ करने हैं कि नई?
पंडज्जी और खबास घूमत-घूमत थक गए।
महीनों पे महीने निकारत गए मनो बात नई बनीं।
सर्त पूरी करबे बारो कौनौ राजकुमार नें मिलो।
आखिरकार बिननें थक-हार कर बापिस होबे को फैसला करो।
आखिरी कोसिस करबे बार बे आखिरी रजा के ढींगे गए।
इतै बी सर्त सुन कें राजदर्बाराब और राजा ने हथियार दार दै।
दोऊ झनें लौटन लगे तबई राजकुमार बाहर सें दरबार में पधारे।
उनने पूरी बात जानबे के बाद रजा साब सें अरज करी-
" महाराज जू! आज लॉन अपने दरबार सें कौनऊ मान्गाबे बारो खली हात नई गओ है।
पुरखों को जस माटी में मिलाए से का फायदा?
अपने देस जाके और रस्ते में जे दोनों जगू-जगू अपन अपजस कहत जैहें।
ऐसें बचबे को एकई तरीको है।
आप जू इन औरन की बात रख लेओ।
आपकी अनुमत होय तो मैं इन राजकुमारी की सर्त पूरी करे के बाद ब्याओ कर सकत।"
जा सुन खें महाराज जू और दरबारी पैले तो संकुचाये कि बे ओरन कछू राह नई निकार पाए।
कम अनुभवी राजकुमार नें रास्ता खोज लओ।
अपनें राजकुमार की होसियारी पे भरोसा करखें महाराज जू नें कई-
" कुंवर जू! अपनी बात पे भरोसा कर खें हम फलदान रख लेंत हैं, मनो हमाओ सर नें झुकइयो।
काये कि सर्त पूरी नें भई तो राजकुमारी मुस्किल में पड़ जैहें।
राज कुमार ने कई "आप हमाओ भरोसा करकें फलदान ले लेओ मगर हमरी सोई एक सर्त है।
अब सबरे दरबारी, रजा, पंडज्जी और खबास चकराए।
अब लौ एकई सर्त पूरीनें हो रई हती, अब एक और सर्त का चक्कर कैसे सुलझेगो?
महाराज नें पूछी तो राजकुमार नें सर्त बताई।
महाराज आप जेई कागज़ पे एक संदेस लिख कें पठा दें।
हमाई सरत है कि राजकुमारी की सरत पूरी करबे के काजे हमाओ राजकुमार तैयार है।
मनो अकेले बे ऊ राजकुमारी सें ब्याओ कर्हें जो परके टरबो नें जानत होय।'
जो राजकुमारी खों जे सर्त स्वीकार होय तो बो अपनी हामी के संगे अपने पिताजू सें फलदान पठा देवें।
राजकुँवर सें हामी भरवाखें पंडज्जी और खवास दोउ जनों ने जान की खैर मनाई।
बे दोनों सारदा मैया की जय कर अपने राज खों लौट चले।
राजा के लिंगा लौट खें पुरोहित नें पूरो हालचाल बताओ।
पुरोहित नें कई "महाराज! हम दोउ जनें कहूँ रुकें बिना दिन-रात दौरतई रए।
पैले एक तरफ सें आगे बढ़े हते।
हौले-हौले देस-बिदेस कें सबई राजा जनों के दरबार में जात गए।
मनो अकेलीं बेटी जू की सर्त पूरी करे काजे कौनऊ राजकुमार नें हामी नई भरी।
हर जगूं सुरु-सुरु में भौत उत्साह सें न्योटा लऔ जात।
मनो सर्त की बात सामने आतेई बिनकों सांप सूंघ जात तो।
आखर में हम दोऊ निरास हो खें अपने परोसी राजा कने गए।
बिनने हुलास सें स्वागत-सत्कार करो।
जैसेई सर्त की बात भई सबकें मूं उतर गए।
राजा और दरबारी तो चुप्पै रए गए।
हम औरन नें सोचीं के खाली हात वापिस होबे के सिवाय कौनौ चारो नईयाँ।
मनो बुजुर्ग ठीकई कै गए हैं मन सोची कबहूँ नई, प्रभु सोची तत्काल।
हमाई बिदाई होते नें होते राजकुंवर जू दरबार में पधार गए।
कुँवर जू ने सारी बात ध्यान सें सुनी, कछू देर सोचो और सर्त के लाने हामी भर दई।
मनों अपनी तरफ सें एक सर्त और धर दई।
एं कौन सी सर्त? कैसी सर्त? महाराज जू नें हडबडा खें पूछी।
बतात हैं महाराज! बा सर्त बी बड़ी बिचित्र है।
कुँवर नें कई के बें ऐसी स्त्री सें ब्याओ करहें जोन पर खें टरबो नईं जानत होय।
नें मानो तो अपुन जू जा कागज़ खों बांच लेओ।
जा कागज में सब कछू लिखा दओ है कुँवर नें।
जा सर्त जान खें महाराज और दरबानी परेसान हते।
कौनौ खें समझ मीन कौनऊ रास्ता नें सूझो।
महाराज ने राजकुँवरी खें बुला भेजो।
बे अपनी सखियाँ खें संगे अमराई में हतीं।
महाराज जू को संदेसा मिलो तो तुरतई दरबार कें लाने चल परीं।
राजकुँवरी ने जुहार कर अपनी जगह पे पधार गईं।
महाराज नें कौनौ भूमिका बनाए बिना पंडज्जी सें कई के बा कागज़ बांच देओ।
पंडत नें राजा कें हुकुम का पालन कर्खें बा कागज़ झट सें बांच दओ।
बामें लिखी सर्त सुन खें राजकुँवरी हौले सें मुसक्या दईं और सरम सें सर झुका लओ।
जा देख खें सबई की जान में जान आई।
महाराज नें पूछी तो राजकुँवरी नें धीरे सें कै दई के बे जा सर्त पूरी कर सकत हैं।
फिर का हती, बिटिया रानी की हामी सुनतई पंडत नें तुरतई रजा जी सें कई 'अब बिलम्ब केहि कारज कीजे ?'
रजा जू पंडत खों मतलब समझ गए और बोले- श्री गनेस जू का ध्यान कर खें मुहूर्त बताओ।
पंडज्जी तो ए ई औसर की तलास में हते।
बिनने झट से पोथा-पत्तर निकारो और मुहूरत बता दओ।
राजा नें महारानी खें बुलाबा भेजो और उन रजामंदी सें संदेश निमंत्रण पत्रिका लिखा दई।
पत्रिका में लिखो हतो के आप जू अपने राजकुंवर की बारात लें खें अमुक तिथि खों पधारें।
कवास खें आदेस दओ के जा पत्रिका राजा साब जू खें धिंगे पौन्चाओ।
खवास तो ऐई मौके की टाक माँ हतो।
जानत तो दोऊ जगू मोटी बखसीस मिलहै।
पत्रिका पहुँचतई दोऊ राजन के महलन में ब्याओ की तैयारियां सुरु हो गईं।
लिपाई-पुताई, चौक पुराई, गाने-बजाने, आबे-जाबे औए मेहमानन के सोर-सराबे से चहल-पहल हो गई।
दसों दिसा में भोर सें साँझ लौ मंगाल गान गूंजन लगे।
जैसेंई ब्याओ की तिथि आई बैसेई राजा जू अपने कुँवर साब खों दुल्हा बना खें पूरे फ़ौज-फांटे के संगे चल परे। समधी की राज में बिनकी खूबई आवभगत भई।
जनवासे में बरात की अगवानी की गई।
बेंड़नी खों नाच देखबे के खातिर लोग उमड़ परे।
बरातियों खों पेट भर जलपान और भोजन कराओ गओ।
जहाँ-तहाँ सहनाई और ढोल-बतासे बजट हते।
बरात की अगवानी भई, पलक पांवड़े बिछा दए गए।
सजी-धजी नारियाँ स्वागत गीत गुंजात तीं।
नाऊ और खवास बरातियन की मालिस करत हते।
ज्योनार कें समै कोकिलकंठों से ज्योनार गीत और गारी सुन-सुन खें बराती खूबई मजा लेत ते।
बरात उठी तो बाकी सोभा कही नें जात ती।
हाथी, घोड़ा, रथ, पैदल सब अपनी मस्ती में मस्त हते।
ढोल, मंजीरा, ताशा, बिगुल, शहनाई के सँग नाच-गाना की धूम हती।
मंडवा तरे भांवरन की तैयारी होन लगी।
मंडवा तरे राजकुमारी, राजकुमार दूल्हा-दुलहन के काजे रखे पटा पे बिराजे।
दोउ राजा जू, रानीजू, नजीकी रिस्तेदार दास-दासियाँ, पंडज्जी और खवास सबै आस-पास बैठे हते।
बन्ना-बन्नी गीत गूंजत हते।
चारों तरफी हल्ला-गुल्ला, चहल-पहल, उत्साह हतो।
अब जैसेईं तीं भांवरें पड़ चुकीं, बैसेई कन्या पक्ष को पुरोहित खड़ो हो गओ।
वर पक्ष के पंडज्जी सें बोलो 'नेंक रुक जाओ पंडज्जी!
अपुन दोऊ जनन खों मालुम है कै ब्याओ होबे के काजे कछू शर्तें हतीं।
पैले उनका खुलासा हो जावे, तब आगे की भाँवरें पारी जैहें।
फिर बानें कुँवर जू सें कई "कुँवर जू! पैले अपुन बतावें के बेटी जू नें कौन सी सर्त रखी हती?
अपुन जा सोई बताएँ के बा सर्त कब-कैंसें पूरी कर सकत?"
जा बात सुनतेई दुल्हा बने राजकुमार झट सें खड़े हो गए।
बे बोले स्यानन कें बीच में जादा बोलबो ठीक नईयाँ।
अपनी अकल के माफिक मैं जा समझो के राजकुमारी जी ने सर्त रखी हती के बै ऐसो बर चाउत हैं जो बैठ कें उठबो नें जानत होय।
जा सर्त में राजकुमारी जू की जा इच्छा छिपी हती के उनको बर जानकार, अकलमंद, कुल-सीलवान, सुन्दर, औए बलसाली भओ चाही।
ई इच्छा का कारन जे है के कौनऊ सभा में, कौनऊ मुकाबले में ओ खों कौउ हरा नें सकें।
बिद्वान सें बिद्वान जन हों चाए ताकतवर लोग कौनऊ बाखों हरा खें उठा नें पावे।
सबै जगा बाकी जीत को डंका पिटो चाही।
ओके जीतबे से राजकुमारी जू को सर हमेसा ऊँचो रहेगो।
राजकुमारी अपने वर के कारन नीचो नई देखो चाहें।
बे जब चाहे, जैसे चाहें आजमा सकत आंय। "
दूल्हा राजा के चुप होतई पंडज्जी ने राजकुमारी से पूछो- 'काय बिटिया जू! तुमाई सर्त जोई हती के कछू और हती?"
जा सुन कें राजकुमारी नें हामी में सर हिला दओ।
मंडवा कें नीचे बैठे सबई जनें राजकुमार की अकाल की तारीफ कर कें वाह, वाह कै उठे।
जा के बाद राजकुमार को पुरोहित खडो हो गओ।
पुरोहित नें खड़े हो खें कही 'हमाए राजकुमार ने भी एक सर्त रखी हती।
अब राजकुमारी जू बताबें के बा सर्त का हती और बे कैसे पूरी कर सकत हैं?'
ई पै राजकुमारी लाज और संकोच सें गड़ सी गईं, मनो धीरे से सिमट-संकुच कें खड़ी भईं।
कौनऊ और चारा नें रहबे से बिन्ने जमीन को ताकत भए मंडवा के नीचे बैठे बड़ों-बुजुर्गों से अपने बात रखे के काजे आज्ञा माँगी।
आज्ञा मिलबे पर धीमी लेकिन साफ़ आवाज़ में कई 'राजकुँवर की सर्त जा हती के बें ऐसी स्त्री सें ब्याओ करो चाहत हैं जौन पर खें टरबो नईं जानत होय।'
हम सर्त से जा समझें के राजकुमार नम्र और चतुर पत्नी चाहत हैं।
ऐंसी पत्नी जो घरब के सब काम-काज जानत होय।
ऐंसी पत्नी जो कामचोर और आलसी नें होय।
जो घर के सब बड़ों को अपने रूप, गुण, सील और काम-काज सें प्रसन्न रख सके।
ऐसो नें होय के जब दोउ जनें परबे खों जांय तो कछू छूटो काम याद आने से उठनें परे।
ऐसो भी ने होय कि बड़ो-बूढ़ों परबे या उठबे के बाद कौनौ बात की सिकायत करे और घर में कलह हो।
राजकुमार ऐंसी सुघड़ घरबारी चाहत हैं जो कमरा में आ कें परे तो कौनऊ कारन सें उठबो नें जानें।
राजकुमार जब - जैसे चाहें परीक्छा ले लें।
दुल्हन के चुप होतई पुरोहित ने राजकुमार से पूछो- 'काय कुँवर जू! तुमाई सर्त जोई हती के कछू और हती?"
जा सुन कें राजकुमार नें अपनी रजामंदी जता दई।
मंडवा कें नीचे बैठे सबई लोग-लुगाई और सगे-संबंधी ताली बजाओं लगै।
राजकुंवरी और राजकुमार की समझदारी नें सबई खों मन मोह लओ हतो।
पंडज्जी और पुरोहित नें दोऊ पक्षों के सर्त पूरी होबे की मुनादी कर दई।
राजकुँवर मंद-मंद मुसक्या रए हते।
राजकुमारी अपने गोर नाज़ुक पैर के अंगूठे सें गोबर लिपा अँगना कुरेदत हतीं।
उनकें गोरे गालन पे लाली सोभायमान हती।
पंडज्जी और पुरोहित जी ने अगली भांवर परानी सुरु कर दई।
सब जनें भौत खुस भये कि दुल्हा-दुल्हन एक-दूसरे के मनमाफिक आंय।
सबसे ज्यादा खुसी जे बात की हती के दोऊ के मन में धन-संपत्ति और दहेज को लोभ ना हतो।
दोऊ जनें गुन और सील को अधिक महत्व देखें संतोस और एक-दूसरे की पसंद को ख्याल रख कें जीवन गुजारन चाहत ते।
सब जनों ने भांवर पूरी होबे पर दूल्हा-दुल्हिन और उनके बऊ-दद्दा खों खूब मुबारकबाद दई।
इस ब्याव के पैले सबई जन घबरात हते कि "बैठ कें उठबो नें जानन बारो" वर और "पर खें टरबो नईं जानन बारी बहू" कहाँ सें आहें?
असल में कौनऊ इन शर्तों का मतलबई नें समझ पाओ हतो।
आखिर में जब सब राज खुल गओ तो सबनें चैन की सांस लई।
इनसे समझदार मोंड़ा-मोंडी हर घर में होंय जो धन की जगू गुन खों चाहें।
तबई देस और समाज को उद्धार हुइहै।
राजकुमारी और राजकुमार को भए सदियाँ गुजर गईं मनों आज तक होत हैं चर्चे उनकी समझदारी के।
***
एक दोहा
*
हम तो हिंदी के हामी हैं, फूल मिले या धूल
अंग्रेजी को 'सलिल' चुभेंगे, बनकर शूल बबूल
***
छंद बहर का मूल है: ८
*
छंद परिचय:
संरचना: SIS SIS SIS S / SIS SIS SISS
सूत्र: रररग।
दस वार्णिक पंक्ति जातीय बाला छंद।
सत्रह मात्रिक महासंस्कारी जातीय रामवत छंद।
बहर: फ़ाइलुं फ़ाइलुं फ़ाइलुं फ़े / फ़ाइलुं फ़ाइलुं फ़ाइलातुं ।
*
आप हैं जो, वही तो नहीं हैं
दीखते है वही जो नहीं हैं
*
खोजते हैं खुदी को जहाँ पे
जानते हैं वहाँ तो नहीं हैं
*
जो न बोला वही बोलते हैं
बोलते, बोलते जो नहीं हैं
*
माल को तौलते ही रहे जो
आत्म को तौलते वो नहीं
*
देश शेष क्या? पूछते हैं
देश में शेष क्या जो नहीं हैं
*
आद्म्मी देवता क्या बनेगा?
आदमी आदमी ही नहीं है
*
जोश में होश को खो न देना
देश में जोश हो, क्यों नहीं है?
***
SIS SIS SISS
आपका नूर है आसमानी
गायकी आपकी शादमानी
*
आपका ही रहा बोलबाला
लोच है, सोज़ है रातरानी
*
आसमां छू रहीं भावनाएँ
भ्रांत हों ही नहीं वासनाएँ
*
खूब हालात ने आजमाया
आज हालात को आजमाएँ
*
कोशिशों को मिली कामयाबी
कोशिशें ही सदा काम आएँ
*
आदमी के नहीं पास आएँ
हैं विषैले न वे काट खाएँ
२१.४.२०१७
***
नवगीत:
.
इन्द्रप्रस्थ में
विजय-पराजय
पर लगते फिर दाँव
.
कृष्णार्जुन
रणनीति बदल नित
करते हक्का-बक्का.
दुर्योधन-राधेय
मचलकर
लगा रहे हैं छक्का.
शकुनी की
घातक गुगली पर
उड़े तीन स्टंप.
अम्पायर धृतराष्ट्र
कहे 'नो बाल'
लगाकर जंप.
गांधारी ने
स्लिप पर लपका
अपनों का ही कैच.
कर्ण
सूर्य से आँख फेरकर
खोज रहा है छाँव
इन्द्रप्रस्थ में
विजय-पराजय
पर लगते फिर दाँव
.
द्रोणाचार्य
पितामह के सँग
कृष्ण कर रहे फिक्सिंग.
अर्जुन -एकलव्य
आरक्षण
माँग रहे कर मिक्सिंग.
कुंती
द्रुपदसुता लगवातीं
निज घर में ही आग.
राधा-रुक्मिणी
को मन भाये
खूब कालिया नाग.
हलधर को
आरक्षण देकर
कंस सराहे भाग.
गूँज रही है
यमुना तट पर
अब कौओं की काँव
इन्द्रप्रस्थ में
विजय-पराजय
पर लगते फिर दाँव
.
मठ, मस्जिद,
गिरिजा में होता
श्रृद्धा-शोषण खूब.
लंगड़ा चढ़े
हिमालय कैसे
रूप-रंग में डूब.
बोतल नयी
पुरानी मदिरा
गंगाजल का नाम.
करो आचमन
अम्पायर को
मिला गुप्त पैगाम.
घुली कूप में
भाँग रहे फिर
कैसे किसको होश.
शहर
छिप रहा आकर
खुद से हार-हार कर गाँव
इन्द्रप्रस्थ में
विजय-पराजय
पर लगते फिर दाँव
.
***
नवगीत:
.
बदलावों से क्यों भय खाते?
क्यों न
हाथ, दिल, नजर मिलाते??
.
पल-पल रही बदलती दुनिया
दादी हो जाती है मुनिया
सात दशक पहले का तेवर
हो न प्राण से प्यारा जेवर
जैसा भी है सैंया प्यारा
अधिक दुलारा क्यों हो देवर?
दे वर शारद! नित्य नया रच
भले अप्रिय हो लेकिन कह सच
तव चरणों पर पुष्प चढ़ाऊँ
बात सरलतम कर कह जाऊँ
अलगावों के राग न भाते
क्यों न
साथ मिल फाग सुनाते?
.
भाषा-गीत न जड़ हो सकता
दस्तरखान न फड़ हो सकता
नद-प्रवाह में नयी लहरिया
आती-जाती सास-बहुरिया
दिखें एक से चंदा-तारे
रहें बदलते सूरज-धरती
धरती कब गठरी में बाँधे
धूप-चाँदनी, धरकर काँधे?
ठहरा पवन कभी क्या बोलो?
तुम ठहरावों को क्यों तोलो?
भटकावों को क्यों दुलराते?
क्यों न
कलेवर नव दे जाते?
.
जितने मुँह हैं उतनी बातें
जितने दिन हैं, उतनी रातें
एक रंग में रँगी सृष्टि कब?
सिर्फ तिमिर ही लखे दृष्टि जब
तब जलते दीपक बुझ जाते
ढाई आखर मन भरमाते
भर माते कैसे दे झोली
दिल छूती जब रहे न बोली
सिर्फ दिमागों की बातें कब
जन को भाती हैं घातें कब?
अटकावों को क्यों अपनाते?
क्यों न
पथिक नव पथ अपनाते?
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२१.४.२०१५
छंद सलिला:
हेमंत छंद
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छंद-लक्षण: जाति महादैशिक , प्रति चरण मात्रा २० मात्रा, चरणांत गुरु लघु गुरु (रगण), यति बंधन नहीं।
लक्षण छंद:
बीस-बीस दिनों सूर्य दिख नहीं रहा
बदन कँपे गुरु लघु गुरु दिख नहीं रहा
यति भाये गति मन को लग रही सजा
ओढ़ ली रजाई तो आ गया मजा
उदाहरण:
१. रंग से रँग रही झूमकर होलिका
छिप रही गुटककर भांग की गोलिका
आयी ऐसी हँसी रुकती ही नहीं
कौन कैसे कहे क्या गलत, क्या सही?
२. देख ऋतुराज को आम बौरा गया
रूठ गौरा गयीं काल बौरा गया
काम निष्काम का काम कैसे करे?
प्रीत को यादकर भीत दौरा गया
३.नाद अनहद हुआ, घोर रव था भरा
ध्वनि तरंगों से बना कण था खरा
कण से कण मिल नये कण बन छा गये
भार-द्रव्यमान पा नव कथा गा गये
सृष्टि रचना हुई, काल-दिशाएँ बनीं
एक डमरू बजा, एक बाँसुरी बजी
नभ-धरा मध्य थी वायु सनसनाती
सूर्य-चंदा सजे, चाँदनी लुभाती
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(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, ककुभ, कज्जल, कामिनीमोहन कीर्ति, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, छवि, जाया, तांडव, तोमर, दीप, दोधक, नित, निधि, प्रतिभा, प्रदोष, प्रेमा, बाला, भव, मदनअवतार, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, योग, ऋद्धि, राजीव, रामा, लीला, वाणी, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, सरस, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, हेमंत, हंसगति, हंसी)

दोहे का रंग - अंगिका के संग:

(अंगिका बिहार के अंग जनपद की भाषा, हिन्दी का एक लोक भाषिक रूप)

काल बुलैले केकरs, होतै कौन हलाल?

मौन अराधे दैव कै, ऐतै प्रातः काल..

मौज मनैतै रात-दिन, होलै की कंगाल.

साथ न आवै छाँह भी, आगे कौन हवाल?.

एक-एक के खींचतै, बाल-पकड़ लै खाल.

नीन नै आवै रात भर, पलकें करैं सवाल..

मुक्तक

दर्पण में जिसको देखा वह बिम्ब मात्र था।

और उजाले में केवल साया पाया।।

जब-जब बाहर देखा तो पाया मैं हूँ।

जब-कब भीतर झाँका तो उसको पाया।।

२१-४-२०१०

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