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सोमवार, 4 अक्तूबर 2021

मुक्तिका साथ पुराना

मुक्तिका
साथ पुराना
*
जब भी मिलता साथ पुराना अच्छा लगता है।
पल-पल तुमको मौन बुलाना अच्छा लगता है।।

दिख जाते हो मूँद नयन लेते हैं जब भी हम।
आँख मिलाकर आँख चुराना अच्छा लगता है।।

दिलवर दिल वर दूर गए पर दिल ने किया न दूर।
सुधियों को फिर-फिर दोहराना अच्छा लगता है।।

ओ मेरी तुम!, हो मेरी तुम जन्मों की संगी।
स्नेह सलिल सा साथ सुहाना अच्छा लगता है।।

रीझ-रीझ कर थके न मैं-तुम एक दूसरे पर
जान रहे पर नित्य जताना अच्छा लगता है।।

बिना बात ही रूठ मानिनी जब बैठे मुँह फेर
घेर-घेर कर उसे मनाना अच्छा लगता है।।

धना-धनी का नाता ताना-बाना रहे अटूट।
जाना-आना बना बहाना अच्छा लगता है।।
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९४२५१८३२४४
२९-९-२०२१

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