सवैया मुक्तक
एक अकेला
संजीव
*
एक अकेला दिनकर तम हर, जगा कह रहा हार न मानो।
एक अकेला बरगद दृढ़ रह, कहे पखेरू आश्रय जानो।
एक अकेला कंकर, शंकर बन सारे जग में पुजता है-
एक अकेला गाँधी आँधी, गोरी सत्ता तृणमूल अनुमानो।
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एक अकेला वानर सोने की लंका में आग लगाता।
एक अकेला कृष्ण महाभारत रचकर अन्याय मिटाता।
एक अकेला ध्रुव अविचल रह भ्रमित पथिक को दिशा ज्ञान दे-
एक अकेला यदि सुभाष, सारे जग से लोहा मनवाता।
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एक अकेला जुगनू; दीपक जले न पग ठोकर खाता है
एक अकेला लालबहादुर जिससे दुश्मन थर्राता है
एक अकेला मूषक फंदा काट मुक्त करता नाहर को-
एक अकेला जगता जब तब शीश सभी का झुक जाता है।
२-१२-२०२०
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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सोमवार, 4 अक्तूबर 2021
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