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सोमवार, 24 अगस्त 2020

मुहावरा कौआ स्नान

 मुहावरा कौआ स्नान

कौआ पहुँचा नदी किनारे, शीतल जल से काँप-डरा रे
कौवी ने ला कहाँ फँसाया, राम बचाओ फँसा बुरा रे

पानी में जाकर फिर सोचे, व्यर्थ नहाकर ही क्या होगा
रहना काले का काला है, मेकप से मुँह गोरा होगा

पूछा पत्नी से 'न नहाऊँ, क्यों कहती हो बहुत जरूरी
पत्नी बोली आँख दिखाकर 'नहीं चलेगी अब मगरूरी'

नहा रहे या बेलन, चिमटा, झाड़ू लाऊँ सबक सिखाने
कौआ कहे 'न रूठो रानी! मैं बेबस हो चला नहाने'

निकट नदी के जाकर देखा पानी लगा जान का दुश्मन
शीतल जल है, करूँ किस तरह बम भोले! मैं कहो आचमन

घूर रही कौवी को देखा पैर भिगाये साहस करके
जान न ले ले जान!, मुझे जीना ही होगा अब मर-मर के

जा पानी के निकट फड़फड़ा पंख दूर पल भर में भागा
'नहा लिया मैं, नहा लिया' चिल्लाया बहुत जोर से कागा

पानी में परछाईं दिखाकर बोला 'डुबकी देखो आज लगाई
अब तो मेरा पीछा छोडो, ओ मेरे बच्चों की माई!'

रोनी सूरत देख दयाकर कौवी बोली 'धूप ताप लो
कहो नर्मदा मैया की जय, नाहक मुझको नहीं शाप दो'

गाय नर्मदा हिंदी भारत भू पाँचों माताओं की जय
भागवान! अब दया करो चैया दो तो हो पाऊँ निर्भय

उसे चिढ़ाने कौवी बोली' आओ! संग नहा लो-तैर'
कर ''कौआ स्नान'' उड़ा फुर, अब न निभाओ मुझसे बैर

बच्चों! नित्य नहाओ लेकिन मत करना कौआ स्नान
रहो स्वच्छ, मिल खेलो-कूदो, पढ़ो-बढ़ो बनकर मतिमान

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