मुक्तक रेल  के 
प्रभु तो प्रभु है, ऊपर हो या नीचे हो। 
नहीं रेल के प्रभु सा आँखें मीचे हो।। 
निचली श्रेणी की करता कुछ फ़िक्र न हो-
ऊँची श्रेणी के  हित लिए गलीचे हो।।
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ट्रेन पटरी से उतरती जा रही। 
यात्रियों को अंत तक पहुँचा रही।।
टिकिट थोड़ी यात्रा का था लिया-
पार भव  से मुफ्त में करवा रही।।
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आभार करिए रेलवे का रात-दिन। 
काम चलता ही नहीं है ट्रेन बिन।।
करें पल-पल याद प्रभु को आप फिर-
समय काटें यार चलती श्वास गिन।।
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जो चाहे भगवान् वही तो होता है। 
दोष रेल मंत्री को क्यों जग देता है।।
चित्रगुप्त प्रभु दुर्घटना में मार रहे- 
नाव आप तू कर्म नदी में खेता है।।
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आय घटे, वेतन रुके तो हो हाहाकार। 
बढ़े टिकिट दर तो हुई जनता ही बेज़ार।।
रिश्वत लेना छोड़ता कभी नहीं स्टाफ-
दोष न मंत्री का तनिक, सत्य करें स्वीकार।।
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salil.sanjiv@gmail.com
२५-८-२०१७
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