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गुरुवार, 20 अगस्त 2020

दोहा, मुक्तक

दोहा 
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प्रीतम सबका एक जो, सबसे करता प्रीत.
ध्यान उसी का करें हम, गायें उसी के गीत.
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पंकज के शत दलों का, देव साथ दें साथ.
ज्ञान-परिश्रम-प्रेम के, तीन वेद हों हाथ..
*
मुक्तक
जो हुआ अच्छा हुआ होता रहे
मित्रता की फसल दिल बोता रहे
लाद कर गंभीरता नाहक जिए
मुस्कराहट में थकन खोता रहे
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कभी तो कोई हमें भी 'मिस' करे
स्वप्न में अपने हमें कोई धरे
यह न हो इस्लाह माँगे और फिर
कर नमस्ते दूर से ही वह फिरे
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वर्षग्रन्थि पर देह यह, नत मस्तक है नाथ!
आत्म तुम्हारा अंश है, कभी न छोड़ो साथ
जनक-जननी तव गृह गये, करूँ स्मरण नित्य
हो संजीव तुम्हें मिलूँ, अक्षर देव अनित्य
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