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गुरुवार, 13 अगस्त 2020

शोध लेख - हिंदी लघुकथा के शीर्षक - डाॅ. चंद्रेश कुमार छतलानी

शोध लेख -

हिंदी लघुकथा के शीर्षक पर विभिन्न अवयवों के प्रभाव का अध्ययन एवं विश्लेषण
- डाॅ. चंद्रेश कुमार छतलानी, भारत
 chandresh.chhatlani@gmail.com
शीर्षक लघुकथा का एक आवश्यक तत्व है, बावजूद इसके कभी-कभी न केवल लघुकथा रचना में बल्कि कई समीक्षाओं में भी लघुकथा के शीर्षक पर अपेक्षाकृत कम ध्यान दिया जा रहा है। कुछ लघुकथाकारों को अपनी रचना प्रक्रिया में शीर्षक पर ध्यान देना आवश्यक है। इसके अतिरिक्त जब समय के साथ-साथ लघुकथा के शिल्प आदि में नए प्रयोग हो रहे हैं, तब लघुकथा के शीर्षकों पर समसामयिक वातावरण और समकालीन पाठकों की मानसिकता का प्रभाव होना ही चाहिए। प्रस्तुत शोध-पत्रा में साक्षात्कार विधि द्वारा ६५ प्रतिभागियों, जो लघुकथा लिख रहे हैं, से शीर्षक पर विचार प्राप्त किये गए और उनका विश्लेषण किया गया है। इस अध्ययन द्वारा यह ज्ञात हुआ है कि लघुकथाकार शीर्षक का चयन कैसे कर रहे हैं और इसमें किन गुणों को सम्मिलित कर रहे हैं तथा किन अन्य बिंदुओं पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
बीज शब्द: लघुकथा, शीर्षक, साक्षात्कार विधि, लघुकथा के तत्व, शीर्षक चयन के गुण, हिंदी
लघुकथा विधा में भी अन्य कई विधाओं की तरह शीर्षक का एक विशेष महत्त्व होता है। जिस तरह एक बच्चे के नामकरण के समय कई बातों को ध्यान में रखा जाता है, उसी तरह किसी लघुकथा का शीर्षक रखते समय संपूर्ण लघुकथा को एक प्रतिबिम्ब की तरह सामने रखा जाता है और उसी प्रतिबिम्ब के आधार पर शीर्षक का चुनाव किया जाता है। शीर्षक ऐसा हो जो लघुकथा की आत्मा को दर्शा दे।
एक उदाहरण देना चाहूँगा, एक पल को सोचिये कि आपको १०० किलोमीटर से अधिक की यात्रा अपनी कार खुद ही चला कर करनी है। आप कार में डीज़ल, टायर आदि देखने के साथ-साथ उसका कांच भी साफ़ करते हैं, ताकि गाड़ी चलाते समय रास्ता साफ़-साफ़ दिखाई दे। रास्ते में सड़क भी आती है, गड्ढे भी आते हैं, टोल-टेक्स भी आते हैं और कई सारे वाहन भी आते हैं, लेकिन यदि कांच साफ़ है, तो आपको सब साफ़-साफ़ दिखाई देता है। इसी प्रकार लघुकथा में भी कई वाक्य आते हैं, क्लिष्ट और सरल शब्द आते हैं, प्रतीक आते हैं, मुहावरे-लोकोक्तियाँ आदि भी आते हैं, लेकिन यदि शिल्प, कथानक और पात्रों से सुसज्जित लघुकथा का शीर्षक सार्थक और स्पष्ट है, तो आपको हर पंक्ति साफ़-साफ़ दिखाई देगी। शीर्षक सुंदर, तीक्ष्ण और रोचक हो तो बहुत ही अच्छा, परन्तु सार्थक तो होना ही चाहिए, अर्थात् लघुकथा के मर्म को समझाता हुआ होना चाहिये। इस बात से किसी प्रकार की अस्वीकृति नहीं होनी चाहिए कि यदि शीर्षक रोचक हो, तो पाठक का ध्यान स्वतः ही आकर्षित होगा।
एक पाठक और लघुकथा के मध्य शीर्षक ही सबसे पहला माध्यम है, जो पाठक को लघुकथा पढ़ने हेतु प्रेरित करता है।२ संतुलित और सार्थक शीर्षक लघुकथा को नई ऊँचाई पर ले जा सकता है और एक निरर्थक शीर्षक वाली बहुत अच्छी रचना को भी अस्वीकृत किया जा सकता है।
अध्ययन की आवश्यकता
शीर्षक लघुकथा की नींव तो नहीं लेकिन एक आवश्यक तत्व है, जिसपर कुछ लघुकथाकार ध्यान नहीं देते। इसे अनछुआ पहलू तो नहीं कह सकते, क्योंकि बहुत सारे लघुकथाकार अब अपने रचनाकर्म के समय शीर्षक को बेहतरीन बनाने में उपयुक्त चिंतन कर रहे हैं, लेकिन बावजूद उसके उनके चिंतन की दिशा किस ओर है और किस ओर होनी चाहिए, इसका एक अध्ययन आवश्यक है, ताकि न सिर्फ़ इसका कि शीर्षक के प्रति आज के समय लघुकथाकार क्या सोच रखते हैं, बल्कि लघुकथाकार शीर्षक में भी किस प्रकार की शैली का प्रयोग कर रहे हैं यह भी ज्ञात होगा। यह समसामयिक साहित्य के विश्लेषण में भी सहायक होगा और भविष्य के साहित्य के सृजन में भी। लघुकथा का उद्देश्य सामाजिक दुर्बलताओं पर प्रहार करना है, प्रखर साहित्यकार विष्णु प्रभाकर ने भी यह बताया था कि लघुकथा ने अपनी विकासक्रम की यात्रा में कई मंज़िलें पार की है।  यह दृष्टांत फिर रूपक से बढ़ती हुई लोककथा, बोधकथा और नीतिकथा के रूप में ढलकर व्यंग्य, चुटकुले और संस्मरण के स्वरूप के पश्चात् अब अपने वर्तमान रूप में स्थापित हुई है। तब लघुकथा के शीर्षक भी ऐसे नहीं होने चाहिए कि उनसे सामयिक लघुकथा दृष्टांत, रूपक, लोककथा, बोधकथा, नीतिकथा, व्यंग्य आदि अपने पुरातन स्वरूप जैसे प्रतीत हों, बल्कि शीर्षक में ही ऐसी ताज़गी होनी चाहिए, जो सार्थक होते हुए पाठक वर्ग को न केवल आकर्षित करे, बल्कि लघुकथा को गंभीरता से पठन हेतु प्रेरित भी करे। शीर्षक किसी लघुकथा के मूल्यांकन में भी सहायक हो सकता है अथवा नहीं, यह भी शोध का विषय है। इन सभी बातों को दृष्टिगत करते हुए, यह ज्ञात होता है कि इस तरह का एक अध्ययन आवश्यक है।
संबंधित साहित्य का अध्ययन
राजस्थान साहित्य अकादमी की पत्रिका मधुमती के एक अंक में वरिष्ठ लघुकथाकार डाॅ. अशोक भाटिया अपने आलेख ‘लघुकथा: लघुता में प्रभुता‘ में कहते हैं कि लघुकथा आकार में छोटी होती है, अतः इसका शीर्षक उपन्यास व कहानी के शीर्षक से अपेक्षाकृत अधिक महत्त्व रखता है।२७, आपके कहने का अर्थ कुछ यों है कि चूँकि लघुकथा में हमारे पास कहने को सीमित शब्द हैं, तब लघुता को बरक़रार रखने के लिए शीर्षक का उचित प्रयोग बहुत आवश्यक है।
लघुकथा के सशक्त हस्ताक्षर योगराज प्रभाकर अपने आलेख ’लघुकथा विधा: तेवर और कलेवर‘ में कहते हैं कि दुर्भाग्य से लघुकथा में शीर्षक सबसे उपेक्षित पक्ष है, लगभग ९० प्रतिशत शीर्षक साधारण हैं। महत्त्वपूर्ण और अभिन्न अंग होने के बावजूद भी लघुकथाकार इस ओर कम ध्यान दे रहे हैं, जबकि शीर्षक में
यह भी सामर्थ्य है कि एक लघुकथा की सार्थकता को ऊँचाइयाँ प्रदान कर दे। वे सुझाते हैं कि शीर्षक ऐसा होना चाहिए जो या तो लघुकथा के उद्देश्य या संदेश का प्रतिनिधित्व करे अथवा पूरी की पूरी लघुकथा अपने शीर्षक को सार्थक करे।१  यह बात न सिर्फ़ लघुकथाकारों की शीर्षक के प्रति उपेक्षा को दर्शा रही, वरन् इस आलेख के द्वारा योगराज प्रभाकर ने अन्य लघुकथाकारों को प्रेरित भी किया है कि शीर्षक पर गहन विचार करें। एक चर्चा के समय आपने और रवि प्रभाकर ने इस बात पर बल दिया था कि शीर्षक पर उतना ही समय देना चाहिए जितना कि लघुकथा लेखन में लगा है।

एक सटीक मत लघुकथाकार एवं उत्कृष्ट समीक्षक रवि प्रभाकर का है। उनके अनुसार शीर्षक में लघुकथा की पंचलाइन में मौजूद शब्द नहीं रखे जाने चाहिए। इसका एक कारण मैं यह समझता हूँ कि यदि पंचलाइन के शब्द ही शीर्षक में मौजूद होंगे, तो शीर्षक सार्थक तो हो सकता है, लेकिन पंचलाइन का प्रभाव समाप्त हो जायेगा, इसलिए शीर्षक को बहुत सतर्कता के साथ चुनना चाहिए।
प्रसिद्ध साहित्यकार संजीव वर्मा ‘सलिल‘ युग मानस ऑनलाइन ब्लाॅग में अपने आलेख ’लघुकथा: एक परिचय‘ में बताते हैं कि लघुकथा सृजन में शीर्षक एक महत्त्वपूर्ण  भूमिका का निर्वहन करते हुए पाठक के मन में लघुकथा पठन के प्रति कौतूहल उत्पन्न करता है।२०  अर्थात् सलिल के अनुसार शीर्षक कुछ ऐसा होना चाहिए, जिसका मुख्य गुण पाठक को आकर्षित करना है।
दो वरिष्ठ लघुकथाकारों, जितेन्द्र जीतू द्वारा डाॅ. बलराम अग्रवाल के साक्षात्कार ’समझ लघुकथा की‘ तथा आपस में वार्तालाप में डाॅ. अग्रवाल कहते हैं कि क्योंकि छोटे आकार की कथा-रचना होने के कारण लघुकथा का शीर्षक भी इसकी संवेदना का वाहक होता है। ७ यहाँ डाॅ. बलराम अग्रवाल, डाॅ. अशोक भाटिया के आलेख ‘लघुकथा: लघुता में प्रभुता‘ में कही गयी बात का ही समर्थन कर रहे हैं और साथ ही शीर्षक और लघुकथा का सह-सम्बन्ध भी स्पष्ट कर रहे हैं।
राजेंद्र मोहन त्रिवेदी ‘बंधु‘ की लघुकथा ‘भीतर का सच‘ पर ख्यातनाम लघुकथाकार डाॅ. सतीशराज पुष्करणा का कहना है कि यह एक सटीक शीर्षक की लघुकथा है और यह शीर्षक लघुकथा के अन्य तत्वों के साथ पाठकों के अंतर्मन तक जाकर झकझोरने की क्षमता रखता है।२९
वरिष्ठ साहित्यकार डाॅ. अशोक भाटिया अपनी पुस्तक 'परिंदे पूछते हैं‘ में सुझाव देते हैं कि ‘‘लघुकथा के शीर्षक पर हमें खुले मन से विचार करना चाहिए। शीर्षक रोचक, पाठक में लघुकथा के प्रति जिज्ञासा उत्पन्न कर सके, व्यंग्यात्मक और प्रतीकात्मक भी हो सकता है। शीर्षक स्वयं में इतना सक्षम है कि संपूर्ण लघुकथा को एक नया आयाम प्रदान कर दे।’’ २४ - २५ , डाॅ. भाटिया ने यहाँ शीर्षक के गुणों पर चर्चा की है। इनके अतिरिक्त भी कुछ पुस्तकें, पत्रा, पत्रिकाएँ, लेख, ब्लाॅग्स आदि से प्राप्त संबंधित साहित्य के अध्ययन से यह ज्ञात हुआ है कि शीर्षक के बारे में आम मत यह है कि शीर्षक लघुकथा की विषय-वस्तु से सीधे आनुपातिक होता है। यह लघुकथा का आवश्यक तत्व है और विभिन्न गुणयुक्त है। लघुकथाकार चाहे तो एक या अधिक गुणों के अनुसार शीर्षक का चुनाव कर सकते हैं।
उपरोक्त के अध्ययन के पश्चात् लघुकथा के अन्य तत्वों की अपेक्षा शीर्षक पर कम ध्यान देने के कारण, शीर्षक के चुनाव में समसामयिक लघुकथाकारों के विचार आदि पर शोध में एक अनुसंधान अंतराल ज्ञात होता है, जो कि प्रस्तुत शोध कार्य की उपयोगिता को सिद्ध करता है।
शीर्षक पर लघुकथाकारों के विचार
इस शोध के अंतर्गत प्राप्त हुई रचनाओं में से खेमकरण सोमान की ‘चौरानवे मिस्ड काॅल‘, डाॅ. कुमारसम्भव जोशी की ‘वह बड़ा हो चुका है‘, योगराज प्रभाकर की ‘भारत भाग्य विधाता‘, अविचल भटनागर की ‘अष्टभुजाधारिणी‘,  सतीश राठी  की ‘आटा और जिस्म‘, सरस दरबारी की ‘ब्रह्मराक्षस‘, उषा भदौरिया की ‘सिक्स्टी प्लस‘, कान्ता राॅय की ‘विलुप्तता‘, पवन जैन की ‘फाउंटेनपेन‘ सहित और भी कई रचनाओं के शीर्षक इस तरह से गढ़े गए हैं कि शीर्षक पर नज़र जाते ही रचना को पढ़ने की उत्सुकता बढ़ जाती है। हालांकि इस शोध में शीर्षक में केवल रोचकता ही नहीं, बल्कि अन्य गुणों यथा स्पष्ट, संतुलित, व्यंग्यधर्मी आदि को भी सम्मिलित किया गया है।
इस शोध में शीर्षक पर विचार के अंतर्गत कुछ ऐसे विचार प्राप्त हुए जिन्हें उद्धृत करना मैं आवश्यक समझता हूँ। वरिष्ठ लघुकथाकार योगराज प्रभाकर के अनुसार, ‘‘शीर्षक किसी भी लघुकथा का प्रवेश द्वार होता है।’’ यह वाक्य केवल लघुकथाओं पर ही नहीं बल्कि प्रत्येक साहित्यिक कृति जिसमें शीर्षक की अनिवार्यता होती है, पर लागू होता है। पाठक सबसे पहले शीर्षक ही को पढ़ता है। प्रभाकर जी ने मतदान के समय मतदाताओं के  नकारात्मक और  अतार्किक व्यवहार  पर तंज़  करने हेतु ‘‘भारत-भाग्य-विधाता’’ नामक लघुकथा का सर्जन किया। हमारे राष्ट्रगीत की एक पंक्ति के शब्दों को लेकर भारत वर्ष के भाग्य बनाने का ले-देकर जो एक वोट देने का अधिकार हमारे पास है, उसका देश की बजाय केवल जाति, धर्म, समूह आदि के अनुसार प्रयोग में लेना कितना उचित है, यह इस लघुकथा में दर्शाया गया है। अविचल भटनागर ने पौराणिक वार्ताओं को लेकर एक लघुकथा कही है, जिसका शीर्षक आपने ‘‘अष्टभुजाधारिणी’’ रखा। लघुकथा का मूल भाव इसमें समाहित है। दिव्या राकेश शर्मा की लघुकथा ‘‘खनक’’ शहीदों की पत्नियों की टूटी हुई चूड़ियों के सम्मान में है कि वे चूड़ियाँ इसलिए टूटीं, ताकि दूसरी चूड़ियों की खनक बरकरार रह सके। लघुकथा का गूढ़ भाव इस शीर्षक में समाहित है। सविता इन्द्र गुप्त अपनी लघुकथा ‘‘बड़ा खतरा’’ के लिए कहती हैं कि ‘‘लघुकथा के कथ्य को सारगर्भित अर्थ देता हुआ, इसके अनकहे को सुस्पष्ट करता है। लघुकथा के समापन का अनकहा तब पाठक के आनंद को बहुगुणित कर देता है, जब वह अंत में शीर्षक पर एक नज़र डालता है।’’ यह एक विशिष्ट विचार है कि जब लघुकथा का अंत होता है तब पाठक को शीर्षक की सार्थकता समझ में आती है। इसका अर्थ यह नहीं कि शीर्षक लघुकथा का प्रवेश द्वार नहीं रहा, वह तो उसका मूलभूत गुण है ही, साथ ही शीर्षक अंत में लघुकथा को एक ऊँचाई भी प्रदान कर रहा है। लकी राजीव की लघुकथा ‘मर्द‘ शीर्षक के साथ ही पूर्ण हो रही है। विरेंदर ‘वीर‘ मेहता की लघुकथा ‘एक और एक ग्यारह‘ शारीरिक विषमता झेल रहे दो व्यक्तियों के विवाह-बंधन पर आधारित है। शेख़ शहज़ाद उस्मानी उनके द्वारा सृजित लघुकथा ‘देसी औरत‘ के शीर्षक को भारतीय नारी का प्रतिनिधित्व करता हुआ प्रतीकात्मक मानते हैं, वहीं कनक हरलालका ने लघुकथा ‘भीड़‘ के शीर्षक को भीड़ के संवेदनहीन मनोविज्ञान का प्रतिनिधित्व करते हुए रखा है। ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश‘ ने अपने जीवन की एक समस्या से सामना करते हुए उसे हल किया था, बाद में एक समस्यापरक लघुकथा के सृजन के समय उन्हें वह समस्या याद आई और उन्होंने इस लघुकथा का शीर्षक भी ‘समस्या‘ रखा। प्रतिभा श्रीवास्तव अंश का कहना है कि ‘‘शीर्षक ऐसा होना चाहिए कि कथा का आभास हो’’। उषा भदौरिया की लघुकथा में एक व्हाट्सएप्प समूह बनाया गया, जिसका नाम ‘सिक्स्टी प्लस‘ रखा जाता है। उन्हें ‘सिक्स्टी प्लस‘ से अधिक उपयुक्त कोई अन्य शीर्षक नहीं प्रतीत हुआ। हालाँकि यह शीर्षक न केवल एक व्हाट्सएप्प समूह का वरन वरिष्ठ नागरिकों के एक समुदाय का भी उचित प्रतिनिधित्व कर रहा है। सविता मिश्र ‘अक्षजा‘ अपनी लघुकथा ‘सर्वधाम‘ के शीर्षक पर कहती हैं कि ‘‘माता-पिता की ख़ुशी और उनका सान्निध्य पाने से अधिक कौन-सा और धर्म बड़ा हो सकता है, इसलिए इसका शीर्षक हमने ‘सर्वधाम‘ रखा।’’ ‘अनोखा अपराधी‘ नामक लघुकथा के बारे में अविचल भटनागर कहते हैं कि ‘‘यह शीर्षक मुख्य पात्रा के प्रति जिज्ञासा पैदा करता है और कहानी को रोचकता देता है।’’
कभी ऐसा भी होता है कि शीर्षक मानकों की वैज्ञानिकता से परे होकर लघुकथाकार के मन और आत्मा से जुड़ा होता है। मृणाल आशुतोष ने ‘बछड़‘ शीर्षक से एक लघुकथा कही है, जिसके लिए वे कहते हैं कि ‘‘लघुकथा लिखते समय यही शीर्षक सूझा, किसी और विकल्प पर विचार ही नहीं किया।’’ इसी प्रकार मालती बसंत ने भी  अपनी लघुकथा ‘अदला-बदली‘ के लिए यही कहा है कि ‘‘यह लघुकथा लिखते समय शीर्षक स्वाभाविक रूप से दिमाग में आया।’’ पूजा अग्निहोत्री भी अपनी लघुकथा ‘वंदे मातरम‘ के प्रति यही विचार रखती हैं कि ‘‘मेरे द्वारा चयनित शीर्षक मुझे सटीक और हृदयस्पर्शी लगा।’’
अध्ययन के उद्देश्य
प्रमुख उद्देश्य
* लघुकथाओं के शीर्षक चयन के मूलभूत गुणों का अध्ययन करना।
सह-उद्देश्य
* यह जानना कि लघुकथाकारों द्वारा शीर्षक को महत्त्व दिया जा रहा है अथवा नहीं।
लघुकथाकार शीर्षक चयन करने में किन बिन्दुओं का ध्यान रखते हैं, इसका विश्लेषण  करना।
* लघुकथा के उचित शीर्षक चयन हेतु मुख्य बिन्दुओं का सुझाव प्राप्त करना।
परिकल्पनाएँ
लघुकथाओं और उनके शीर्षकों का तथा इससे संबंधित लेखों का अध्ययन करते समय यह ज्ञात होता है कि अधिकतर लघुकथाकार शीर्षक पर गंभीरता से विचार करते हैं। हालांकि, कई लघुकथाओं के शीर्षक चलताऊ  भी प्राप्त हुए हैं। इसके अतिरिक्त कई बार पत्र-पत्रिकाओं के संपादक शीर्षक को बदल देते हैं, जिससे कभी शीर्षक अच्छा, तो कभी अनुचित भी हो जाता है। लघुकथाकार शीर्षक को कितना महत्त्व देते हैं और वे लघुकथा के किन तत्वों और शीर्षक के किन गुणों पर सोच-विचार करते हैं, इसके परीक्षण हेतु निम्न परिकल्पनाओं का गठन किया गया:
१.  लघुकथा के विभिन्न तत्व लघुकथा के शीर्षक को सीधे प्रभावित करते हैं।
* लघुकथाकार शीर्षक को लघुकथा के मर्म से जोड़ रहे हैं।
* लघुकथाकार शीर्षक चयन में विषय-वस्तु को महत्त्व दे रहे हैं।
* शीर्षक को प्रतीकात्मक बनाने में लघुकथाकार कम समय दे रहे हैं।
* लघुकथाकार शीर्षक चयन में व्यापक क्षेत्रा को महत्त्व दे रहे हैं।
* लघुकथाकार शीर्षक चयन में लघुकथा को ऊँचाई प्रदान करने को महत्त्व दे रहे हैं।
* लघुकथाकार शीर्षक के लघुकथा के कथ्य के अनुसार चयन कर रहे हैं।
* लघुकथाकार शीर्षक के लघुकथा में निहित संदेश के अनुसार चयन कर रहे हैं।
२. लघुकथाकार शीर्षक चयन में दो से अधिक गु ाों पर विचार कर रहे हैं।
आंकड़ों का संग्रहण
प्राथमिक आंकड़े
प्राथमिक आंकड़ों का संग्रहण एक प्रश्नोत्तरी बनाकर किया गया। शोध में प्रयुक्त इस उपकरण में कुल १३ प्रश्न सम्मिलित किए गए, जिनमें दो लघुकथाओं की भाषा, शीर्षक चयन करने का कारण और शीर्षक हेतु सोचे गए गुणों पर लघुकथाकारों के उत्तर माँगे गए।
इस शोध-पत्र में प्रतिदर्श हेतु ६५ प्रतिभागियों से ऑन लाइन गूगल फ़ाॅर्म के ज़रिये विचार प्राप्त किए गए। इस हेतु सिम्पल रेंडम सेंपल तकनीक का प्रयोग किया गया।
द्वितीयक आंकड़े
द्वितीयक आंकड़े विभिन्न पुस्तकों, लेखों, ब्लाॅग्स, सोशल मीडिया आदि से प्राप्त किए गए।
आंकड़ों का विश्लेषण
सर्वप्रथम प्रत्येक प्रतिभागी की दोनों लघुकथाओं के शीर्षक चयन करने के कारणों को अलग-अलग आरेख बनाकर निम्नानुसार विश्लेषित किया गया:
लघुकथा १: यह शीर्षक चयन करने का कारण
दो लघुकथाओं में से पहली लघुकथा के लिए पूछे गए प्रश्न कि यह शीर्षक चयन करने का कारण क्या है, के उत्तरों में से यह ज्ञात हुआ कि सबसे अधिक रचनाओं के लिए ४९.२% लघुकथाकारों ने शीर्षक को लघुकथा में निहित संदेश का प्रतिबिंब बताया, उसके बाद ४७.७% रचनाओं के लिए लघुकथाकारों ने लघुकथा के कथ्य का प्रतिबिंब बनाने हेतु शीर्षक का चयन किया। ४६.२% रचनाओं के लिए लघुकथाकारों ने शीर्षक को लघुकथा के अनुसार सार्थक कहा और इतने ही लघुकथाकारों ने उसे लघुकथा के मर्म को समझाता हुआ बताया। वहीं ४२.५% रचनाओं के लिए लघुकथाकारों ने लघुकथा की विषयवस्तु का आभास कराते हुए माना।







लघुकथा 2 रू यह शीर्षक चयन करने का कारण
तत्पश्चात् दोनों लघुकथाओं के शीर्षक चयन करने के कारणों का योग किया, जिसके फलस्वरूप १३० लघुकथाओं के निम्न आंकड़े प्राप्त हुए:







क्रम शीर्षक चयन करने का कारण                                 संख्या प्रतिशत
१       लघुकथा के अनुसार सार्थक                                         ६५           ४९.२३
२       लघुकथा के मर्म को समझाता हुआ                              ६३           ४८.४६
३       लघुकथा की विषय-वस्तु का आभास कराता हुआ         ५३           ४०.७७
४       शीर्षक का क्षेत्र व्यापक होने के कारण                          १९           १४.६२
५       लघुकथा को ऊँचाई प्रदान कर रहा                               २९           २२.३१
६       लघुकथा के कथ्य का प्रतिबिम्ब                                  ५९           ४५.३८
७       लघुकथा में निहित संदेश का प्रतिनिधि                       ५९           ४५.३८
८       मुख्य पात्र के चरित्र का प्रतिनिधित्व करता हुआ           ३२          २४.६२
९       अन्य                                                                           ५             ३.८५
          योग                                                                         ३८३ 


उपरोक्त सारणी से स्पष्ट है कि लघुकथाकार शीर्षक को लघुकथा के मर्म से जोड़ रहे हैं, लघुकथाकार शीर्षक चयन में विषय-वस्तु को महत्त्व दे रहे हैं, लघुकथाकार शीर्षक को व्यापक क्षेत्र में रखने को महत्त्व नहीं दे रहे हैं, लघुकथाकार शीर्षक चयन में लघुकथा को  ँचाई प्रदान करने को बहुत अधिक महत्त्व नहीं

दे रहे हैं, अधिकतर लघुकथाकार शीर्षक को लघुकथा के कथ्य के अनुसार चयन कर रहे हैं, लघुकथाकार शीर्षक का, लघुकथा में निहित संदेश के अनुसार भी, चयन कर रहे हैं, हालाँकि पात्रों के चरित्र के अनुसार शीर्षक का चयन नहीं कर रहे। इस सारणी का रेखाचित्र निम्न है:









इसी प्रकार प्रत्येक लघुकथाकार की दोनों लघुकथाओं हेतु शीर्षक चयन करते समय सोचे गए शीर्षक के गुण निम्न प्रकार से प्राप्त हुए:
लघुकथा १ : शीर्षक चयन करते समय सोचे गए गुण :



लघुकथा २ : शीर्षक चयन करते समय सोचे गए गुण







कुल मिलाकर १३० में से ५७ (४३.८५ %) लघुकथाओं में १ही गुण सोचा गया और बाकी ७३ ; ५६.१६% में एक से अधिक गुण सोचे गए। हालाँकि कोई बहुत अधिक अंतर नहीं है, लेकिन यह कहा जा सकता है कि अधिकतर रचनाओं में शीर्षक बनाते समय एक से अधिक गुण सोचे गए हैं। रेखाचित्र से स्पष्ट है कि इस समय लघुकथाकार शीर्षक के गुणों में सर्वाधिक महत्त्व प्रतीकात्मकता को दे रहे हैं और सबसे कम महत्त्व नाटकीयता को।
उपरोक्त अध्ययन एवं विश्लेषण से ज्ञात हुआ है कि लघुकथाकार शीर्षक को लघुकथा के अनुसार सार्थक, लघुकथा के मर्म को समझाता हुआ, लघुकथा की विषय-वस्तु का आभास कराता हुआ, लघुकथा के कथ्य का प्रतिबिम्ब, निहित संदेश का प्रतिनिधि तो बनाना चाहते हैं, लेकिन शीर्षक के व्यापक क्षेत्रा, लघुकथा को ऊँचाई  प्रदान करने और मुख्य पात्र के चरित्र का प्रतिनिधित्व करने पर कम ध्यान दे रहे हैं। इसका कारण लघुकथा का एकांगी स्वरूप और न्यून पात्र हो सकता है। भविष्य में शीर्षक की व्यापकता और पात्रों के चरित्र के अनुसार उसके चयन पर प्रयोग होंगे, यह संभावना है। फिलहाल शीर्षक चयन में कई लघुकथाओं में एक ही गुन पर ध्यान दिया जा रहा है, हालाँकि एक से अधिक गुणों पर ध्यान देने से शीर्षक का महत्त्व और भी बढ़ेगा। हालाँकि ऐसा नहीं है कि एक से अधिक गुणों पर ध्यान ही नहीं दिया जा रहा। अधिक प्रतिशत तो ऐसी ही रचनाओं का है, जिनके शीर्षक बनाते समय एक से अधिक गुणों पर ध्यान दिया गया।
भविष्य में इस शोध को आगे बढ़ाते हुए निम्न कार्य किए जा सकते हैं:
* लघुकथाकारों का लघुकथा लेखन के वर्षों के अनुसार वर्गीकरण कर आंकड़ों का विश्लेषण।
* लघुकथाओं के रचनाकाल के अनुसार लघुकथाकारों की शीर्षक रखने की प्रवृत्ति का विश्लेषण ।
* सर्वे में प्राप्त आंकड़ों के अनुसार शीर्षक के विभिन्न गुणों का विस्तृत विश्लेषण।
* संपादकों द्वारा शीर्षक बदले जाने पर शीर्षक उचित हुआ अथवा नहीं इसका विश्लेषण ।

संदर्भ:
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२. डा. अशोक भाटिया, लघुकथाः लघुता में प्रभुता, http://www.setumagcom/2016/11-laghukatha-laghuta-men-prabhutahtml (last access august २७, २०१९)
३. रामकुमार आत्रेय, सकारात्मक सोच की मार्मिक लघुकथाएँ, पड़ाव और पड़ताल - १५, दिशा प्रकाशन, ISBN 978.93.84713.14.0, पृष्ठ 147-149
४. विवेक कुमार एवं नीलिमा शर्मा, मुट्ठी भर अक्षर, २०१५, हिन्द-युग्म, नई दिल्ली, ISBN 978.93.84419 .14.1, पृष्ठ 8
५. भगीरथ, लघुकथा समीक्षा, संस्करण 2018, FSP Media Publications, ISBN: 9781545723524ए पृष्ठ 30, 80, 125
६. श्यामसुन्दर अग्रवाल, लघुकथा में शीर्षक का महत्त्व. http://laghu-katha.com (last access august १२, २०१९)
७. साक्षात्कारः समझ लघुकथा कीः बलराम अग्रवाल से जितेन्द्र जीतू की बातचीत,http://www.abhivyakti-hindi.org/snibandh/sakshatkar/balram_jitu.htm (last access on August 15, 2019)
८. भगीरथ परिहार, हिंदी लघुकथा के सिद्धांत, 2018, Educreation Publishing, बिलासपुर ] ISBN: 978-1-5457-1979-4, पृष्ठ 111
९. सुभाष नीरव, सृजन-यात्रा ब्लाॅग,http://srijanyatra.blogspot. com/2012/02/blog-post.html (last access on August 17, 2019)
१०. सुकेश साहनी, कहानी का बीज रूप नहीं है लघुकथा,http://sahityakunj.net/entries/view/kahani-ka-beej-roop-nahin-hailaghukatha (last access on August 12, 2019)
११. लघुकथा दुनिया ब्लाॅगhttp://laghukathaduniya.blogspot.com (last access on August 29, 2019)
१२. डाॅ. मिथिलेशकुमारी मिश्र, लघुकथा का शीर्षक,http://satishrajpushkarana.blogspot.com/ 2013/03/blog-post.html (last access on July 19, 2019)
१३. देवी नागरानी, लघुकथा की जीवनी,http://www.swargvibha.in/ aalekh/all_aalekh/ laghukatha_jeewani.html (last access on August 19, 2019)
१४. डाॅ. शकुन्तला किरण , हिंदी लघुकथा, संस्करण : 2010, संकेत प्रकाशन, अजमेर
१५. आकुल, https://saannidhya.blogspot.com/p/blog&i`"B.html (Last accessed on August 27, 2019)
१६. डाॅ. चंद्रेश कुमार छतलानी, लघुकथा प्रवाह और प्रभाव, लघुकथा मंजूषा 3: (खंड-1), 2019 व जन साहित्य पीठ, नई दिल्ली, पृष्ठ 45
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साभार : विश्व हिंदी पत्रिका 2019, पृष्ठ 48-56,  ISSN No. : 1694-2477, विश्व हिंदी सचिवालय, इंडिपेंडेंस स्ट्रीट, फ़ेनिक्स 73423, माॅरीशस। info@vishwahindi.com osclkbV @ Website : www.vishwahindi.com Q+ksu @ Phone : +230-6600800, Q+SDl @ Fax: 00-230-6064855

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