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सोमवार, 2 मार्च 2020

नवगीत सुनो शहरियों!

नवगीत
सुनो शहरियो! 
संजीव वर्मा 'सलिल'
*
सुनो शहरियो!
पिघल ग्लेशियर
सागर का जल उठा रहे हैं
जल्दी भागो।

माया नगरी नहीं टिकेगी
विनाश लीला नहीं रुकेगी
कोशिश पार्थ पराजित होगा
श्वास गोपिका पुन: लुटेगी
बुनो शहरियो !
अब मत सपने
खुद से खुद ही ठगा रहे हो
मत अनुरागो

संबंधों के लाक्षागृह में
कब तक खैर मनाओगे रे!
प्रतिबंधों का, अनुबंधों का
कैसे क़र्ज़ चुकाओगे रे!
उठो शहरियो !
बेढब नपने
बना-बना निज श्वास घोंटते
यह लत त्यागो

साँपिन छिप निज बच्चे सेती
झाड़ी हो या पत्थर-रेती
खेत हो रहे खेत सिसकते
इमारतों की होती खेती
धुनो शहरियो !
खुद अपना सिर
निज ख्वाबों का खून करो
सोओ, मत जागो
***
संजीव
१५-११-२०१९

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