एक रचना
माटी
*
उमर बिताई सोते-सोते, काश सके मन जाग।
नेह नर्मदा नहाकर, झूमे गाए फाग।।
*
माटी से माटी मिली,
माटी जन्मी हर्ष।
माटी में माटी मिली,
दुख क्यों? करें विमर्श।।
माटी से माटी कहे, सम है राग-विराग।
उमर बिताई सोते-सोते, काश सके मन जाग।।
*
माटी बिछा, ओढ़ ले माटी,
माटी की माटी परिपाटी।
माटी लूट रही माटी को,
माटी लुटा रही है माटी।
माटी को मत रौंदो लोगो, माटी मानो पाग।
उमर बिताई सोते-सोते, काश सके मन जाग।।
*
माटी मोह न करती किंचित्,
माटी हक से करे न वंचित।
माटी जोड़े तिनका-तिनका,
माटी बन माटी कर सिंचित।।
माटी सच का करे सामना, बन माटी मत भाग।
उमर बिताई सोते-सोते, काश सके मन जाग।।
***
संजीव, ६-२-२०१९
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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बुधवार, 6 फ़रवरी 2019
गीत: माटी
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