मुक्तक
आशा की कंदील झूलती
मिली समय की शाख पर
जलकर भी देती उजियारा
खुश हो खुद को राख कर
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आशा की कंदील झूलती
मिली समय की शाख पर
जलकर भी देती उजियारा
खुश हो खुद को राख कर
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मुक्तिका
साथ बुजुर्गों का...
संजीव 'सलिल'
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साथ बुजुर्गों का बरगद की छाया जैसा.
जब हटता तब अनुभव होता था वह कैसा?
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साथ बुजुर्गों का बरगद की छाया जैसा.
जब हटता तब अनुभव होता था वह कैसा?
मिले विकलता, हो मायूस मौन सहता मन.
मिले सफलता, नशा मूंड़ पर चढ़ता मै सा..
मिले सफलता, नशा मूंड़ पर चढ़ता मै सा..
कम हो तो दुःख, अधिक मिले होता विनाश है.
अमृत और गरल दोनों बन जाता पैसा..
अमृत और गरल दोनों बन जाता पैसा..
हटे शीश से छाँव, धूप-पानी सिर झेले.
फिर जाने बिजली, अंधड़, तूफां हो ऐसा..
फिर जाने बिजली, अंधड़, तूफां हो ऐसा..
जो बोया है वह काटोगे 'सलिल' न भूलो.
नियति-नियम है अटल, मिले जैसा को तैसा..
नियति-नियम है अटल, मिले जैसा को तैसा..
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१३-२-२०११
१३-२-२०११
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