हुआ ‘सलिल’ जी से सतत जब से वार्तालाप
कविता लिखनी आ गई, आया मात्रा नाप
आया मात्रा नाप साथ में लय भी सीखी
कविता मन को भाई लगती सखी सरीखी
कह 'आभा' मुस्काय लगे अब गीत सरल है
छाने लगे छंद कविता में गन्ध ‘सलिल’ है
कविता लिखनी आ गई, आया मात्रा नाप
आया मात्रा नाप साथ में लय भी सीखी
कविता मन को भाई लगती सखी सरीखी
कह 'आभा' मुस्काय लगे अब गीत सरल है
छाने लगे छंद कविता में गन्ध ‘सलिल’ है
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आभा की आभा अमित, आ भा बनकर मीत छटा दूनवी गह लिखें, मधुरिम कविता गीत मधुरिम कविता गीत, सीखकर मात्रा गणना रचें निरंतर छंद, न सीखा तुमने रुकना निर्झरिणी सी बहो, गहो पल-पल छंदाभा नेह नर्मदा बहा, बसो बन ऊषा-आभा
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