कृति परिचय:
लघु कथा संगम: भावनाओं का परचम
-डॉ. साधना वर्मा
[कृति विवरण; लघुकथा संगम, लघुकथा संकलन, मुख्य संपादक छाया सक्सेना, आईएसबीएन प्रथम संस्करण २०१९, २१.५ सेमी x १३ सेमी, आवरण बहुरंगी पेपरबैक, पृष्ठ १९२, मूल्य ३००/-, साहित्य संगम प्रकाशन इंदौर , संपादक संपर्क: १२ फेज १, माँ नर्मदे नगर, बिलहरी, जबलपुर]
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लघुकथा वर्तमान साहित्य की मुख्य धारा में स्वतंत्र विधा के रूप में स्थापित हो गयी है। देखा जा रहा है कि गृहणियों में इस विधा की लोकप्रियता निरंतर वृद्धि पर है। संभवत: इसका कारण लघुकथा लेखन में लगने वाला कम समय और क्षणिक अनुभूति का कलेवर होना है। अन्य गद्य विधाओं कहानी, उपन्यास, निबंध, लेख आदि को तैयार करने में जितना मनन-चिंतन, और लेखन में समय लगता है वह सहज साध्य नहीं हो पाने पर लघुकथा ही एकमात्र विकल्प रह जाता है। पद्य विधाओं में छंद, ले, बिम्ब, प्रतीक, शब्द चयन की जो कठिनाई होती है, लघुकथा उससे भी निजात दिला देती है। कारण जो भी हो, लघुकथाकरों के गुल-गोत्र की वृद्धि होना शुभ संकेत और हर्ष का कारक है। विवेच्य लघुकथा संकलन ऐसे सारस्वत अनुष्ठान का परिणाम है जो नवोदितों को निखारने का लक्ष्य लेकर किया गया है।
चार खण्डों में विभक्र इस कृति के प्रथम खंड में लघुकथा के सशक्त हस्ताक्षर शीर्षक से आचार्य संजीव 'सलिल', डॉ. जमुना कृष्ण राज, डॉ. सुरेश तन्मय, डॉ. अनिल शूर, मुकेश शर्मा, राजेश कुमारी, कांता रॉय तथा रजनी रंजना का परिचय व् एक-एक लघुकथा संकलित कर कृति की गरिमा वृद्धि की सफल चेष्टा की गयी है। द्वितीय खंड लघुकथा के रचनाकार में २७ लघुकथाकारों ऊषा सेठी, मेहा मिश्रा, अर्चना राय, डॉ. मीना भट्ट, सुशीला सिंह, शकुंतला अग्रवाल, कंचन पांडेय, राजेश पुरोहित, डॉ. आनंद किशोर, छाया सक्सेना 'प्रभु', मधु मिश्रा, दीपा संजय 'दीप', मनीषा जोबन देसाई, सुचि संदीप, डॉ. राजलक्ष्मी शिवहरे, रवि रश्मि अनुभूति, शिव कुमारी शिवहरे, सौम्या मिश्रा, भावना शिवहरे, रानी सोनी चंदा, इंदु शर्मा शची, अनीता मंदिलवार, प्रतिभा गर्ग, सुनीता विश्लोनिया, राजीव प्रखर, पूनम शर्मा, शावर भकत तथा राहत बरेलवी का सचित्र परिचय व लघुकथाएँ हैं।
खंड ३ कहानी संस्मरण के अंतर्गत मनोरमा पाखी, कुमुद श्रीवास्तव, किशन लाल अग्रवाल, राजवीर सिंह 'मंत्र', कविराज तरुण सक्षम तथा आशीष पांडेय 'जिद्दी' हैं। भाग ४ लघुकथा मेरी नज़र में के अंतर्गत अर्चना राय, मनोरमा पाखी, सुचि संदीप शुचिता व प्रतिभा गर्ग 'प्रीति' ने लघुकथा विधा के संबंध में अपनी बात कही है।
अनुष्ठान निस्संदेह उपयोगी है किन्तु उस ऊँचाई को स्पर्श नहीं कर सका जहाँ यह संदर्भ ग्रंथ की तरह उपयोगी होता। खाद ४ में ऐसे हस्ताक्षर होते जो वर्तमान लघुकथा लेखन में शीर्ष पर है और विधा के तकनीकी पक्ष के जानकर हैं तो यह खंड अन्य लघुकथाकारों के लिए उपयोगी हो जाता। विधागत मानकों पर नवोदित चर्चा करें तो प्रोत्साहन की दृष्टि से भले ही उचित प्रतीत हो पर प्रामाणिकता की दृष्टि से उपयोगिता संदिग्ध रहती है। मनोरमा जी ने लघुकथा के जो १५ तत्व बताये हैं उन पर इस संकलन की अधिकांश लघुकथाएं खरी नहीं उतरतीं। अर्चना राय लघुकथा के ५ तत्व बताती हैं। सुचि दीप शुचिता के अनुसार लघुकथा को शब्दों की संख्या में नहीं बाँधा जा सकता किन्तु प्रतिभा गर्ग प्रीती के अनुसार लघुकथा में ३०० शब्दों से अधिक नहीं होना चाहिए। संपादक जी इन बिंदुओं पर मौन हैं। ऐसी स्थिति में नए लघुकथाकार मार्दर्शन पा सकेंगे या भ्रमित होंगे, विचारणीय है। बेहतर होता कि जिन्हें सशक्त हस्ताक्षर कहा गया है उनसे इन बिंदुओं पर मार्गदर्शन लिया गया होता।
सामूहिक लघुकथा संकलन का प्रकाशन श्रम-समय और धन तीनों की माँग करता है। संभवत: आर्थिक अंशदान के आधार पर पृष्ठ संख्या व रचनाएँ रखी गई हैं। मुख्य संपादक जी का श्रम सराहनीय है। सात सदस्यीय लम्बा संपादक मंडल अपने दायित्व से विमुख रहा प्रतीत होता है, चूँकि पाठ्य अशुद्धियाँ दूर नहीं की जा सकी हैं। आवरण तथा मुद्रण सुरुचिपूर्ण है। ऐसे संकलन में अन्य चित्र उसे विरूपित करते हैं। पृष्ठों पर कुछ स्थान रिक्त हो तो उसे भरने की चेष्टा आकर्षण घटाती है। खालीपन का भी सौंदर्य होता है। अस्तु साहित्य संगम संस्थान का यह प्रयास प्रशंसनीय है, आगामी संकलन अधिक उपयोगी होगा।
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- अर्थशास्त्र विभाग, शासकीय मानकुंवर बाई महाविद्यालय, नेपियर टाउन जबलपुर ४८२००१।
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