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गुरुवार, 7 फ़रवरी 2019

विमर्श: सृजन और प्रणय

विमर्श: सृजन और प्रणय 
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लिखता नहीं हूँ, 
लिखाता है कोई
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वियोगी होगा पहला कवि
आह से उपजा होगा गान
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शब्द तो शोर हैं तमाशा हैं
भावना के सिंधु में बताशा हैं
मर्म की बात होंठ से न कहो
मौन ही भावना की भाषा है
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अवर स्वीटेस्ट सांग्स आर दोज विच टेल ऑफ़ सैडेस्ट थॉट.
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हैं सबसे मधुर वो गीत जिन्हें हम दर्द के सुर में गाते हैं,
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जितने मुँह उतनी बातें के समान जितने कवि उतनी अभिव्यक्तियाँ
प्रश्न यह कि क्या मनुष्य का सृजन उसके विवाह अथवा प्रणय संबंधों से प्रभावित होता है? क्या अविवाहित, एकतरफा प्रणय, परस्पर प्रणय, वाग्दत्त (सम्बन्ध तय), सहजीवी (लिव इन), प्रेम में असफल, विवाहित, परित्यक्त, तलाकदाता, तलाकगृहीता, विधवा/विधुर, पुनर्विवाहित, बहुविवाहित, एक ही व्यक्ति से दोबारा विवाहित, निस्संतान, संतानवान जैसी स्थिति सृजन को प्रभावित करती है?
यह प्रभाव कब, कैसे, कितना और कैसा होता है? इस पर विचार दें.
आपके विचारों का स्वागत और प्रतीक्षा है.
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