एक रचना
परिंदा
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करें पत्ते परिंदों से गुफ्तगू
व्यर्थ रहते हैं भटकते आप क्यूँ?
बंद पिंजरों में रहें तो हर्ज़ क्या?
भटकने का आपको है मर्ज़ क्या??
परिंदे बोले: 'न बंधन चाहिए
जमीं घर, आकाश आँगन चाहिए
फुदक दाना चुन सकें हम खुद जहाँ
उड़ानों पर भी न हो बंदिश वहाँ
क्यों रहें हम दूर अपनी डाल से?
मरें चाहे, जूझ तो लें हाल से
चुगा दें चुग्गा उन्हें असमर्थ जो
तोल कर पर नाप लें वे गगन को
हम नहीं इंसान जो खुद के लिये
जियें, हम जीते यहाँ सबके लिये'
मौन पत्ता छोड़ शाखा गिर गया
परिंदा झट से गगन में उड़ गया
***
२०-१२-२०१५
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