मुक्तिका
*
कौए अब तो बाज हुए
जुगनू कहते गाज हुए
*
चमरौधा भी सर चढ़कर
बोला हम तो ताज हुए
*
नाम मात्र के कपड़े ही
अब नारी की लाज हुए
*
कल के जिम्मे 'सलिल' सभी
जो करने हैं काज हुए
*
गूँगे गाते हैं ठुमरी
सुरविहीन सब साज हुए
*
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें