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बुधवार, 10 फ़रवरी 2016

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एक रचना 
संभावना की फसल 
*
सम्भावना की फसल 
बंजर में उगायें।
*
देव को दे दोष 
नाहक भाग्य को कोसा। 
हाथ पर धर हाथ 
जब-जब ख्वाब को पोसा।
बिना कोशिश, किस तरह 
मंज़िल करे बोसा?
बाँधकर मुट्ठी कदम 
पथ पर बढ़ायें।
सम्भावना की फसल 
बंजर में उगायें।
*
दर्द तेरा बने 
मेरी आँख का आँसू।
श्वास का हो, आस से 
रिश्ता तभी धाँसू।
सोचता मन व्यर्थ ही 
कैसे-किसे फाँसू?
सर्वार्थ सलिला छोड़ 
मछली फड़फड़फड़ायें। 
सम्भावना की फसल 
बंजर में उगायें।
*
झोपड़ी में, राज-
महलों में न अंतर।
परिश्रम का फूँक दो 
कानों में मंतर।
इत्र समता का करे 
मन-प्राण को तर-
मीत! ममता-गीत 
मन-मन गुनगुनायें।
सम्भावना की फसल 
बंजर में उगायें।
*

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