रसानंद दे छंद नर्मदा १५ : हरिगीतिका
हरिगीतिका X 4 = 11212 की चार बार आवृत्ति
दोहा, आल्हा, सार ताटंक,रूपमाला (मदन),
चौपाई
,
छंदों से साक्षात के पश्चात् अब मिलिए
हरिगीतिका
से.
हरिगीतिका मात्रिक सम छंद हैं जिसके प्रत्येक चरण में २८ मात्राएँ होती हैं । यति १६ और १२ मात्राओं पर होती है। पंक्ति के अंत में लघु और गुरु का प्रयोग होता है।
भिखारीदास ने छन्दार्णव में गीतिका नाम से 'चार सगुण धुज गीतिका' कहकर हरिगीतिका का वर्णन किया है। हरिगीतिका के पारम्परिक उदाहरणों के साथ कुछ अभिनव प्रयोग, मुक्तक, नवगीत, समस्यापूर्ति (शीर्षक पर रचना) आदि नीचे प्रस्तुत हैं।
छंद विधान:
०१. हरिगीतिका २८ मात्रा का ४ समपाद मात्रिक छंद है।
०२. हरिगीतिका में हर पद के अंत में लघु-गुरु ( छब्बीसवी लघु, सत्ताइसवी-अट्ठाइसवी गुरु ) अनिवार्य है।
०३. हरिगीतिका में १६-१२ या १४-१४ पर यति का प्रावधान है।
०४. सामान्यतः दो-दो पदों में समान तुक होती है किन्तु चारों पदों में समान तुक, प्रथम-तृतीय-चतुर्थ पद में समान तुक भी हरिगीतिका में देखी गयी है।
०५. काव्य प्रभाकरकार जगन्नाथ प्रसाद 'भानु' के अनुसार हर सतकल अर्थात चरण में (11212) पाँचवी, बारहवीं, उन्नीसवीं तथा छब्बीसवीं मात्रा लघु होना चाहिए। कविगण लघु को आगे-पीछे के अक्षर से मिलकर दीर्घ करने की तथा हर सातवीं मात्रा के पश्चात् चरण पूर्ण होने के स्थान पर पूर्व के चरण काअंतिम दीर्घ अक्षर अगले चरण के पहले अक्षर या अधिक अक्षरों से संयुक्त होकर शब्द में प्रयोग करने की छूट लेते रहे हैं किन्तु चतुर्थ चरण की पाँचवी मात्रा का लघु होना आवश्यक है।
मात्रा बाँट: I I S IS S SI S S S IS S I I IS
या
।। ऽ। ऽ ऽ ऽ।ऽ।।ऽ। ऽ ऽ ऽ। ऽ
कहते हुए यों उत्तरा के नेत्र जल से भर गए ।
हिम के कणों से पूर्ण मानो हो गए पंकज नए ॥
- उदाहरण :
- ०१. मम मातृभूमिः भारतं धनधान्यपूर्णं स्यात् सदा।
- नग्नो न क्षुधितो कोऽपि स्यादिह वर्धतां सुख-सन्ततिः।
- स्युर्ज्ञानिनो गुणशालिनो ह्युपकार-निरता मानवः,
- अपकारकर्ता कोऽपि न स्याद् दुष्टवृत्तिर्दांवः ॥
०२. निज गिरा पावन करन कारन, राम जस तुलसी कह्यो. (रामचरित मानस)(यति १६-१२ पर, ५वी मात्रा दीर्घ, १२ वी, १९ वी, २६ वी मात्राएँ लघु)०३. दुन्दुभी जय धुनि वेद धुनि, नभ नगर कौतूहल भले. (रामचरित मानस)(यति १४-१४ पर, ५वी मात्रा दीर्घ, १२ वी, १९ वी, २६ वी मात्राएँ लघु)०४. अति किधौं सरित सुदेस मेरी, करी दिवि खेलति भली। (रामचंद्रिका)(यति १६-१२ पर, ५वी-१९ वी मात्रा दीर्घ, १२ वी, २६ वी मात्राएँ लघु)०५. जननिहि बहुरि मिलि चलीं उचित असीस सब काहू दई। (रामचरित मानस)(यति १६-१२ पर, १२ वी, २६ वी मात्राएँ दीर्घ, ५ वी, १९ वी मात्राएँ लघु)०६. करुना निधान सुजान सील सनेह जानत रावरो। (रामचरित मानस)(यति १६-१२ पर, ५ वी, १२ वी, १९ वी, २६ वी मात्राएँ लघु)०७. इहि के ह्रदय बस जानकी जानकी उर मम बास है। (रामचरित मानस)(यति १६-१२ पर, ५ वी, १२ वी, २६ वी मात्राएँ लघु, १९ वी मात्रा दीर्घ)०८. तब तासु छबि मद छक्यो अर्जुन हत्यो ऋषि जमदग्नि जू।(रामचरित मानस)(यति १६-१२ पर, ५ वी, २६ वी मात्राएँ लघु, १२ वी, १९ वी मात्राएँ दीर्घ)०९. तब तासु छबि मद छक्यो अर्जुन हत्यो ऋषि जमदग्नि जू।(रामचंद्रिका)(यति १६-१२ पर, ५ वी, २६ वी मात्राएँ लघु, १२ वी, १९ वी मात्राएँ दीर्घ)१०. जिसको न निज / गौरव तथा / निज देश का / अभिमान है।वह नर नहीं / नर-पशु निरा / है और मृतक समान है। (मैथिलीशरण गुप्त )(यति १६-१२ पर, ५ वी, १२ वी, १९ वी, २६ वी मात्राएँ लघु)११. जब ज्ञान दें / गुरु तभी नर/ निज स्वार्थ से/ मुँह मोड़ता।तब आत्म को / परमात्म से / आध्यात्म भी / है जोड़ता।।(संजीव 'सलिल')अभिनव प्रयोग:हरिगीतिका मुक्तक:पथ कर वरण, धर कर चरण, थक मत चला, चल सफल हो.श्रम-स्वेद अपना नित बहा कर, नव सृजन की फसल बो..संचय न तेरा साध्य, कर संचय न मन की शांति खो-निर्मल रहे चादर, मलिन हो तो 'सलिल' चुपचाप धो..*करता नहीं, यदि देश-भाषा-धर्म का, सम्मान तू.धन-सम्पदा, पर कर रहा, नाहक अगर, अभिमान तू..अभिशाप जीवन बने तेरा, खो रहा वरदान तू-मन से असुर, है तू भले, ही जन्म से इंसान तू..*करनी रही, जैसी मिले, परिणाम वैसा ही सदा.कर लोभ तूने ही बुलाई शीश अपने आपदा..संयम-नियम, सुविचार से ही शांति मिलती है 'सलिल'-निस्वार्थ करते प्रेम जो, पाते वही श्री-संपदा..*धन तो नहीं, आराध्य साधन मात्र है, सुख-शांति का.अति भोग सत्ता लोभ से, हो नाश पथ तज भ्रान्ति का..संयम-नियम, श्रम-त्याग वर, संतोष कर, चलते रहो-तन तो नहीं, है परम सत्ता उपकरण, शुचि क्रांति का..*करवट बदल ऋतुराज जागा विहँस अगवानी करो.मत वृक्ष काटो, खोद पर्वत, नहीं मनमानी करो..ओजोन है क्षतिग्रस्त पौधे लगा हरियाली करो.पर्यावरण दूषित सुधारो अब न नादानी करो..*- उत्सव मनोहर द्वार पर हैं, प्यार से मनुहारिए.पथ भोर-भूला गहे संध्या, विहँसकर अनुरागिए ..सबसे गले मिल स्नेहमय, जग सुखद-सुगढ़ बनाइए.नेकी विहँसकर कीजिए, फिर स्वर्ग भू पर लाइए..*हिल-मिल मनायें पर्व सारे, बाँटकर सुख-दुःख सभी.जलसा लगे उतरे धरा पर, स्वर्ग लेकर सुर अभी.सुर स्नेह के छेड़ें अनवरत, लय सधे सद्भाव की.रच भावमय हरिगीतिका, कर बात नहीं अभाव की..*त्यौहार पर दिल मिल खिलें तो, बज उठें शहनाइयाँ.मड़ई मेले फेसटिवल या हाट की पहुनाइयाँ..सरहज मिले, साली मिले या संग हों भौजाइयाँ.संयम-नियम से हँसें-बोलें, हो नहीं रुस्वाइयाँ..*कस ले कसौटी पर 'सलिल', खुद आप निज प्रतिमान को.देखे परीक्षाकर, परखकर, गलतियाँ अनुमान को..एक्जामिनेशन, टेस्टिंग या जाँच भी कर ले कभी.कविता रहे कविता, यही है, इम्तिहां लेना अभी..*अनुरोध विनती निवेदन है व्यर्थ मत टकराइए.हर इल्तिजा इसरार सुनिए, अर्ज मत ठुकराइए..कर वंदना या प्रार्थना हों अजित उत्तम युक्ति है.रिक्वेस्ट है इतनी कि भारत-भक्ति में ही मुक्ति है..
- *
- समस्यापूर्ति
बाँस (हरिगीतिका)*रहते सदा झुककर जगत में सबल जन श्री राम सेभयभीत रहते दनुज सारे त्रस्त प्रभु के नाम सेकोदंड बनता बाँस प्रभु का तीर भी पैना बनेपतवार बन नौका लगाता पार जब अवसर पड़े*बँधना सदा हँस प्रीत में, हँसना सदा तकलीफ मेंरखना सदा पग सीध में, चलना सदा पग लीक मेंप्रभु! बाँस सा मन हो हरा, हो तीर तो अरि हो डरानित रीत कर भी हो भरा, कस लें कसौटी हो खरा- *
नवगीत:
*
पहले गुना
तब ही चुना
जिसको ताजा
वह था घुना
*
सपना वही
सबने बना
जिसके लिए
सिर था धुना
*
अरि जो बना
जल वो भुना
वह था कहा
सच जो सुना
.
(प्रयुक्त छंद: हरिगीतिका)
नवगीत:
*
करना सदा
वह जो सही
*
तक़दीर से मत हों गिले
तदबीर से जय हों किले
मरुभूमि से जल भी मिले
तन ही नहीं मन भी खिले
वरना सदा
वह जो सही
भरना सदा
वह जो सही
*
गिरता रहा, उठता रहा
मिलता रहा, छिनता रहा
सुनता रहा, कहता रहा
तरता रहा, मरता रहा
लिखना सदा
वह जो सही
दिखना सदा
वह जो सही
*
हर शूल ले, हँस फूल दे
यदि भूल हो, मत तूल दे
नद-कूल को पग-धूल दे
कस चूल दे, मत मूल दे
सहना सदा
वह जो सही
तहना सदा
वह जो सही
*
(प्रयुक्त छंद: हरिगीतिका)
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