नवगीत:
तुमने
*
तुमने
सपने सत्य बनाये।
*
कभी धूप बन,
कभी छाँव बन।
सावन-फागुन की
सुन-गुन बन।
चूँ-चूँ, कलकल
स्वर गुंजाये।
*
अंकुर ऊगे,
पल्लव विकसे।
कलिका महकी
फल-तरु विहँसे।
मादक परिमल
दस दिश छाये।
*
लिखी इबारत,
हुई इबादत।
सचमुच रब की
बहुत इनायत।
खनखन कंगन
कुछ कह जाए।
*
बिना बताये
दिया सहारा।
तम हर घर-
आँगन उजियारा।
आधे थे
पूरे हो पाये।
*
कोई न दूजा
इतना अपना।
खुली आँख का
जो हो सपना।
श्वास-प्यास
जय-जय गुंजाये।
***
१६-२-२०१६
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