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रविवार, 13 मई 2012

दोहा सलिला: माँ ममता का गाँव है... --संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:
माँ ममता का गाँव है...
  
संजीव 'सलिल'
*
माँ ममता का गाँव है, शुभाशीष की छाँव.
कैसी भी सन्तान हो, माँ-चरणों में ठाँव..
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नारी भाषा भू नदी, प्रकृति- जननि हैं पाँच.
माता का ऋण कोई सुत, चुका न सकता साँच..
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माता हँसकर पालती,  अपने पुत्र अनेक.
क्यों पुत्रों को भार सम. लगती माता एक..
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रात-रात हँस जागती, सन्तति ले-ले नींद.
माँ बाहर- अन्दर रहें, आज बीन्दणी-बींद..
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माँ-सन्तान अनेक हैं, सन्तति को माँ एक.
माँ सेवा से हो 'सलिल', जागृत बुद्धि-विवेक..
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माँ के चरणों में बसे, सारे तीर्थस्थान.
माँ की महिमा देव भी, सकते नहीं बखान..
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नारी हो या भगवती, मानव या भगवान.
माँ की नजरों में सभी, संतति एक समान..
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आस श्वास-प्रश्वास है, तम में प्रखर उजास.
माँ अधरों का हास है, मरुथल में मधुमास..
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माँ बिन संतति का नहीं, हो सकता अस्तित्व.
जान-बूझ बिसरा रही, क्यों संतति यह तत्व..
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माँ का द्रग-जल है 'सलिल', पानी की प्राचीर.
हर संकट हर हो सके, दृढ़ संबल मतिधीर..
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माँ की स्मृति दीप है, यादें मधुर सुवास.
आँख मूँदकर सुमिर ले, माँ का हो आभास..
*
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
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