दोहा सलिला:
अमलतास हँसता रहा...
संजीव 'सलिल'
*
अमलतास हँसता रहा, अंतर का दुःख भूल.
जो बीता अप्रिय लगा, उस पर डालो धूल..
*
हर अशोक ने शोक को, बाँटा हर्ष-उछाह.
सींच रहा जो नर वही, उस में पाले डाह..
*
बैरागी कचनार को, मोह न पायी नार.
सुमन-वृष्टि कर धरा पर, लुटा रहा है प्यार..
*
कनकाभित चादर बिछी, झरा गुलमोहर खूब.
वसुंधरा पीताभ हो, गयी हर्ष में डूब..
*
गले चाँदनी से मिलीं, जुही-चमेली प्रात.
चम्पा जीजा तरसते, साली करें न बात..
*
सेमल नाना कर रहे, नाहक आँखें लाल.
चूजे नाती कर रहे, कलरव धूम धमाल..
*
पीपल-घर पाहुन हुए, शुक-सारिका रसाल.
सूर्य-किरण भुज भेंटतीं, पत्ते देते ताल..
*
मेघ गगन पर छा रहे, नाच मयूर नाच.
मुग्ध मयूरी सँग मिल, प्रणय-पत्रिका बाँच..
*
महक मोगरा ने किया, सबका चैन हराम.
हर तितली दे रही है, चहक प्रीत पैगाम..
*
दूधमोगरा-भ्रमर का, समझौता गंभीर.
सरहद की लाँघे नहीं, कोई कभी लकीर..
*
ओस बूँद से सज लगे, न्यारी प्यारी दूब.
क्यारी वारी जा रही, हर्ष-खुशी में ड़ूब..
*
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot. com
http://hindihindi.in
अमलतास हँसता रहा...
संजीव 'सलिल'
*
अमलतास हँसता रहा, अंतर का दुःख भूल.
जो बीता अप्रिय लगा, उस पर डालो धूल..
*
हर अशोक ने शोक को, बाँटा हर्ष-उछाह.
सींच रहा जो नर वही, उस में पाले डाह..
*
बैरागी कचनार को, मोह न पायी नार.
सुमन-वृष्टि कर धरा पर, लुटा रहा है प्यार..
*
कनकाभित चादर बिछी, झरा गुलमोहर खूब.
वसुंधरा पीताभ हो, गयी हर्ष में डूब..
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गले चाँदनी से मिलीं, जुही-चमेली प्रात.
चम्पा जीजा तरसते, साली करें न बात..
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सेमल नाना कर रहे, नाहक आँखें लाल.
चूजे नाती कर रहे, कलरव धूम धमाल..
*
पीपल-घर पाहुन हुए, शुक-सारिका रसाल.
सूर्य-किरण भुज भेंटतीं, पत्ते देते ताल..
*
मेघ गगन पर छा रहे, नाच मयूर नाच.
मुग्ध मयूरी सँग मिल, प्रणय-पत्रिका बाँच..
*
महक मोगरा ने किया, सबका चैन हराम.
हर तितली दे रही है, चहक प्रीत पैगाम..
*
दूधमोगरा-भ्रमर का, समझौता गंभीर.
सरहद की लाँघे नहीं, कोई कभी लकीर..
*
ओस बूँद से सज लगे, न्यारी प्यारी दूब.
क्यारी वारी जा रही, हर्ष-खुशी में ड़ूब..
*
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.
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12 टिप्पणियां:
achalkumar44@yahoo.com ekavita
हर एक छटा प्रकृति की इतनी सुन्दर क्यों लगती
इसमें है समाई प्रभुके माया की ही अभिव्यक्ति ।।
यह माया बुरी नहीं है , देता यह मन ही धोखा
इस चित्र विचित्र जगत का हर खेल ही अजब अनोखा ।।
अचल वर्मा
vijay2 ✆ द्वारा yahoogroups.com
kavyadhara
आ० ’सलिल’ जी,
अमलतास से .... मोगरे तक सभी भाव मन को भाए ।
विजय
rakesh518@yahoo.com ekavita
मान्य सलिलजी,
एक से बढ़ कर एक.
मेघ गगन पर छा रहे, नाच मयूर नाच.----------------------------क्या टंकण दोष है यहाँ या मेरा ?
मुग्ध मयूरी सँग मिल, प्रणय-पत्रिका बाँच..
सादर
राकेश
- pranavabharti@gmail.com
आ.
सदा की भांति सुंदर,वास्तविक धरातल पर ,जागृत करने वाले दोहे,
आपको शत शत वन्दन
आपको समर्पित.........
सूर्यमुखी ने कान में फूंकी यह सच्चाई ,
ये तो माया-जाल है,खो मत जाना भाई||
सादर
प्रणव भारती
अचल जी, राकेश जी, प्रणव भारती जी
आपकी गुण ग्राहकता को नमन.
मैंने 'मयूरा' टंकित किया था, वह 'मयूर' हो जाने से एक मात्रा घट गई. ध्यानाकर्षण हेतु आभार.
प्रणव जी! दोहा के हर पदांत में गुरु-लघु होना अनिवार्य है. आपके दोहे में गुरु-गुरु होने से १३-१२ मात्राएँ हो गयी हैं जो १३-११ होना चाहिए.
drdeepti25@yahoo.co.in द्वारा yahoogroups.com kavyadhara
आदरणीय संजीव जी,
मस्त दोहों के लिए बधाई !
सादर,
दीप्ति
पा सराहना दीप्ति से, दोहा हुआ प्रसन्न.
दीप्ति-दान करता दिया, होता नहीं विपन्न..
होता नहीं विपन्न, दीप्ति दिनमान लुटाता.
दिन भर करता श्रम, संध्या को गले लगाता..
कभी न देता, किस्मत खोती का उलाहना.
रहता है संतुष्ट दीप्ति से पा सराहना..
- murarkasampatdevii@yahoo.co.in
आदरणीय आचार्य जी,
बहुत बढ़िया दोहें, मैं तो मन्त्र-मुग्ध हो गई |
धन्यवाद,
सादर,
संपत
श्रीमती संपत देवी मुरारका
Smt. Sampat Devi Murarka
लेखिका कवयित्री पत्रकार
Writer Poetess Journalist
Hand Phone +91 94415 11238 / +91 93463 93809
Home +91 (040) 2475 1412 / Fax +91 (040) 4017 5842
http://bahuwachan.blogspot.com
sn Sharma ✆ ahutee@gmail.com द्वारा yahoogroups.com kavyadhara
आ० आचार्य जी,
पेड़ फूल पौदों की मनोरंजक वार्तालाप से अभिषिक्त ये दोहे मन मुग्ध कर गए | आपकी गहन साधना और
विषद ज्ञान को नमन |
सादर
कमल
ने लिखा:
आदरणीय संजीव जी,
मस्त दोहों के लिए बधाई !
सादर,
दीप्ति
पा सराहना दीप्ति से, दोहा हुआ प्रसन्न.
दीप्ति-दान करता दिया, होता नहीं विपन्न..
होता नहीं विपन्न, दीप्ति दिनमान लुटाता.
दिन भर करता श्रम, संध्या को गले लगाता..
कभी न देता, किस्मत खोती का उलाहना.
रहता है संतुष्ट दीप्ति से पा सराहना..
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in
- shishirsarabhai@yahoo.com
पा सराहना दीप्ति से, दोहा हुआ प्रसन्न.........
रहता है संतुष्ट दीप्ति से पा सराहना..........
आप आशु कविता अच्छी कर लेते है ...
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