व्यंग्य गीत:
तू नहीं और सही...
संजीव 'सलिल'
*

तू नहीं और सही,
और नहीं और सही...
*
ताकती टुकुर-टुकुर
चिड़िया फिरंगन बैठी।
खेल कुर्सी का रचा
देख रही है ऐंठी।
कौन किसका है यहाँ?
कौन बताये किसको?
एक आता है तुरत
दूसरा कहता खिसको।
हाय सरदार असरदार है
बिलकुल भी नहीं...
*
माया ममता या जया,
हाथ न आनेवाली।
उमा आये भी तो जल्दी ही
ही है जाने वाली।
देख सुषमा को न मोहित हो
उगलती ज्वाला।
याद नानी न दिला दे
तो बताना लाला।
राबडी दूध छटी का
दे दिला याद रही...
*
जया-रेखा भी अखाड़े में
उतर आयी हैं।
सिलसिला यादों का ले
दुनिया तमाशाई है।
खाता स्विस बैंक का
मांगें न क्यों नक्सलवादी?
देश की देश के वासी
ही करें बर्बादी।
चेतो सम्हलो ये 'सलिल' ने
है खरी बात कही...
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1 टिप्पणी:
ACHCHHE VYAGYA GEET KE LIYE AAPKO
BADHAAEE .
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