गीत:
खो बैठे पहचान...
संजीव 'सलिल'
*
*
खो बैठे पहचान
हाय! हम भीड़ हो गये...
*
विधि ने किया विचार
एक से सृज अनेक दूँ.
करूँ सृष्टि संरचना
संवेदन-विवेक दूँ.
हो अनेक से एक
सृजें सब अपनी दुनिया.
जुडें एक से एक
तजें हँस अपनी दुनिया.
समय हँसा, घर नहीं रहा
हम नीड़ हो गये...
*
धरा-बीज से अंकुर फूटे,
पल्लव विकसे.
मिला शाख पर आश्रय
पंछी कूके-विहँसे.
कली-पुष्प बन सुरभि
बिखेरी- जग आनंदित.
चढ़े ईश-चरणों में
बनकर हार सुवंदित.
हुई जीत मनमीत
अहं जड़, पीड़ हो गये...
*
छिना मायका, मिला
सासरा- स्नेह नदारत.
व्यर्थ हुईं साधना
वंदना प्रेयर आयत.
अमृत छकने गये,
हलाहल हर पल पाया.
नीलकंठ हो सके न
माया ने भरमाया.
बाबुल खोया सजन
न पाया- हीड़ हो गये...
*
टीप: हीड़ना बुन्देली शब्द = मन-प्राण से याद करना.
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in
खो बैठे पहचान...
संजीव 'सलिल'
*
*
खो बैठे पहचान
हाय! हम भीड़ हो गये...
*
विधि ने किया विचार
एक से सृज अनेक दूँ.
करूँ सृष्टि संरचना
संवेदन-विवेक दूँ.
हो अनेक से एक
सृजें सब अपनी दुनिया.
जुडें एक से एक
तजें हँस अपनी दुनिया.
समय हँसा, घर नहीं रहा
हम नीड़ हो गये...
*
धरा-बीज से अंकुर फूटे,
पल्लव विकसे.
मिला शाख पर आश्रय
पंछी कूके-विहँसे.
कली-पुष्प बन सुरभि
बिखेरी- जग आनंदित.
चढ़े ईश-चरणों में
बनकर हार सुवंदित.
हुई जीत मनमीत
अहं जड़, पीड़ हो गये...
*
छिना मायका, मिला
सासरा- स्नेह नदारत.
व्यर्थ हुईं साधना
वंदना प्रेयर आयत.
अमृत छकने गये,
हलाहल हर पल पाया.
नीलकंठ हो सके न
माया ने भरमाया.
बाबुल खोया सजन
न पाया- हीड़ हो गये...
*
टीप: हीड़ना बुन्देली शब्द = मन-प्राण से याद करना.
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in
5 टिप्पणियां:
Mridul Kirti ✆
मुझे
मानव की विसंगतियों का ऐसा सजीव चित्रण, सटीक शब्दों में, सीधे मर्म पर जा लगने वाले सत्य बेधी शब्द -----एक अति सुन्दर रचना -साधुवाद
डॉ.मृदुल
sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com
kavyadhara
सूफियाना भाव से भरा यह गीत बहुत रुचिकर लगा | साधुवाद
छिना मायका, मिला
सासरा- स्नेह नदारत.
व्यर्थ हुईं साधना
वंदना प्रेयर आयत.
अति सुन्दर और मार्मिक | वाह
सादर
कमल
vijay2 ✆ द्वारा yahoogroups.com
kavyadhara
आ० ‘सलिल’ जी,
विधि ने किया विचार
एक से सृज अनेक दूँ.
करूँ सृष्टि संरचना
संवेदन-विवेक दूँ.
सृष्टि की रचना के आधार पर लिखा यह गीत मनोहारी है।
बधाई,
विजय
To: kavyadhara@yahoogroups.com
वाह, वाह संजीव जी, अति मनोहारी सृजन !
सादर,
कनु
- shishirsarabhai@yahoo.com
उत्कृष्ट रचना !
सादर,
शिशिर
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