एक कविता:
उसकी और उनकी
उसकी और उनकी
अवनीश तिवारी
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उसकी कोमल चाह ,
उनकी कठोर मांगों तले दब ,
किसी कोने में अकेले रोती है |
उसके नन्हे - नन्हे सपने ,
उनकी बड़ी महत्वाकांक्षाओं से टकरा,
टूट बिखर जाते हैं |
उसकी आस की नदिया,
उनकी योजनाओं के सागर में मिल,
अपना अस्तित्व खो देती है |उसकी ममता के अंकुर,
उनके संबंधों के बरगद की छाँव में ,
घुट - घुट पनपते है |
इसतरह ...
उसके गर्भ की संतान,
बेटा ना होने के परिणाम से डर,
पल रही है, बढ़ रही है |
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