गीत:
अनछुई ये साँझ
संजीव 'सलिल'
*
अनछुई ये साँझ
संजीव 'सलिल'
*
*
साँवरे की याद में है बाँवरी
अनछुई ये साँझ...
*
दिन की चौपड़ पर सूरज ने,
साँवरे की याद में है बाँवरी
अनछुई ये साँझ...
*
दिन की चौपड़ पर सूरज ने,
जमकर खेले दाँव.
उषा द्रौपदी के ज़मीन पर,टिक न सके फिर पाँव.
बाधा मरुथल, खे आशा की नाव री
प्रसव पीढ़ा बाँझ.
साँवरे की याद में है बाँवरी
अनछुई ये साँझ...
*
अमराई का कतल किया,
खोजें खजूर की छाँव.
नगर हवेली हैं ठाकुर की,
मुजरा करते गाँव.
सांवरा सत्ता पे, तजकर साँवरी
बज रही दरबार में है झाँझ.
साँवरे की याद में है बाँवरी
अनछुई ये साँझ...
*
4 टिप्पणियां:
kusum sinha ✆ ekavita
priy sanjiv ji
etna sundar kaise likh lete hain? mujhe bhi ashirwad dijiye na? ki mai etna sundar likh sakun
kusum
achal verma ✆
मन भावन गीत , अति सुन्दर ।
आचार्य जी के शब्द तो मधुर तम होने ही हैं ।।
अचल वर्मा
shriprakash shukla ✆ yahoogroups.com ekavita
आदरणीय आचार्य जी,
अद्वितीय सदैव की तरह | बधाई हो
सादर
श्रीप्रकाश शुक्ल
--
Web:http://bikhreswar.blogspot.com/
shar_j_n ✆ shar_j_n@yahoo.com
ekavita
आ. आचार्य जी,
ये बिलकुल फेयर नहीं कि आपको माँ सरस्वती यों फेवर करतीं हैं :)
बहुत सुन्दर हैं निम्नलिखित:
दिन की चौपड़ पर सूरज ने,
जमकर खेले दाँव.
बाधा मरुथल, खे आशा की नाव री
प्रसव पीढ़ा बाँझ.
*
अमराई का कतल किया,
खोजें खजूर की छाँव.
सादर शार्दुला
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