कुल पेज दृश्य

शुक्रवार, 18 अगस्त 2023

सॉनेट, कशमकश, शुद्धगीता, छंद, कहमुकरी, सरसी कुण्डलिया, मुक्तक, गीता,

सॉनेट 
वाह कहूँ या आह करूँ? 
मन-मंथन कर लिया चित्र का, 
दृश्य-अदृश्य शब्द माला में, 
गूंँथ कार्य कर दिया मित्र का। 

शब्द सटीक तलब, लब चुनकर, 
धूम्रपान की हानि बताई, 
कथ्य सही क्रम में विकसित कर, 
सार दो पदी में ले आई। 

सहज सज गया है मुहावरा, 
'छाती फूँक' न सब जन जागो, 
सीख जरूरी, सबक है खरा, 
अब मत रोगों को अनुरागो। 

नीलम सॉनेट समझ रही है। 
कली मोगरा महक रही है।। 
१८-८-२०२३
 •••
सॉनेट
कशमकश
जागती हैं कामनाएँ,
नहीं वश में हृदय रहता,
हम नयन कैसे मिलाएँ?,
मन विकल अनकहा कहता।

धड़कनें सुन, दिल धड़कता,
परस पारस कहे पा रस,
नयन बायाँ झट फड़कता?,
लब अबोले गा रहा जस।

मुँह फिराए वक्ष से लग,
राज मन में है छिपाए,
जाए तो उठते नहीं पग,
रुके तो साजन लुभाए।

कशमकश प्रिय जान ना ले।
कशमकश प्रिय! जान ना ले।।
१७-८-२०२३
***
मुकरी /कहमुकरी
*
अंतर्मन में चित्र गुप्त है
अभी दिख रहा, अभी लुप्त है
कुछ पहचाना, कुछ अनजान
क्या सखि साजन?, नहिं भगवान
*
मन मंदिर में बैठा आकर
कहीं नहीं जाता वह जाकर
उसकी दम से रहे बहार
क्या सखि ईश्वर?, ना सखि प्यार
*
है समर्थ पर कष्ट न हरती
पल में निर्भय, पल में डरती
मनमानी करती हर बार
मितवा सजनी?, नहिं सरकार
*
जब आता तब आग लगाता
इसे लड़ाता, उसे भिड़ाता
होने देता नहीं निभाई
भाग्यविधाता?, नहीं चुनाव
*
देख आप हर कर जुड़ जाता
बिना कहे मस्तक झुक जाता
भूल व्यथा, हो हर मन चंगा
देव?, नहीं है ध्वजा तिरंगा
*
दैया! लगता सबको भय
कोई रह न सके निर्भय
कैद करे मानो कर टोना
सखी! सिपैया, नहिं कोरोना
*
जो पाता सो सुख से सोता
हाय हाय कर चैन न खोता
जिसे न मिलता करता रोष
है सखि रुपया, नहिं संतोष
*
माया पाती तनिक न मोह
पास न फटके गुस्सा-द्रोह
राजा है या संत विशेष
सुन सखि! सूरज, ना मिथिलेश
*
जन प्रिय मोह न पाता काम
अभिवादन है जिसका नाम
भक्तों का भय पल में लें हर
प्रिय! मधुसूदन?, नहिं शिवशंकर
*
पल में सखि री! चित्त चुराता
अनजाने मन में बस जाता
नयन बंद तो भी दे दर्शन
सखि! साजन?, नहिं कृष्ण सुदर्शन
*
काम करे निष्काम रात-दिन
रक्षा कर, सुख भी दे अनगिन
फिर भी रहती सदा विनीता
सजनी?, ना ना नदी पुनीता
*
इसको उससे जोड़ मिलाए
शीत-घाम हँस सहता जाए
सब पग धरते निज हित हेतु
क्या सखि धरती?, ना सखि सेतु
*
वह आए रौनक आ जाती
जाए ज्यों जीवन ले जाती
आँख मिचौली खेले उजली
क्या प्रिय सजनी?, ना सखि बिजली
*
भर देता मन में आनंद
फूल खिला बिखरा मकरंद
सबको सुखकर जैसे संत
क्या सखि!साजन? नहीं बसंत
18-8-2020
***
पाठ १०४
नव प्रयोग: शुद्धगीता छंद
*
छंद सलिला सतत प्रवहित, मीत अवगाहन करें।
शारदा का भारती सँग, विहँस आराधन करें।।
*
जन्म ब्याह राखी तिलक, गृह-प्रवेश त्यौहार।
सलिल बचा पौधे लगा, दें पुस्तक उपहार।।
*
लक्षण:
१. ४ पंक्ति।
२. प्रति पंक्ति २७ मात्रा।
३. १४-१३ मात्राओं पर यति।
४. हर पंक्ति के अंत में गुरु-लघु मात्रा।
५. हर २ पंक्ति में सम तुकांत।
लक्षण छंद:
शुद्धगीता छंद रचना, सत्य कहना कवि न भूल।
सम प्रशंसा या कि निंदा, फूल दे जग या कि शूल।।
कला चौदह संग तेरह, रहें गुरु-लघु ही पदांत।
गगनचुंबी गिरे बरगद, दूब सह तूफ़ान शांत।।
उदाहरण:
कौन है किसका सगा कह, साथ जो देता न छोड़?
गैर क्यों मानें उसे जो, साथ लेता बोल होड़।।
दे चुनौती, शक्ति तेरी बढ़ाता है वह सदैव।
आलसी तू हो न पाए, गर्व की तज दे कुटैव।।
***
हिंदी आटा माढ़िये, उर्दू मोयन डाल
सलिल संस्कृत सान दे, पूड़ी बने कमाल
*
मुक्तक
ढाले- दिल को छेदकर तीरे-नज़र जब चुभ गयी,
सांस तो चलती रही पर ज़िन्दगी ही रुक गयी।
तरकशे-अरमान में शर-हौसले भी कम न थे -
मिल गयी ज्यों ही नज़र से नज़र त्यों ही झुक गयी।।
***
छंद सलिला: पहले एक पसेरी पढ़ / फिर तोला लिख...
छंद सलिला सतत प्रवाहित, मीत अवगाहन करें
शारदा का भारती सँग, विहँस आराधन करें
*
जन्म ब्याह राखी तिलक, गृह-प्रवेश त्यौहार
सलिल बचा पौधे लगा, दें पुस्तक उपहार
*
पाठ १०२
नव प्रयोग: सरसी कुण्डलिया
*
कुंडलिया छंद (एक दोहा + एक रोला, दोहा का अंतिम चरण रोला का प्रथम चरण, दोहारम्भ के अक्षर, शब्द, शब्द समूह या पंक्ति रोला के अंत में) और्सर्सी छंद (१६-११, पदांत गुरु-लघु) से हम पूर्व परिचित हो चुके हैं. इन दोनों के सम्मिलन से सरसी कुण्डलिया बनता है. इसमें कुछ लक्षण कुण्डलिया के (६ पंक्तियाँ, चतुर्थ चरण का पंचम चरण के रूप में दुहराव, आरंभ के अक्षर, शब्दांश, शब्द ता चरण का अंत में दुहराव) तथा कुछ लक्षण सरसी के (प्रति पंक्ति २७ मात्रा, १६-११ पर यति, पदांत गुरु-लघु) हैं. ऐसे प्रयोग तभी करें जब मूल दोनों छंद साध चुके हों.
लक्षण:
१. ६ पंक्ति.
२. प्रति पंक्ति २७ मात्रा.
३. पहली दो पंक्ति १६-११ मात्राओं पर यति, बाद की ४ पंक्ति ११-१६ पर यति.
४. पंक्ति के अंत में गुरु-लघु मात्रा.
५. चतुर्थ चरण का पंचम चरण के रूप में दुहराव.
६. छंदारंभ के अक्षर, शब्दांश, शब्द, या शब्द समूह का छंदात में दुहराव.
उदाहरण:
भारत के जन गण की भाषा, हिंदी बोलें आप.
बने विश्ववाणी हिंदी ही, मानव-मन में व्याप.
मानव मन में व्याप, भारती दिल से दिल दे जोड़.
क्षेत्र न पाए नाप, आसमां कितनी भी ले होड़.
कहता कवी 'संजीव', दिलों में बढ़े हमेशा प्यार.
हो न नेह निर्जीव, न नाते कभी बनेंगे भार.
***
हिंदी आटा माढ़िये, उर्दू मोयन डाल
सलिल संस्कृत सान दे, पूड़ी बने कमाल
18-8-2017
***
दोहा मुक्तिका-
*
साक्षी साक्षी दे रही, मत हो देश उदास
जीत बनाती है सदा, एक नया इतिहास
*
कर्माकर ने दिखाया, बाकी अभी उजास
हिम्मत मत हारें करें, जुटकर सतत प्रयास
*
जीत-हार से हो भले, जय-जय या उपहास
खेल खिलाड़ी के लिए, हर कोशिश है खास
*
खेल-भावना ही हरे, दर्शक मन की प्यास
हॉकी-शूटिंग-आर्चरी, खेलो हो बिंदास
*
कहाँ जाएगी जीत यह?, कल आएगी पास
नित्य करो अभ्यास जुट, मन में लिए हुलास
*
निराधार आलोचना, भूल करो अभ्यास
सुन कर कर दो अनसुना, मन में रख विश्वास
*
मरुथल में भी आ सके, निश्चय ही मधुमास
आलोचक हों प्रशंसक, डिगे न यदि विश्वास
***
मुक्तक
ढाले- दिल को छेदकर तीरे-नज़र जब चुभ गयी,
सांस तो चलती रही पर ज़िन्दगी ही रुक गयी।
तरकशे-अरमान में शर-हौसले भी कम न थे -
मिल गयी ज्यों ही नज़र से नज़र त्यों ही झुक गयी।।
18-8-2016
***
अध्याय १
कुरुक्षेत्र और अर्जुन
कड़ी ४.
*
कुरुक्षेत्र की तपोभूमि में
योद्धाओं का विपुल समूह
तप्त खून के प्यासे वे सब
बना रहे थे रच-रच व्यूह
*
उनमें थे वीर धनुर्धर अर्जुन
ले मन में भीषण अवसाद
भरा ह्रदय ले खड़े हुए थे
आँखों में था अतुल विषाद
*
जहाँ-जहाँ वह दृष्टि डालता
परिचित ही उसको दिखते
कहीं स्वजन थे, कहीं मित्र थे
कहीं पूज्य उसको मिलते
*
कौरव दल था खड़ा सामने
पीछे पाण्डव पक्ष सघन
रक्त एक ही था दोनों में
एक वंश -कुल था चेतन
*
वीर विरक्त समान खड़ा था
दोनों दल के मध्य विचित्र
रह-रह जिनकी युद्ध-पिपासा
खींच रही विपदा के चित्र
*
माँस-पेशियाँ फड़क रही थीं
उफ़न रहा था क्रोध सशक्त
संग्रहीत साहस जीवन का
बना रहा था युद्धासक्त
*
लड़ने की प्रवृत्ति अंतस की
अनुभावों में सिमट रही
झूल विचारों के संग प्रतिपल
रौद्र रूप धर लिपट रही
*
रथ पर जो अनुरक्त युद्ध में
उतर धरातल पर आया
युद्ध-गीत के तेज स्वरों में
ज्यों अवरोह उतर आया
*
जो गाण्डीव हाथ की शोभा
टिका हुआ हुआ था अब रथ में
न्योता महानाश का देकर-
योद्धा था चुप विस्मय में
*
बाण चूमकर प्रत्यञ्चा को
शत्रु-दलन को थे उद्यत
पर तुरीण में ही व्याकुल हो
पीड़ा से थे अब अवनत
*
और आत्मा से अर्जुन की
निकल रही थी आर्त पुकार
सकल शिराएँ रण-लालायित
करती क्यों विरक्ति संचार?
*
यौवन का उन्माद, शांति की
अंगुलि थाम कर थका-चुका
कुरुक्षेत्र से हट जाने का
बोध किलकता छिपा-लुका
*
दुविधा की इस मन: भूमि पर
नहीं युद्ध की थी राई
उधर कूप था गहरा अतिशय
इधर भयानक थी खाई
*
अरे! विचार युद्ध के आश्रय
जग झुलसा देने वाले
स्वयं पंगु बन गये देखकर
महानाश के मतवाले
*
तुम्हीं क्रोध के प्रथम जनक हो
तुम में वह पलता-हँसता
वही क्रिया का लेकर संबल
जग को त्रस्त सदा करता
*
तुम्हीं व्यक्ति को शत्रु मानते
तुम्हीं किसी को मित्र महान
तुमने अर्थ दिया है जग को
जग का तुम्हीं लिखो अवसान
*
अरे! कहो क्यों मूल वृत्ति पर
आधारित विष खोल रहे
तुम्हीं जघन्य पाप के प्रेरक
क्यों विपत्तियाँ तौल रहे?
*
अरे! दृश्य दुश्मन का तुममें
विप्लव गहन मचा देता
सुदृढ़ सूत्र देकर विनाश का
सोया क्रोध जगा देता
*
तुम्हीं व्यक्ति को खल में परिणित
करते-युद्ध रचा देते
तुम्हीं धरा के सब मनुजों को
मिटा उसे निर्जन करते
*
तुम मानस में प्रथम उपल बन
लिखते महानाश का काव्य
नस-नस को देकर नव ऊर्जा
करते युद्ध सतत संभाव्य
*
अमर मरण हो जाता तुमसे
मृत्यु गरल बनती
तुम्हीं पतन के अंक सँजोकर
भाग्य विचित्र यहाँ लिखतीं
*
तुम्हीं पाप की ओर व्यक्ति को
ले जाकर ढकेल देते
तुम्हीं जुटा उत्थान व्यक्ति का
जग को विस्मित कर देते
*
तुम निर्णायक शक्ति विकट हो
तुम्हीं करो संहार यहाँ
तुम्हीं सृजन की प्रथम किरण बन
रच सकती हो स्वर्ग यहाँ
*
विजय-पराजय, जीत-हार का
बोध व्यक्ति को तुमसे है
आच्छादित अनवरत लालसा-
आसक्तियाँ तुम्हीं से हैं
*
तुम्हीं प्रेरणा हो तृष्णा की
सुख पर उपल-वृष्टि बनते
जीवन मृग-मरीचिका सम बन
व्यक्ति सृष्टि अपनी वरते
*
अरे! शून्य में भी चंचल तुम
गतिमय अंतर्मन करते
शांत न पल भर मन रह पाता
तुम सदैव नर्तन करते
*
दौड़-धूप करते पल-पल तुम
तुम्हीं सुप्त मन के श्रृंगार
तुम्हीं स्वप्न को जीवन देते
तुम्हीं धरा पर हो भंगार
*
भू पर तेरी ही हलचल है
शब्द-शब्द बस शब्द यहाँ
भाषण. संभाषण, गायन में
मुखर मात्र हैं शब्द जहाँ
*
अवसरवादी अरे! बदलते
क्षण न लगे तुमको मन में
जो विनाश का शंख फूँकता
वही शांति भरता मन में
*
खाल ओढ़कर तुम्हीं धरा पर
नित्य नवीन रूप धरते
नये कलेवर से तुम जग की
पल-पल समरसता हरते
*
तुम्हीं कुंडली मारे विषधर
दंश न अपना तुम मारो
वंश समूल नष्ट करने का
रक्त अब तुम संचारो
*
जिस कक्षा में घूम रहे तुम
वहीँ शांति के बीज छिपे
अंधकार के हट जाने पर
दिखते जलते दिये दिपे
*
दावानल तुम ध्वस्त कर रहे
जग-अरण्य की सुषमा को
तुम्हीं शांति का चीर-हरण कर
नग्न बनाते मानव को
*
रोदन जन की है निरीहता
अगर न कुछ सुन सके यहाँ
तुम विक्षिप्त , क्रूर, पागल से
जीवन भर फिर चले यहाँ
*
अरे! तिक्त, कड़वे, हठवादी
मृत्यु समीप बुलाते क्यों?
मानवहीन सृष्टि करने को
स्वयं मौत सहलाते क्यों?
*
गीत 'काम' के गाकर तुमने
मानव शिशु को बहलाया
और भूख की बातचीत की
बाढ़ बहाकर नहलाया
*
सदा युद्ध की विकट प्यास ने
छला, पतिततम हमें किया
संचय की उद्दाम वासना, से
हमने जग लूट लिया
*
क्रूर विकट घातकतम भय ने
विगत शोक में सिक्त किया
वर्तमान कर जड़ चिंता में
आगत कंपन लिप्त किया
*
लूट!लूट! तुम्हारा नाम 'राज्य' है
औ' अनीति का धन-संचय
निम्न कर्म ही करते आये
धन-बल-वैभव का संचय
*
रावण की सोने की लंका
वैभव हँसता था जिसमें
अट्हास आश्रित था बल पर
रोम-रोम तामस उसमें
*
सात्विक वृत्ति लिये निर्मल
साकेत धाम अति सरल यहाँ
ऋद्धि-सिद्धि संयुक्त सतत वह
अमृतमय था गरल कहाँ?
*
स्वेच्छाचारी अभय विचरते
मानव रहते हैं निर्द्वंद
दैव मनुज दानव का मन में
सदा छिड़ा रहता है द्वंद
*
सुनो, अपहरण में ही तुमने
अपना शौर्य सँवारा है
शोषण के वीभत्स जाल को
बुना, सतत विस्तारा है
*
बंद करो मिथ्या नारा
जग के उद्धारक मात्र तुम्हीं
उद्घोषित कर मीठी बातें
मूर्ख बनाते हमें तुम्हीं
*
व्यक्ति स्वयं है अपना नेता
अन्य कोई बन सकता
अपना भाग्य बनाना खुद को
अन्य कहाँ कुछ दे सकता?
*
अंतर्मन की शत शंकाएँ
अर्जुन सम करतीं विचलित
धर्मभूमि के कर्मयुद्ध का
प्रेरक होता है विगलित
*
फिर निराश होता थक जाता
हार सहज शुभ सुखद लगे
उच्च लक्ष्य परित्याग, सरलतम
जीवन खुद को सफल लगे
*
दुविधाओं के भंवरजाल में
डूब-डूब वह जाता है
क्या करना है सोच न पाता
खड़ा, ठगा पछताता है

18-8-2015

***

रोचक चर्चा:
अगले २० वर्षों में मिटने-टूटनेवाले देश
साभार : https://youtu.be/1vP3Ju7J4gk
यू ट्यूब के उक्त अध्ययन के अनुसार अगले २० वर्षों में दुनिया के निम्न देशों के सामने मिटने या टूटने का गंभीर खतरा है.
१. स्पेन: केटेलेनिआ तथा बास्क क्षेत्रों में स्वतंत्रता की सबल होती मांग से २ देशों में विभाजन.
२. उत्तर कोरिआ: न्यून संसाधनों के कारण दमनकारी शासन के समक्ष आत्मनिर्भरता की नीति छोड़ने की मजबूरी, शेष देशों से जुड़ते ही परिवर्तन और दोनों कोरिया एक होने की मान के प्रबल होने के आसार.
३. बेल्जियम: वालोनिआ तथा फ्लेंडर्स में विभाजन की लगातार बढ़ती मांग.
४. चीन: प्रदूषित होता पर्यावरण, जल की घटती मात्र, २०३० तक चीन उपलब्ध जल समाप्त कर लेगा। प्रांतों में विभाजन की माँग।
५. इराक़: सुन्नी, कुर्द तथा शीट्स बहुल ३ देशों में विभाजन की माँग.
६. लीबिया: ट्रिपोलिटेनिआ, फैजान तथा सायरेनीका में विभाजन
७. इस्लामिक स्टेट: तुर्किस्तान, सीरिया, सऊदी अरब, ईरान, तथा इराक उसके क्षेत्र को आपस में बांटने के लिये प्रयासरत।
८. यूनाइटेड किंगडम: स्कॉट, वेल्स तथा उत्तर आयरलैंड में स्वतंत्र होने के पक्ष में जनमत।
९. यूनाइटेड स्टेट ऑफ़ अमेरिका: ५० प्रांतों का संघ, अलास्का तथा टेक्सास में स्वतंत्र होने की बढ़ती माँग।
१०. मालदीव: समुद्र में डूब जाने का भीषण खतरा।
११. पाकिस्तान: पंजाब, सिंध तथा बलूचों में अलग होने की मांग.
१२. श्री लंका: तमिलों तथा सिंहलियों में सतत संघर्ष।
***

कोई टिप्पणी नहीं: