पुरोवाक्:
''काव्यांजलि'' : मननीय विमलांजलि
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
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सृष्टि का विनाश करने वाले जगत्पिता शिव और जग-पालक नारायण का समावेश अपने नाम में रखनेवाले श्रेष्ठ-ज्येष्ठ साहित्यकार ने स्वातंत्र्य आंदोलन, वकालत और काव्य लेखन जैसे एक दूसरे से सर्वथा भिन्न क्षेत्रों में आपनी कुशलता, श्रेष्ठता और कर्म-नैपुण्य की छाप छोड़ने का जौहर दिखाकर अपने कुलनाम 'जौहरी' को सार्थक किया है। यह एक सुखद संयोग है की आपके पितृश्री हरनारायण जी के नाम में भी शिव और विष्णु का सम्मिलन था। ३ जनवरी १९२६ को शाजापुर मध्य प्रदेश में जन्मे जौहरी जी ने कैशोर्य और तरुणाई स्वतंत्रता सत्याग्रही के रूप में अंग्रेज सरकार से जूझते हुए बिताई। मात्र १४ वर्ष की उम्र से आप सत्यग्रहों और अन्य राजनैतिक गतिविधियों में भाग लेने लगे। १९४२ के भारत छोड़ो आंदोलन में आपके पराक्रम को पुरस्कृत करने में ब्रिटिश प्रशासन ने कोताही नहीं की। पहले तो आपको १७ जून १९४२ से कारावास में कैद रखा गया। उसके बाद ८ अगस्त १९४२ से आरंभ भारत छोड़ो आंदोलन का नेतृत्व करने के कारण आपको पुलिसिया लाठी प्रहारों से भी नवाज़ा गया। गोरखी हाई स्कूल ग्वालियर में आपने पहली से १० वीं तक अध्ययन किया। यहाँ आप पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी बाजपेई के सहपाठी भी रहे। देश स्वतंत्र होने के पश्चात् आपने बी. एस-सी., बी.ए., एल-एल.बी., एल-एल.एम्., साहित्यरत्न की उपाधियाँ अर्जित कीं तथा मध्य प्रदेश न्यायिक सेवा में प्रवेश कर जिला एवं सत्र न्यायाधीश के पद से सेवा निवृत्ति ली। आप विधि विभाग में सचिव भी रहे। स्वनामधन्य निराला जी के साथ मंच साजः करने का सौभाग्य प्राप्त कर चुके जौहरी जी ने भोपाल, रांची तथा मुम्बई रेडियो स्टेशनों से ;एकल काव्य पाठ भी किया है। आपके लिखे भजनों का गायन अनूप जलोटा तथा अन्य गायकों ने किया है।आपकी छै कृतियाँ रूपा (खंड काव्य), अंतर्मन के साथ, जिजीविषा, त्रिपथगा, क्षितिज से तथा प्रपात पूर्व में प्रकाशित हो चुकी हैं। इसके अतिरिक्त आपने विधि विषयक पुस्तकें भी लिखी हैं। मध्य प्रदेश शासन द्वारा प्रकाशित 'मध्य प्रदेश के स्वतन्त्रता संग्राम सैनिक' शीर्षक ग्रंथ माला के खंड ४ में मुरैना जिले के अंतर्गत आपका सचित्र संक्षिप्त परिचय २६८ पर प्रकाशित है। आपको मध्य के मुख्या मंत्री प्रकाश चंद्र सेठी जी द्वारा ताम्र पत्र से सम्मानित भी किया गया है। स्वतंत्रता की २५ वीं वर्ष गाँठ पर मुरैना जिला मुख्यालय में शासन द्वारा लगवाए गए शिलालेख पर भी आपका नाम अंकित है।
'काव्यांजलि' काव्य संग्रह में शिवनारायण जी की छंद मुक्त रचनाएँ संकलित हैं। जीवन का आठवाँ दशक पूर्ण करने के बाद भी आपकी सजगता, सचेतनता तथा सृजनात्मक सक्रियता काबिले-तारीफ ही नहीं अनुकरणीय भी है। हिंदी, उर्दू तथा अंग्रेजी भाषाओँ में दक्षता आपका वैशिष्ट्य है। आपकी रचनाओं में यथार्थवाद जमीनी सचाइयों से अंकुरित होता है, वैचारिक प्रतिबद्धता के नाम पर थोपा नहीं जाता। 'तैयार हो जाओ' शीर्षक रचना में साँसों का मीजान मिलाते हुए कवि वार्धक्य की उपलब्धि से आनंदित होता है-
उतार कर रख दिया मैंने
अपने बुढ़ापे का वजन,
ज़िंदगी की अर्जित गाठ का पूरा बदन
और हल्का हो गया है
गठरी का वजन और उसकी व्यथा
आँख का रंगीन चश्मा
कान में बजती तरंगें और
सब कुछ जो अर्जित किया था
मैंने अपनी जवानी में
अपनी कहानी में जितनी खाई थी ठोकरें
एक एक सीढ़ी पर चढ़ने के लिए
दुनिया में बढ़ने के लिए
सहज सा हल्का हो गया हूँ।
यह अकृत्रिम आत्मानुभूति पटक के मर्म को स्पर्श करती है। जीवनांत में शिथिल होती इन्द्रियों जनित विवशता को स्वीकारते हुए कवि 'मैं आ रहा हूँ' का उद्घोष करता हुआ अपनी माता का स्मरण करता है-
आ रहा हूँ ,माँ
आ रहा हूँ मैं
गति से लगाता होड़
चाहता हूँ मैं
तुम्हारी गोद में जलते
निरंतर हवन में समिधा की तरह
डूब जाने के लिये।
'जिंदगी हारी नहीं है; शीर्षक कविता में जौहरी जी प्राकृतिक विनाश लीलाओं को चुनौती की तरह स्वीकार कर नव निर्माण का आह्वान करते हुए कहते हैं की अपनी बनाई सृष्टि को खुद ही मिटा दे, विधाता इतना नादान नहीं हो सकता अर्थात इस विनाश लीला के मूल में मानवीय कदाचरण ही है-
जिंदगी अब तक मगर हारी नहीं है
जवानी ने चुनौती मान ली है
जिसने बनाया है खिलौना
वही
इसको तोड़ डालेगा
नासमझ इतना रचियता
हो नहीं सकता।
सृष्टि में जीव के 'जन्म' के साथ ही 'मृत्यु' अस्तित्व में आ जाती है, अजर-अमर कोई नहीं हो सकता। यह अटल सत्य है। अवतार लेने पर ईश्वर को भी मरना ही पड़ता है हम भले ही उसे 'लीला संवरण' कह दें। मृत्यु के संसाधनों को निरंतर बनाने की मानवीय दुष्प्रप्रवृत्ति की विवेचना करते हुए कवी चेतावनी देता है कि समूची सृष्टि में पृथ्वी एकमात्र गृह है, जहाँ जीवन है, इसलिए अन्य ग्रह पृथ्वी से ईर्ष्या करते हैं। मनुष्य को ऐसा कोइ काम नहीं करना चाहिए जिससे जीवन ही संकट में पड़ जाए -
हरेक ग्रह पर न पानी है,
न प्राण, न हँसना, न रोना
बस सन्नाटा रहता है
सब ग्रहों पर
इस तरह से हमारी धरती को
दूसरे ग्रह जलन से देखते हैं।
प्रथम दृष्टि में ये कविताएँ 'अमिधा' में लिखी गयी प्रतीत होती हैं किन्तु मर्म समझने पर अनुभव होता है कि जो कहा जा रहा वह उस अनकहे के लिए कहा जा रहा है जो प्रतिक्रिया स्वरूप पाठक के मन में उपजता है। 'अमिधा' का आश्रय लेकर, 'लक्षणा' के सहारे कथ्य प्रस्तुत कर व्यंजनपरक प्रतिक्रिया उपजाना सहज नहीं होता. इसके लिए गहन साधना की आवश्यकता होती है।
जौहरी जी की कुछ काव्य पंक्तियाँ 'सूत्र' की तरह गागर में सागर समाहित किए हैं - 'गीत की कोई पाठशाला नहीं होती', 'मृत्यु शाश्वत सत्य है', 'अन्तर की पुलक फिर जगाओ', चलो चलें सूरज के गाँव', आदि।
जौहरी जी मूलत: गीतकार हैं। श्रृंगार परक प्रणय गीतों में उनका कवि अनुभूतियों को इस तरह अभिव्यक्त करता है कि पाठक/श्रोता उसमें अवगाहन कर एकाकार हो जाता है -
'प्राण को पाजेब सी पहिना रहे थे पल
और सब कुछ हारते ही जा रहे थे पल'
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'तुम क्या गए बिदेस
नयन का काजल छूट गया
प्राण का बचपन रूठ गया
प्यार का सपना टूट गया'
*
'दाह दे रही किशोर चन्द्रिका मुझे
इसलिए जगा जगा कि सो रहा नहीं!
कुछ धुवां घुटा घुटा
कुछ कसक उठी उठी
कुछ भरे भरे नयन
आस कुछ मिटी मिटी
प्यास दे रही किशोर चन्द्रिका मुझे
कोई यह अधर मगर भिगो रहा नहीं '
जौहरी जी के इन गीतों में भीग कर मन-प्राण जुड़ा जाते हैं। पद्म भूषण नीरज जी ने हिंदी को श्रृंगार गीतों की जो अभिनव शैली दी, ये गीत उसे पुनर्जन्म देकर आगामी पीढ़ी तक पहुँचाते हैं।
प्रकृति और साहित्य विशेषकर गीतों का साथ धूप-छाँव का सा होता है। सुख-दुख आँखमिचौली खेलते हुए, सवासों और आसों को छकाते रहते हैं।
बरखा के पैरों में पायल को बाँधकर
बैठ गई सांध्य किरण बादल के पास
*
फागुनी हवाओं में देह गंध ओढ़ ओढ़
तृष्णा जब सेंक उठी वासंती भाव
गोरी को काट रहा नैहर का गाँव
*
तुम शब्द, शब्द में अर्थ-अर्थ में दिव्य अक्षरी ज्ञान
मैं इन सबका हूँ व्यक्त रूप तेरी गीता का ज्ञान
तेरे हस्ताक्षर का अनुमान
'लिव इन' को अमृत समझकर, विष घूँट पी-पीकर जीने के भ्रम में मर रही आधुनिकाएँ इन निर्मल-निर्दोष भावनाओं को समझ सकेंगी इसमें संदेह होते हुए भी, उन्हें इनका रस चखाना ही होगा। जौहरी जी अपने गीतों के माध्यम से देहवाद से संत्रस्त इस मनोरोगी समाज को आत्मिक प्रेम और पारलौकिक साहचर्य की कायाकल्पकारी औषधि उपलब्ध कराकर नवजीवन की रह दिखा रहे हैं। साधुवाद।
इन गीतों में सटीक बिंबों, सरस कथ्य, लालित्यवर्धक अलंकारों और चारुत्व वृद्धि कर रहे प्रतीकों का यथास्थान होना रसानन्द की वृष्टि करता है। काव्यानंद के पर्याय इन गीतों को नव रचनाकार आत्मसात करें तो उनका अपना सृजन समृद्ध होगा। यह कृति लोकप्रिय हो और कविवर शिवनारायण जी की एक और नई कृति हमें आत्मानंदित करने के लिए आए, यही कामना है।
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संपर्क- विश्व वाणी हिंदी संस्थान, ४०१, विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर 482001, चलभाष : ९४२५१८३२४४
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